अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी -- ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग हिन्दु राष्ट्र संघ संदेश की श्रृंखला में स्वतन्त्र भारत की परख शीर्षक से सूत्रात्मक रूप से संकेत करते हैं कि कोई भी देश कितने ही वर्षों तक परतन्त्र क्यों न रहा हो , मानवाधिकार की सीमा में उसे स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त रहता है। साथ ही परतन्त्रता की अवधि में उसके जिन मानबिन्दुओं को विकृत तथा विलुप्त किया गया हो ; उन्हें स्वतन्त्रता सुलभ होने पर शोधित तथा निर्मित करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त रहता है।
तद्वत् परतन्त्रता के दिनों में अराजकता के पक्षधर विधर्मियों के द्वारा परतन्त्रता के द्योतक समानान्तर जितने प्रकल्प प्रतिष्ठित किये गये हों , उन्हें स्वतन्त्र होने पर निरस्त करने का पूर्ण अधिकार सुलभ रहता है। स्वतन्त्रता के बाद भी यदि कोई देश मानवोचित शील की सीमा में सबके हित का मार्ग प्रशस्त करते हुए निज अस्तित्व और आदर्श के अनुरूप संविधान तथा शासन से सुदूर है , तब वह सैद्धान्तिक और व्यवहारिक धरातल पर परतन्त्र ही सिद्ध है। भारत की दुर्दशा यह है कि यहां प्रबुद्ध और प्रशासक माने जाने वालों की मन:स्थिति और गतिविधि भारत के अस्तित्व और आदर्श के सर्वथा विपरीत ही परिलक्षित है। राजनैतिक दलों का सनातन परम्पराप्राप्त आचार्यपीठों और आचार्यों को विकृत तथा विलुप्त करने का सतत प्रयास भीषण अभिशाप है।
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