क्षेत्र की प्रसिद्ध नथेला माता मंदिर के पास मतस्याखेट - जनता की आपत्ति
(श्रद्धालुओं ग्रामीणों पदाधिकारी की भावना आहत) कैच कल्चर लगाया जा रहा,,मोंगरा जलाशय का स्कीम पिपरिया जलाशय में जोर जबरदस्ती से लगाया जा रहा ? जल संसाधन और मछली विभाग संदेह के दायरे में,,,
छुईखदान - कुछ दिनों से खबर आ रही थी कि क्षेत्र के मान्यता प्राप्त व रानी रश्मि देवी पिपरिया जलाशय के उलट के पास स्थित स्वयंभू माता नथेला मैया के मंदिर के पास कुछ लोगों की आवाजाही बढी है परन्तु कारण कोई नही बता पा रहा था जो अब जाकर साफ हुआ है कि राजनांदगांव स्थित मत्स्य विभाग के अधिकारियों की ओर से जल संसाधन विभाग छुईखदान के तहत आने वाले किसी अन्य जलाशय में मत्स्य पालन उत्पादन ( कैच कल्चर) का आखेट किया जाना था जिसकी शायद बराबर समस्त शासकीय कार्यवाही पूरी भी की गई थी और उस अन्य जलाशय में किए जाने वाले मतस्य कार्यक्रम को बिना किसी वैधानिक कार्यवाही के रानी रश्मि देवी जलाशय में संभव कराया जा रहा है क्योंकि उक्त जलाशय में उक्त कार्य को संपन्न करने लायक पानी ही नहीं बचा है। उक्त मामले मे कौन कितना जिम्मेदार है कौन कितना भागीदार है यह कहना उचित नहीं है फिर भी उक्त मामले को लेकर खास तौर पर धार्मिक विषयों को लेकर जो हालात पैदा हो रहे हैं उससे साफ है कि मत्स्य विभाग राजनांदगांव के आला अधिकारियों का यह कमाऊ चाल और जल संसाधन विभाग की उस पर मौन स्वीकृति नथेला मैया के सेवकों पदाधिकारियों ग्रामीणों के साथ ही छुईखदान के भक्त परिवार के लोगो को कतई स्वीकार नहीं है। मामले में उनकी ओर से केवल आपत्ति जताई जा रही है साथ ही मामले को लेकर उच्च स्तरीय ईलाज की भी तैयारी की जा रही है।
(बांध के निर्माण से जुड़ी है मैया की कहानी)
ठीक देवी नथेला मैया के अहाते पर जबरिया कब्जा कर अपना अस्थायी निवास बनाकर मंदिर के आसपास गंदगी फैलाते हुए लगभग पचास के तादाद में ठेकेदार के कर्मचारी व उन्हें अपना सहयोग देते जल संसाधन विभाग के कर्मचारी प्रतिदिन देखे जा रहे हैं वह मंदिर जहां बांध बनते समय प्रतिदिन घंटा शंख पूजा अर्चना के साथ ही नैवेद्य अर्पित की जाती थी वह आज भी लगभग जारी है सैकड़ों हजारों की संख्या में भक्तजन जहां समय समय पर आते जाते रहते हैं वहां पर अस्वच्छ कार्य किए जाने के विरूद्ध लोगो ने आपत्ति जताई है। व आक्रोश व्यक्त किया है।
(जल संसाधन विभाग की मौन स्वीकृति क्यों)
उक्त मामले में यहां जल संसाधन विभाग की बिना कोई औपचारिकताये पूरी किए अन्य जलाशय के लिए लाए गए योजना को दूसरे जलाशय में थोपना वह भी लोगो की आपत्ति के बावजूद समझ से परे है ज्ञात हो कि उक्त जलाशय के निर्माण में क्षेत्रीय जनता की भी भूमि डूबान में आई है यह बात अलग है उन्हें मुआवजा दिया जा चुका है परन्तु धार्मिक स्थल और उससे जुड़े आस्था के संबंध में विभाग के साथ किसी का भी कोई लिखापढी नहीं है सो शासन प्रशासन को चाहिए कि आस्था की चिंगारी और अधिक भड़के उससे पहले मामले को जनता के मंशा अनुसार ही मतस्याखेट जैसी योजना को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाना ही हितकारी होगा।
(किसको कितना लाभ-हानि से कोई मतलब नहीं)
मामले में खास बात यह है कि जलाशय व मंदिर से जुड़े लोगों को इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि मामले में किसको कितना फायदा होगा या घाटा होगा उन्हे तो बस उक्त धार्मिक स्थल साफ सुथरा पवित्र चाहिए तथा उक्त स्थल पर किसी भी प्रकार का हिंसात्मक किृयाकलाप बंद होना चाहिए।
अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक उक्त पूरा मामला लाभ हानि का ही बताया जा रहा है परन्तु अब देखना यह है कि शासन प्रशासन और संबंधित विभागों के अधिकारी मामले में क्या फैसला करते हैं उन्हें लाभ का सौदा प्रिय है या जनता की भावना। खुलना था कही और कही और खोला जा रहा, विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार इस कैच कल्चर स्किम को मोंगरा जलाशय में लगाने की अनुमति थी लेकिन वहां पर पानी होने के कारण गुपचुप तरीके से जल संसाधन छुईखदान को झांसे में लेकर कैच कल्चर स्किम जो किसी ठेकेदार को लगाना है उसको लाभ पहुचाने के लिए छुईखदान स्थित रानी रश्मि देवी पिपरिया जलाशय के कोने में लगाया जा रहा था जहां पर छेत्र की अधिस्ठतरी देवी का मंदिर है जहां हर बरस मेला लगता है और हर दिन माता का दर्शन करने वालो का रेला लगा रहता है,,ग्रामीणों का कहना है हम यहां पर किसी भी हालत में कैच कल्चर को लगाने नही देंगे,, बांध का ठेकादार कोई और कैच कल्चर कोई और लगा रहा ,,,,,इस बांध का ठेका इस छेत्र के जय बूढ़ादेव समिति को दस साल के लिए दिया गया है तो इस बान्ध पर किसी भी प्रकार के स्किम चालू करने के लिए उनकी अनुमति लिया जाना था जो कि न जल संसाधन विभाग ने लिया और न ही मत्स्य विभाग ने,इस संबंध में पूरा खेल मत्स्य विभाग का माना जा रहा है,,जिसमे उनके सेटिंग में आकर जल संसाधन ने हामी भर दी,,और मामला अब तूल पकड़ने लगा है,मा नाथेला का अपमान किसी भी हालात मे छेत्रवासी नही सहेंगे,, इस संबंध में जानकारी के लिए मत्स्य वीभाग के अधिकारियों को फोन किया गया तो उन्होंने फोन ही रिसीव नही किया,,
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