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Sunday, July 10, 2022

प्रशासन के अनदेखी के चलते,राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र नाले के पानी पीने को मजबूर....

प्रशासन के अनदेखी के चलते,राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र नाले के पानी पीने को मजबूर....


—जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही से सूरज यादव कि खास रिपोर्ट 

CNI BREAKING NEWS जीपीएम / नवनिर्मित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही के गौरेला ब्लॉक के आखिरी छोर के ग्राम पंचायत ठाड़पथरा में सैकड़ों बैगा जनजाति के लोग यहाँ पर निवास करते हैं। आपको बता दें कि प्रशासन की अनदेखी के चलते राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा जाति नदी नाले के पानी पीने के लिए मजबूर। गौरतलब है कि नवीन जिला बने ज्यादा दिन नहीं हुआ फिर भी तमाम दावे वादे सभी खोखला नजर आ रहा है गौरेला ब्लॉक के आखिरी छोर ठाड़पथरा में पानी संकट गहराता जा रहा है।ग्रामीण अंचलों में पीने के पानी को लेकर ग्रामीण जन परेशान हैं।साथ आपको बता दें कि वहां के अर्ध शासकीय दुर्गा धारा आश्रम शाला आमानाला प्राथमिक एवं माध्यमिक ग्राम ठाड़ पथरा विकासखंड  गौरेला का स्कूल है।

छात्र 

जिसमें 2 से 3 शिक्षक हैं एवं बच्चों की संख्या लगभग 100-130 है। यहां हैंडपंप तो है लेकिन पीएचई विभाग की अनदेखी के चलते 4 -5 वर्षों से वहा की सारे हेंड पंप  बंद पड़ा है। बूंद बूंद पानी के लिए भटक रहे हैं। आदिवासी बैगा जनजाति कि लोग विभाग हमला सिर्फ बहानेबाजी करता दिखाई देता है जबकि विभाग ग्रामीण अंचल आदिवासी जनजाति क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था के नाम पर प्रतिवर्ष लाखों रुपए का प्रस्ताव बनाकर केंद्र और राज्य शासन से आवंटित मध्य की होली खेलते आ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इसकी जानकारी हमने सरपंच सचिव एवं विभाग के अधिकारियों को 1अवगत कराया था लेकिन आज करेंगे कल करेंगे करके टाल देते हैं?

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले की ग्राम पंचायत ठाड़पथरा जनपद पंचायत गौरेला के बैगा बाहुल्य नदी नाले कुआं गड्ढे से पानी अपने सिर में ढोके अपने घर लाते हैं और पानी का उपयोग करते हैं। नाले के पानी उपयोग के लायक तो नहीं है पर इन जनजाति ग्रामीणों की मजबूरी है? आजादी के इतने वर्षों बाद भी शासन-प्रशासन उनके लिए शुद्ध और साफ पीने का पानी उपलब्ध नहीं करा सका है। जबकि जिले में पीएचई विभाग के पास ना तो फंड की कमी है ना साधन और संसाधनों की हर क्षेत्र में उनका अमला पदस्थ है। ग्रामीणों को बूंद बूंद पानी के लिए भटकना पड़ रहा है और गंदा पानी पीने को मजबूर हैं लोग यह  ग्राम पंचायत तो मात्र उदाहरण है। बैगा जनजाति क्षेत्रों में लगभग आधे से अधिक गांव में यही स्थिति है जहां लोगों को पानी के लिए परेशान होना  भटकना पड़ता है बताया जाता है कि ठेकेदारों को भुगतान तो 4-5 सौ फीट खनन का किया जाता है किंतु हैंडपंपों में पाइप सौ से डेढ़ सौ फीट ही डाला जाता है।और गर्मियों में इनका जल स्तर नीचे चला जाता है वही पहाड़ी इलाकों में नदियां और नाले भी सूख जाने से ग्रामीण इन जल स्रोतों के आसपास गड्ढे खोदकर पीने का पानी इंतजाम कैसे भी करते हैं इन्हीं गड्ढों में जानवर भी पानी पीते हैं और यहीं से जिले के ग्रामीण भी पीने का पानी लेकर उपयोग करते हैं।

पीएचई के पास बहाने सैकड़ों है पर समस्या का निदान नहीं??

पीएचई विभाग के पास सिर्फ इन समस्याओं के लिए बहुत सारे बहाने हैं पर इन ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या का निराकरण कैसे हो इनका निदान नहीं है? आजादी के इतने सालों के बाद भी इन जनजाति ग्रामीणों को चिन्हांकित नहीं किया जा सका। गर्मी के दिनों में भू जल स्तर बहुत नीचे चला जाता है उन ग्रामों में नल जल योजना कूप खनन क्यों नहीं हो सका प्रतिवर्ष ऐसे गांव में पानी उपलब्ध करवाने के लिए शासन से कई लाख रुपए टैंकरों से पानी आपूर्ति के लिए आता है पर हकीकत साफ देखी जा सकती है कि लोग गंदे नाले का पानी पीते हैं जो वे अपने सिर से पानी ढोके लाते हैं और यह भी इन्हें बहुत दूरी तय करने के बाद मिल पाता है। जिन गांव में भूजल स्तर नीचे चला जाता है ऐसे जनजाति बहुल गांवों में विभाग ने नल जल योजना क्यों नहीं बनाई जाती जबकि विशेष जनजाति जिन गांव में निवासरत है वहां प्राथमिक आवश्यकताओं की व्यवस्थाओं की पूर्ति हेतु विशेष मद का भी प्रावधान है।

अगर ऐसे ही लोग नाले के पानी पीते रहेंगे तो निश्चित ही बीमारियों का समस्या से ग्रसित होकर जान मान की खतरा बन सकता है ऐसे में कौन होंगे इसके जिम्मेदार??

बड़ी सहजता से लिया जाता है जनजाति ग्रामीणों का पेयजल संकट आदिवासी बहुल जाति जनजाति जिले मैं यहां विधायक राज्य स्तर की राजनीति कर रहे हैं बड़े बड़े ओहदे पर नवाजे जा चुके हैं अधिकतर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि जो खुद मिनरल वाटर पीने लगे हैं उन्हें भी जिले के जनजाति लोगों की परवाह नहीं है आजादी के इतने वर्षों बाद भी पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है।जनप्रतिनिधि इस स्थिति के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के अलावा कुछ कर नहीं सकते जिला पंचायत, जनपद पंचायत,ग्राम पंचायत,के प्रतिनिधियों की भी कोई जिम्मेदारी समझ में नहीं आती। किसी को कोई मतलब ही नहीं है ग्रामीणों के सामने हर साल आने वाले इस संकट और इतनी बड़ी समस्या से शासन-प्रशासन शासकीय अमला नेता दिन रात के विकास के लिए भागते फिरते हैं बड़े-बड़े आयोजन और घोषणाएं करते हैं गांव में पीने का पानी के लिए भटकते इन लोगों की वास्तविक स्थिति से जाहिर हो जाता है।

सलाम छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि ने इस समस्या के बारे में जिला शिक्षा—

अधिकारी  से भी बात किए तो उन्होंने कहा कि हमें इस विषय में कोई जानकारी नही है आपके से जानकारी प्राप्त हुई है। निश्चित ही निरीक्षण  जल्द से जल्द संज्ञान लेंगे और इस समस्या का निराकरण करेंगे।

पीएचई विभाग-कंवर— मेरे को जानकारी नहीं है आपके माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई हैं।कि नल बंद पड़ा कल हम लोग देखेंगे।


सूरज यादव

CENTRAL NEWS INDIA CHANNEL

जिला ब्यूरो/संवाददाता

गौरेला पेंड्रा मरवाही छ.ग.

9617435197

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