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Monday, November 20, 2023

श्रीसुदर्शन संस्थानम् में आयोजित हुआ गोपाष्टमी महोत्सव

 श्रीसुदर्शन संस्थानम् में आयोजित हुआ गोपाष्टमी महोत्सव



 अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर - प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी श्री सुदर्शन संस्थानम् शंकराचार्य आश्रम रावाभांठा स्थित श्रीगोवर्धन गौशाला में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में गोपाष्टमी महोत्सव श्रद्धा भाव एवं परंपरागत तरीके से बड़े धूमधाम से मनाया गया।


गौमाताओं को स्नान कराकर और सुसज्जित करके वेदमंत्रों के साथ गौमाता और बछड़ों का विधिवत पूजन किया गया। तत्पश्चात सभी ने गौमाताओं को खिचड़ी, चारा , गुड़ , पकवान एवं प्रसाद खिलाकर और गो परिक्रमा कर सुख , शांति की कामना की। गो पूजन पश्चात सर्वभूतहृदय यतिचक्र चूड़ामणि धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज का षोडशोपचार पूजन कर पं० रूद्र कृष्ण महाराज द्वारा गोपाष्टमी के दिन 07 नवंबर 1966 को दिल्ली में हुये गोरक्षा आंदोलन एवं गोसेवा - गोरक्षा - गौसंवर्धन और उनकी महत्ता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। वहीं संध्या बेला में गौभक्तों ने गोशाला परिसर में भक्तिमय वातावरण में संकीर्तन करते हुये परिक्रमा लगाई और गोरक्षा का संकल्प लिया। गौशाला में गोपूजन के समय पं० रूद्र कृष्ण महाराज , पं०विमल दुबे , पं० ब्रजेश  उपाध्याय , श्रीमति सीमा तिवारी , उत्तम शर्मा , शिवप्रसाद मिश्रा , श्रीमति वीणा मिश्रा , श्रीमति उमा उमेश साहू सहित शंकराचार्यजी के शिष्य परिवार विशेष रूप से उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि दीपावली के ठीक बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन ही मां यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को गाय चराने के लिये जंगल भेजा था। इस दिन गौ , ग्वाल और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का महत्व है। हिंदू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है। कामधेनु के रूप में गाय माता सभी की मनोकामना पूर्ण करती हैं। मृत्यु के पश्चात जीव गाय माता की पूंछ पकड़ कर ही वैतरणी नदी को पार करता है।


धर्म की मूल है गौमाता  - पं० रूद्रकृष्ण


गोपाष्टमी के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को पं० रूद्र कृष्ण महाराज ने बताया कि भारतीय संस्कृति में गाय को हमारे जीवन का अभिन्न अंग माना गया है। हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में गाय को पूजनीय मानकर हर पर्व और उत्सव पर गाय की पूजा की परंपरा को महत्व दिया गया है। हमारे पूर्वज गाय के अंदर विद्यमान उन तत्वों से परिचित थे जिनकी खोज इस युग में वैज्ञानिक कर रहे हैं। गाय धर्म की मूल है , उसके बिना कोई सद्कर्म और शुभकर्म नही हो सकती। “गवां अंगेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश”- गाय के शरीर में चौदह लोक विराजते हैं।तुष्टास्तु गाव: शमयन्ति पापं , दत्तास्तु गावस् त्रिदिवं नयन्ति। संरक्षिताश्च उपनयन्ति वित्तं , गोभिर्न तुल्यं धनमस्ति किंचित।। - अर्थात प्रसन्न होने पर गायें सारे पाप , ताप को धो डालती हैं और दान देने पर सीधे स्वर्ग लोक को ले जाती है , विधिपूर्वक पालन करने पर धन , वैभव , समृद्धि का रूप धारण कर लेती है , गायों के समान संसार में कोई भी सम्पत्ति या समृद्धि नही है।जब कोई चीज वर्णशंकर बन जाती है तो उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है इसलिये विदेशियों ने गाय को वर्णशंकर बना दिया। जब से हमने गौमाता का तिरस्कार किया है तब से वह अपने सारी शक्तियों को छिपा दी है। आज भी अगर उन्हें कोई वशिष्ठ , जमदग्नि जैसा गौपुत्र मिल जाये तो वह अपनी सारी शक्ति प्रकट कर देगी। भारतीयों ने जब से गौमाता की उपेक्षा की तभी से भारत की दुर्दशा का प्रारंभ हुआ है। ” गोसेवा सम पुण्य ना कोई” – गो सेवा के समान कोई पुण्य नही है , ये इहलोक और परलोक में भी हमारा उपकार करती है , पृथ्वी के सप्त आधारभूत स्तम्भों में गाय प्रमुख स्तम्भ है। गौमाता के गोमय , गोमूत्र सहित उनके श्वास , प्रश्वास में भी असुरत्व को नष्ट करने की शक्ति है। सर्वदेवमयी गौमाता चैतन्य , प्रेम , करूणा ,त्याग , संतोष ,सहिष्णुता आदि दिव्यगुणों से परिपूर्ण है। गाय के रोम रोम में सात्विक विकिरण विद्यमान है रहती है , इससे मनुष्य को धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति होती है। बड़े दुख की बात है कि समस्त धर्मों , पुण्यों , सुख संपत्ति के भंडार एवं समस्त फलदायिनी गौमाता का वर्तमान में घोर तिरस्कार हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप देश में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में रक्तपात , हिंसा , और उपद्रव आदि की भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है। अंत में महाराजश्री ने सभी लोगों से अपील करते हुये कहा कि अपने परिवार और परिवार के सदस्यों के साथ जब भी समय मिले गौशाला जरूर पहुंचे और गौ सेवा की इस मुहिम से जुड़े। उन्होंने कहा कि गौ माता आपके जन्म जन्मांतर के दुख़ दूर करेगी और आप ऐसा करके पुण्य के भागी बनेंगे।

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