सनातन वर्णाश्रम व्यवस्था वर्तमान युग मे भी सर्वोत्कृष्ट एवं प्रासंगिक है - पुरी शंकराचार्यजी
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
बिलासपुर - पुरी शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाभाग ने न्यायधानी प्रवास के द्वितीय दिवस आज निवास स्थल अशोक वाटिका , अशोक नगर , बिरकोना रोड सरकंडा में प्रात:कालीन सत्र में आयोजित पत्रकार वार्ता तथा संगोष्ठी में समसामयिक तथा धर्म, राष्ट्र और अध्यात्म संबंधी जनमानस के मन मे उपजे प्रश्नों के शास्त्र सम्मत तथा वैदिक विधि से समाधान बताया। समाज एवं पारिवारिक वातावरण में व्याप्त विसंगतियों के संबंध में उनका कथन था कि सनातन वर्णाश्रम व्यवस्था आज के युग में भी सर्वोत्कृष्ट तथा प्रासंगिक है। उन्होने उद्घृत किया कि वर्णाश्रम व्यवस्था में सबकी जीविका जन्म से सुरक्षित रहता है। इसके पालन से सबका जीवन दुर्व्यसन मुक्त तथा बिना परिवार नियोजन एवं गर्भपात का सहारा लिये सब वर्णों की संख्या संतुलित होती है। ब्राह्मण वर्ग ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , सन्यास तथा वानप्रस्थ आश्रम में अधिकृत हैं इसलिये शिक्षाविद् के रूप मे इनकी सीमित संख्या रहती है , जितना समाज के लिये आवश्यक हो। क्षत्रिय वानप्रस्थ को छोड़कर शेष तीनों आश्रम में अधिकृत होते हैं अतिथि: इनकी संख्या सुरक्षा के लिये आवश्कतानुसार ही होती है। वैश्य ब्रह्मचर्य और गृहस्थ मे अधिकृत है इसलिये इनकी संख्या व्यापार हेतु आवश्यकता की पूर्ति करती है। समाज मे श्रम शक्ति की सबसे अधिक आवश्यकता अत: सेवकवर्ग केवल गृहस्थ के लिये अधिकृत होते इसलिये इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। इस प्रकार वर्ण आधारित कर्म से आपसी समन्वय बना रहता है। वर्णाश्रम व्यवस्था मे शिक्षा , रक्षा , अर्थ और सेवा के प्रकल्पों मे संतुलन बनता है। यदि ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और सेवकवर्ग के नाम पर वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है तो अधिक समय तथा सम्पत्ति की आवश्यकता होती है तथा इस व्यवस्था संस्कार का अभाव हो जाता है , इसलिये वैकल्पिक वर्णव्यवस्था के द्वारा समाज की विसंगतियों का समाधान संभव नही हो रहा है। शंकराचार्यों की भूमिका पर उन्होने कहा कि शंकराचार्य निष्पक्ष होते है तथा दर्शन , विज्ञान और व्यवहार में सामंजस्य स्थापित कर अपनी भूमिका तथा दायित्व का निर्वहन समाज तथा राष्ट्र की भलाई के लिये शास्त्र सम्मत दिशानिर्देश के द्वारा करते हैं। शंकराचार्य धार्मिक क्षेत्र के सर्वोच्च न्यायाधीश होते हैं। शासक वर्ग को मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिये। महत्वाकांक्षा मर्यादा के भीतर हो तो ठीक बात है परन्तु सीमा लांघने पर पतन की ओर अग्रसर करता है। कलयुग के अन्तिम चरण में ब्राह्मण कुल में भगवान कल्कि का अवतार होना है इसलिये आवश्यक है तब तक ब्राह्मण वर्ग सुरक्षित रहे। धर्मपरिवर्तन शासक वर्ग की दुर्बलता है , शासक वर्ग ही वोट बैंक के लिये गरीब पैदा करती है फिर इन गरीबों के मजबूरियों का धर्मांतरण करने वाले फायदा उठाते हैं। वर्तमान मे सारी व्यवस्थायें दिशाहीनता की पराकाष्ठा की ओर अग्रसर है। तीन दिवसीय बिलासपुर प्रवास के पश्चात पुरी शंकराचार्यजी आज दोपहर दो बजे उस्लापुर रेलवे स्टेशन से आगरा के लिये प्रस्थान करेंगे , जहां उनका दो दिवसीय प्रवास रहेगा। यहां आयोजित सभी कार्यक्रमों की समाप्ति पश्चात उनका आगामी चरण मे 18 अक्टूबर तक वृन्दावन प्रवास रहेगा।
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