पूर्ण कुंभ:
महाकुंभ मेला भारतीय धार्मिक आयोजनों का सबसे बड़ा पर्व है, ।
सी एन आइ न्यूज पुरुषोत्तम जोशी। प्रयागराज - महाकुंभ का आयोजन हर १४४ वर्षों में केवल प्रयागराज में आयोजित होता है, । इसे कुंभ मेले का सबसे पवित्र और महत्त्वपूर्ण रूप माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस मेले में संगम पर स्नान करना आत्मा को पवित्र और पापों से मुक्त करता है!
महाकुंभ का आयोजन खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक विशेष स्थिति में होते हैं, तब इसका आयोजन होता है। खास बात ये है कि महाकुंभ का आयोजन १२ पूर्ण कुंभ के साथ यानी हर १४४ वरषों में होता है, वो भी सिर्फ प्रयाग में।
२०१३ में प्रयागराज में आखिरी बार पूर्ण कुंभ का आयोजन हुआ था। इस बार महाकुंभ का १२वाँ अवसर यानी १४४वाँ वर्ष, इसलिए इस पूर्ण कुंभ को महाकुंभ कहा जा रहा है!
हर १४४ वर्षों में आयोजित होने वाले महाकुंभ को देवताओं और मनुष्यों के संयुक्त पर्व के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। इसी गणना के आधार पर १४४ वर्षों के अंतराल को महाकुंभ के रूप में मनाया जाता है!
महाकुंभ २०२५ में पाँच प्रमुख स्नान पर्व होंगे, जिनमें तीन राजसी स्नान शामिल हैं!
१. पौष पूर्णिमा (१३ जनवरी २०२५): कल्पवास का आरंभ;
२. मकर संक्रांति (१४ जनवरी २०२५): पहला शाही स्नान;
३. मौनी अमावस्या (२९ जनवरी २०२५): दूसरा शाही स्नान;
४. बसंत पंचमी (३ फरवरी २०२५): तीसरा शाही स्नान;
५. माघी पूर्णिमा (१२ फरवरी २०२५): कल्पवास का समापन;
६. महाशिवरात्रि (२२ फरवरी २०२५): महाकुंभ का अंतिम दिन;
. कुंभ मेले का हर प्रकार अर्धकुंभ, कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन आयोजनों के पीछे पौराणिक और ज्योतिषीय मान्यताएँ हैं, जो इनकी विशेषता को और भी बढ़ा देती हैं।
महाकुंभ का आयोजन केवल प्रयागराज में होता है, जो इसे और भी खास बनाता है। २०२५ का महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र होगा, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भव्य प्रदर्शन करेगा।
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