धूमधाम से मनाया गया आँवला नवमीं
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर — आज प्रदेश भर में आंँवला नवमी पर्व बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सुहागिन महिलाओं ने आंँवला वृक्ष की पूजा अर्चना एवं वृक्ष की परिक्रमा कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने की कामना की। प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को आंँवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से महिलाओं की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है एवं व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कहीं कहीं इसे इच्छा नवमीं के नाम से भी जाना जाता है। आंँवला नवमी पर्व को देखते हुये महिलाओं में खासा उत्साह देखा गया। महिलाओं के द्वारा सुबह से ही आंँवले के वृक्ष के पूजन की तैयारी की गई। महिलायें मंदिर एवं जहांँ आंँवले के वृक्ष थे वहांँ पहुंँचकर आंँवले के वृक्ष की पूजा अर्चना कर परिक्रमा करते देखी गयी। कई जगहों में आँवला वृक्ष के चारों ओर मनोकामना पूर्ति के लिये कच्चा धागा बांधा एवं आंँवले की जड़ में दूध भी चढ़ाया गया। जिन जगहों पर आंवले का वृक्ष मौजूद नहीं था वहांँ महिलाओं ने घर में ही आंवले के पौधे को मंगाकर पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति की कामना की। महिलायें मंदिरों में भी विग्रहों के दर्शन करते नजर आये। वहीं कई लोगों ने आँवला और पीपल का पौधा लगाकर क्षेत्र में खुशहाली की कामना की। आंँवले की पूजा के बाद महिलाओं ने ब्राह्मणों को भोजन कराया एवं ब्राहमणों को रुपये , कपड़े इत्यादि दान दक्षिणा भेंटकर पुण्य अर्जित किया। इसके बाद छोटी छोटी समूहों में आँवला वृक्ष के छाँव में भोजन किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि अक्षय नवमी पर माता लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक पर भगवान विष्णु तथा शिवजी की पूजा आंँवले के रूप में की थी। इस कारण आज भी महिलायें अपने परिवार के साथ वृक्ष के नीचे बैठ धार्मिक कथाओं को पढ़ती और सुनाती हैं। इस संबंध में संक्षिप्त जानकारी देते हुये जया यादव ने अरविन्द तिवारी को बताया कि श्रुतिस्मृति पुरार्णों के अनुसार आज ही के दिन सबसे पहले माता लक्ष्मी ने आँवले की पूजा कर इसके नीचे भगवान विष्णु और शिवजी को भोजन कराया था। तभी से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन आंँवले के पेंड़ के नीचे बैठकर और उसी के नीचे भोजन करने से रोगों का नाश होता है। इस दिन को प्रकृति के पर्व के नाम से भी जाना जाता है , लोग इस दिन प्रकृति को आभार प्रकट करते है। आँवला नवमीं के दिन स्नान , पूजा और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन कई श्रद्धालु आँवला पूजन करने तक निर्जला व्रत रखते हैं। भोजन प्रसाद बनने पर आँवला का पूजन कर उसमें भोग लगाते हैं। फिर ब्राह्मण देवता को भोजन कराकर दान दक्षिणा करने के बाद भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। वहीं आँवला के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व पर जोर देते हुये जया यादव ने बताया कि इसके फल को सामने रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है वहीं दूसरी ओर इस वृक्ष के नीचे भोजन , शयन , विश्राम करने से गोपनीय से गोपनीय बीमारियाँ भी दूर हो जाती है।


















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