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Thursday, November 27, 2025

मित्र सप्तमी आज-यह व्रत भगवान सूर्य की उपासना का दिन है,इस दिन का व्रत संतान प्राप्ति,स्वास्थ्य और समाज में मित्रवत सम्बन्ध स्थापित करने के लिए किया जाता है।

 मित्र सप्तमी आज-यह व्रत भगवान सूर्य की उपासना का दिन है,इस दिन का व्रत संतान प्राप्ति,स्वास्थ्य  और समाज में मित्रवत सम्बन्ध स्थापित करने के लिए किया जाता है। 




सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी। 

मित्र सप्तमी का पर्व हर वर्ष मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन का व्रत और पूजा विशेष रूप से संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य, और समाज में मित्रवत संबंध स्थापित करने के लिए किया जाता है।


मित्र सप्तमी की तिथि और मुहूर्त-


मित्र सप्तमी 2025 की तारीख गुरुवार, 27 नवंबर 2025


सप्तमी तिथि का आरंभ- 26 नवंबर 2025, देर रात 12 बजकर 01 मिनट पर।


सप्तमी तिथि का समापन- 27 नवंबर 2025, देर रात 12 बजकर 29 मिनट पर।


चूंकि सप्तमी तिथि 27 नवंबर को उदया तिथि में व्याप्त है, इसलिए मित्र सप्तमी का पर्व 27 नवंबर 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।


मित्र सप्तमी पौराणिक महत्व-


सूर्यदेव को महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है।इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक समय दैत्यों का प्रभुत्व खूब बढ़ने के कारण स्वर्ग पर दैत्यों का अधिपत्य स्थापित हो जाता है। देवों के दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति भगवान सूर्य की उपासना करती हैं। आदिति की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान सूर्य उन्हें वरदान देते हैं कि वह उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे तथा उनके देवों की रक्षा करेंगे। इस प्रकार भगवान के कथन अनुसार कुछ देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म होता है। वह देवताओं के नायक बनते हैं और असुरों को परास्त कर देवों का प्रभुत्व कायम करते हैं। नारद जी के कथन अनुसार जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है सूर्य भगवान उससे प्रसन्न हो उसे पुन: नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह मित्र सप्तमी पर्व सभी सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है।


मित्र सप्तमी पूजन-


मित्र सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है। सप्तमी के दिन इस पर्व का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है इस पर्व के उपलक्ष में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है, इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है व उन्हें जल द्वरा अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य भगवान का षोडशोपचार पजन करते हैं। पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है। सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें। इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए। पूजन और अर्घ्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए।

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