रायपुर -- नवरात्री में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की पूजा होती है। हर दिन माँ के अलग अलग मंत्रों का उच्चारण करने और अलग अलग भोग लगाने से माँ प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देती हैं। इसी कड़ी में आज दूसरे दिन मांँ दुर्गा की नौ शक्तियों के दूसरे स्वरूप मांँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन पूजन का विधान है। माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ - ब्रह्म मतलब तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली देवी होता है। मान्यता है कि इन देवी की आराधना से विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य रूप में होता है , इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमंडल लिये श्वेत वस्त्र में देवी विराजमान होती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी पूजा , तप , शक्ति , त्याग , सदाचार , संयम और वैराग्य में वृद्धि करती है और शत्रुओं का नाश करती है। नवरात्री के दूसरे दिन मांँ को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाने से लंबी आयु का वरदान मिलता है। आज के दिन माँ के "या देवी सर्वभूतेषु मांँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।" मंत्र का जप किया जाता है।
ब्रह्मचारिणी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मांँ ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये बहुत कठिन तपस्या की , इसीलिये इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। मांँ ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताये और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर जीवन निर्वाह किया। इसके बाद मांँ ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं , टूटे हुये बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।.इससे भी जब भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुये तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं , पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। मांँ ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई। इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। मांँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिये।
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