Breaking

अपनी भाषा चुने

POPUP ADD

सी एन आई न्यूज़

सी एन आई न्यूज़ रिपोर्टर/ जिला ब्यूरो/ संवाददाता नियुक्ति कर रहा है - छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेशओडिशा, झारखण्ड, बिहार, महाराष्ट्राबंगाल, पंजाब, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटका, हिमाचल प्रदेश, वेस्ट बंगाल, एन सी आर दिल्ली, कोलकत्ता, राजस्थान, केरला, तमिलनाडु - इन राज्यों में - क्या आप सी एन आई न्यूज़ के साथ जुड़के कार्य करना चाहते होसी एन आई न्यूज़ (सेंट्रल न्यूज़ इंडिया) से जुड़ने के लिए हमसे संपर्क करे : हितेश मानिकपुरी - मो. नं. : 9516754504 ◘ मोहम्मद अज़हर हनफ़ी - मो. नं. : 7869203309 ◘ सोना दीवान - मो. नं. : 9827138395 ◘ आशुतोष विश्वकर्मा - मो. नं. : 8839215630 ◘ सोना दीवान - मो. नं. : 9827138395 ◘ शिकायत के लिए क्लिक करें - Click here ◘ फेसबुक  : cninews ◘ रजिस्ट्रेशन नं. : • Reg. No.: EN-ANMA/CG391732EC • Reg. No.: CG14D0018162 

Sunday, April 25, 2021

किसानों के लिए सोयाबीन का विकल्प बन सकता है कालमेघ... किशोर



सी एन आई न्यूज़ बेमेतरा

बेमेतरा नवागढ़ जिले के किसान औषधीय खेती को प्राथमिक फसलों के तौर पर अभी तक नहीं करते थे, लेकिन यह चलन अब बदल रहा है। छत्तीसगढ़ में 2,50,0 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय खेती की जाती है। यहां के किसानों ने कई औषधीय पौधों की व्यावसायिक खेती करके ना केवल पारंपरिक खेती की तुलना में अच्छा मुनाफा कमाया बल्कि पास-पड़ोस के किसानों को औषधीय खेती के गुर सिखाकर उनकी सहायता भी की। प्रदेश के कोरबा,जशपुर, सरगुजा,बिलासपुर,बेमेतरा, धमतरी,बस्तर,कोंडागांव, राजनादगांव,कवर्धा ,बलौदा बाज़ार भाटापारा जिलों में औषधीय खेती बड़े पैमाने में की जाती है।


इसकी खेती को किसान नकदी फसल के रुप में करते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे एंड्रोग्रेफिक्स पैनीकुलाटा भी कहते हैं। इसके अंदर मिलने वाले तत्व प्रदूषित जल, वायु व इससे उपजने वाले खाद्यानों से पैदा होने वाली बीमारियों से लडऩे के गुण तो हैं ही इसकी पत्तियों से निकलने वाली मेघनीन तत्व में काल को भी मात देने की क्षमता है।


लीवर या यकृत सहित जानलेवा बीमारी ज्वाइंडिस या पालिया की बीमारी के लिए यह रामबाण है। व्याराजाइड व लिव-52 कैप्सूल या सिरप कालमेघ औषधी से ही बनती है। इसकी नर्सरी अप्रैल के पहले सप्ताह में डाली जाती है और रोपाई जून-जुलाई में होता है। इसकी डिमांड भारत ही नहीं दुनियाभर में है। खपत के चलते ही यहां के किसानों ने इसे व्यवसायिक खेती के रुप में अपना लिया है।


भूमि की तैयारी व रोपाई


30-35 दिन बाद नर्सरी तैयार होने से 5 टन गोबर या कंपोस्ट खाद प्रति एकड़ मिलाकर पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। खरपतवार को नष्ट कर दें। इसके बाद प्री मानसून में ही इसकी रोपाई करें। कई दिनों तक बारीश न होने पर हल्की सिंचाई करें। ज्यादा पानी होने से पौधे लोट जाते हैं। पौधे का विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। पौधे से पौधे व कतार से कतार की दूरी 35 बाई 35 सेमी होना चाहिए। इसका पौधा मिर्चे के पौधे की तरह होता है। पत्ते भाला के आकार के होते हैं और 2-3 फूट ऊंचा होता है। तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएं निकलती हैं। यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है।


निराई-गुड़ाई व सिंचाई

प्रारंभ में पौधे छोटे होते हैं। जब पौधे जड़ पकड़ लेते हैं तो करीब एक माह बाद खेत की निराई-गुड़ाई कर किसी जैविक खाद का प्रयोग कर पौधे पर मिट्टी चढ़ा देने से पौधे की बढ़वार तीब्र गति से होती है। अक्टूबर में एक या दो सिंचाई के बाद फसल की तैयारी तक पानी देने की आवश्यकता नहीं होती।


कटाई

लगभग 5 माह बाद फसल पक जाती है। कालमेघ का संपूर्ण पौधा प्रयोग में लाया जाता है। ऐसे में पौधों को उखाडऩे के लिए खेत में हल्की नमी का होना जरुरी है। जड़ समेत पौधों को उखाडऩा चाहिए। जड़ से मिट्टी साफ करने के बाद लाठी से पीटकर बीजों को निकाल दिया जाता है।


उपज

किशोर राजपूत बताते हैं कि उनको एक एकड़ खेत में 26 क्यूंटल कालमेघ पंचाग की प्राप्ति हुई है। बाजार में यह 30 रुपये किलो में बिका है। इस प्रकार एक एकड़ खेत में करीब 78 हजार की आय होता है।


लाभकारी


यह कफ, पित्त का समन व लीवर को शक्ति प्रदान करने वाली दुलर्भ बूंटी है। पेट में जमा मल विकार की सफाई और भूख न लगने की ब्याधि का कालमेघ से तत्काल निवारण होता है। वैद्य के बताएनुसार इसका इस्तेमाल करना चाहिए। यदि सुबह एक चम्मच शुद्धजल से कालमेघ का सेवन करें तो न केवल यकृत को ताकतवर बनाया जा सकता है बल्कि ज्वाइंडिस को भी भगाया जा सकता है।


हालांकि खाने में यह कड़वा होता है लेकिन आंख मूंदकर शहद के साथ फांका जा सकता है। कैसा भी पुराना बुखार हो या ज्वर के बाद रक्त की अशुद्धि दूर करने व मलेरिया के कारण प्लीहा में हुई वृद्धि को भी कालमेघ से दूर किया जा सकता है। त्वचा रोग, कब्ज, सुगर, कीडनी की बीमारी, पेचिस, सिरदर्द, ब्रोंकाइटिस में भी यह लाभकारी है। कालमेघ के सेवन से डेंगू, चिकनगुनिया, टाईफाइड आदि से छुटकारा मिलता है। इसके पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल, फूल) चूर्ण एक से तीन ग्राम को स्वरस पांच से दस मिलीलीटर और आधा कप हल्का गुनगुने पानी में चार-पांच बूंद शुद्ध शहद मिलाकर निहार मुंह लेने से फायदा होता है।


सी एन आई न्यूज़ बेमेतरा छत्तीसगढ़ देव यादव की खबर मो 9098647395

No comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in the comment box.

Hz Add

Post Top Ad