हम साहित्यकार और हिन्दी साहित्य।
छत्तीसगढ़ । "कथनी करनी भिन्न जहाँ, धर्म नहीं पाखंड हैं वहाँ" इस वाक्य से अपनी बात रखना चाहूंगा जी आज सभी लोग जो भी पर्व त्यौहार आते हैं उस बड़ी बड़ी बातें करते हैं महिमा मंडित करते हैं परंतु जैसे भी वह पल निकलता है हम लोग वहीं पर आ जाते हैं जहां पर से चलना शुरू किए थे।बात कड़वी है पर बात में सच्चाई है।आज कल साहित्य सेवा कम प्रचार प्रसार ज्यादा हो रहा है जिनके पास बोलने की कला है, जिनका व्यक्तित्व दिखने में सुंदर सभ्य नजर आता है परंतु वह व्यक्ति अंदर से कुछ और बाहर से कुछ दिखते और दिखाते है वही लोग समाज में सम्मानित हो जाते हैं। दूसरा क्षेत्र चाटुकारिता का है।जितना आप मीठा मीठा बोलोगे लोग आपको पसंद करेंगे आप से संबंध रखना चाहेंगे जैसे ही आप सच बोलना शुरू करेंगे आपको अपना दुश्मन समझेंगे या दूध में पड़े मक्खी की तरह बाहर कर देंगे।किसी दिन आपका अस्तित्व समाप्त कर देंगे।
जो भी साहित्यकार होते हैं उनका जीवन तलवार की धार पर चलना होता है।समाज का पथ प्रदर्शक होता है सच को सच और झूठ को झूठ कहने की ताकत होनी चाहिए किसी भी तरह की मानसिक, शारीरिक, सामाजिक आर्थिक दंड के लिए तैयार रहना चाहिए।अपनी लेखनी से जो बात कही है उनके लिए हर पल हर क्षण उसके परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए परंतु आज ऐसा होता नहीं है। कलम से अच्छी से अच्छी बात लिख लेते हैं वास्तविक जीवन में कुछ और होते हैं।साहित्यकार जो भी देखे उसे लिखे किस पर क्या प्रभाव पड़ता है उसे भविष्य की गर्भ में छोड़ दें।उनका परिणाम भविष्य में बेहतरीन ही आएगा।मनुष्य भले ही मर जाए परंतु उनका विचार हमेशा जिन्दा रहता है कम शब्द में अधिक बात कहनी आनी चाहिए ।समाज तंत्र और राज तंत्र की भय से हम सच लिख नही पाते जिनके कारण समाज गर्त में चला जाता है।आज अच्छे साहित्य को कोई पढ़ना नहीं चाहता है सच कोई सुनना नही चाहता है। हम बात तो बड़ी बड़ी करते हैं परंतु वास्तविक जीवन में कुछ और होते हैं इसलिए समाज में परिवर्तन नहीं आता है कुछ दिन वाह वाही मिल जाती है उसके बाद फिर वही अंधेरी रात होती है।
इस समय में हिन्दी साहित्यकारों की जिम्मेदारी बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है कि हिन्दी साहित्य को कैसे आगे बढ़ाया जाए हम समाज में मनोरंजन के लिए लिखे या समाज को दर्पण बनकर उनका वास्तविक चेहरा दिखाएं।
आज समाज में बाल अपराध, महिला अपराध के अंतर्गत जितने भी धारावाहिक बन रहे हैं उसमें एक महिला को ही महिला का दुश्मन बनाकर पेश किया जाता है जिसके कारण अपराधिक घटनाएं बड़ी है।फूहड़पन, फिजूल खर्ची, नशा, अंध विश्वास, अपराधिक मामले, भ्रष्टाचार, राजनीतिक और सामाजिक षड्यंत्र, विज्ञापन बाजी, गुंडा गर्दी , फैशन परस्ती, धर्म संस्कृति,जाति ,मजहब और शिक्षा के नाम लूट चल रहा है ।इस भी साहित्यकारों को कलम चलाना चाहिए ।
हम साहित्यकार और हिन्दी साहित्य विषय में जितना लिखे कम है।पूर्व में क्या हुआ उनसे सबक ले और भविष्य को क्या बेहतर दे सकते हैं उनके बारें में चिंतन मनन करना होगा तभी हिन्दी साहित्य और साहित्यकार जीवित रह पाएंगे लोग लुभावना से बचे परंतु जो भी लिखे साहित्य और साहित्यकार की मर्यादा में रहकर लिखे।ये मेरा व्यक्तिगत विचार है कोई समर्थन भी कर सकता है या विरोध भी। हम कुछ भी लिख ले जैसे नाटक, गीत, कविता, कहानी, एकांकी, संस्मरण चाहे वह गद्य और पद्य की किसी भी विधा में हो अगर समाज का सामाजिक परिवर्तन नहीं करता है तो वह केवल मनोरंज कर रहा होता है।कुछ समय बाद इतिहास के पन्नों में कहीं खो जाता है।इसीलिए भले ही कम लिखो परंतु बम लिखो आपके विचार को जो भी व्यक्ति पढ़े उसे अंदर से अंतरात्मा से परिवर्तित हो जाए उसे लगने लगे ये बात तो मेरे लिए ही लिखा गया है।आज हम सभी लोग स्टेट्स अच्छा दिखने के लिए लिखते हैं।आज राष्ट्र भाषा होकर भी राष्ट्र में उनको सम्मान नही मिल रहे हैं तो उसके जिम्मेदार भी हम लोग ही हैं क्योंकि हम कहते कुछ और लिखते कुछ और है।
हमारे जितने भी संत समाज, सुधारक हुए हैं वही लोग असल में साहित्यकार होते थे संत कबीर, तुलसी, दादू, रवि दास, नानक, बिहारी ठाकुर, मुंशी प्रेमचन्द आदि।
तुलेश्वर कुमार सेन
सलोनी राजनांदगांव
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