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Monday, February 10, 2025

महाकुम्भ पर संगम में क्यों नहाते हैं ?? गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए. ..

 महाकुम्भ पर संगम में क्यों नहाते हैं ??



गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए. ..

सी  एन आइ न्यूज़ पुरुषोत्तम जोशी। 

प्रयागराज, गंगाजी नदी के जल का केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व नहीं है. वैज्ञानिक अनुसंधान में गंगाजल के बारे में कई चौंकाने वाली बातों का खुलासा हो चुका है. गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा में न जाने कितने प्रदूषण प्रवाहित होते हैं इसके बावजूद इसकी पवित्रता पर कोई सवाल नहीं. सालों साल बोतलों में बंद गंगाजी का जल कभी खराब नहीं होता. आखिर क्या है इसकी वजह ?





गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाए…युग-युग से इस देश की धरती, तुझसे जीवन पाए. साल 1971 की फिल्म के इस गीत को साहिर लुधियानवी ने लिखा और आवाज दी- मोहम्मद रफी ने. गीत के मुखड़े में गंगा नदी की पवित्रता और उपयोगिता को जिन शब्दों में बताया गया है, वह इसकी पौराणिकता और वैज्ञानिकता दोनों को जाहिर करता है.




 गंगा युग-युग से बह रही है और आम और खास सबको जीवन प्रदान कर रही है. गंगा चाहे अविरल बहे या बोतलों में बंद रहे, इसे जीवनदायी क्यों कहते हैं? गंगा मैली और प्रदूषित होकर भी पवित्र क्यों कहलाती है? सालों साल बोतलों में बंद गंगा का पानी कभी ना तो संड़ता है और ना ही उसमें कभी बदबू आती है.


गंगा की पौराणिकता से सभी वाकिफ हैं लेकिन आज हम इसके वैज्ञानिक पहलू के बारे में कुछ जानकारियां सामने रखेंगे. गंगा के पानी को दूसरी नदियों के मुकाबले अमृत क्यों कहा जाता है ?


महाकुंभ के ऐतिहासिक मौके पर इन दिनों प्रयागराज में गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है. शाही स्नान पर करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं. इनमें देश ही नहीं बल्कि विदेश के भी लाखों श्रद्धालु शामिल हैं. अखाड़ों के हजारों संत और प्रमुख अमृत स्नान कर रहे हैं. गंगा में डुबकी लगाने की प्रक्रिया को अमृत स्नान कहा जाता है.



आखिर ये अमृत क्या है? वैज्ञानिक रिपोर्ट में बताया गया है गंगा के पानी में ऐसे वायरस हैं जिसका असर एंटीबायोटिक्स जैसा होता है. मेडिकल साइंस में एंटीबायोटिक्स रोग-विकार दूर करने के लिए जाने जाते हैं. यानि गंगाजल अमृत सरीखा है जो इंसानों को निरोग बनाता है.


गंगाजल को एंटीबायोटिक क्यों कहते हैं?


श्रद्धालु गंगा में आस्था भाव से डुबकी लगाते हैं, लेकिन इसके वैज्ञानिक पहलू को कम ही जानते हैं. भारत में कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ जैसे कई ऐसे मौके आते हैं जब हिंदू मान्यताओं में विश्वास करने वाले श्रद्धालु गंगा, नर्मदा या अन्य नदियों में स्नान करते हैं. जिसके बाद श्रद्धालु ना केवल संतुष्टि प्राप्त करते हैं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा भी महसूस करते हैं. देश और विदेश के वैज्ञानिकों ने इसे अजूबा मानते हुए गंगाजल की शक्ति पर गहराई से अध्ययन किया.


प्रयोगशालाओं में टेस्ट किया गया और फिर रिपोर्ट तैयार की. इन्हीं में से दी रॉयल सोसायिटी जर्नल ऑफ द हिस्ट्री ऑफ साइंस (The Royal Society Journal Of The History Of Science) की एक रिपोर्ट भी है जिसमें गंगा के पानी की खूबियों के बारे में विस्तार से बताया गया है.


वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कहती है प्रदूषित होकर भी गंगाजल को पवित्र मानने का रहस्य सालों पुराना है. टेस्ट के बाद देखा गया है कि गंगा का पानी कई सालों तक खराब नहीं होता. गंगा को छोड़कर किसी भी नदी का पानी लंबे समय तक बोतल में रखा नहीं जाता. बाजार में आजकल पानी की ब्रांडेड बोतलों की भरमार है लेकिन उसे सालों साल नहीं रखा जा सकता. हिंदू आख्यान कहता है- गंगा धरती पर सीधे स्वर्ग से धरती पर उतरी है. गंगा का मिशन इंसानों को जीवन देना है. प्राकृतिक कहर या किसी अन्य वजहों से भले ही गंगा में अनगिनत लाशें बहा दी जाएं लेकिन गंगा का पानी फिर भी स्वच्छ और पवित्र ही रहता है.


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गंगा मैय्या जी में मौजूद हैं बैक्टीरियोफेज


वैज्ञानिकों ने कहा कि गंगा नदी के पानी में बैक्टीरियोफेज होते हैं. यह एक प्रकार का वायरस है जो कि पानी में बैक्टीरिया की मात्रा को बढ़ने नहीं देता. गंगा का पानी हमेशा बैक्टीरिया फ्री होता है, इसीलिए इसका एक नाम सदानीरा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक बैक्टीरियोफेज प्रोटीन से बने होते हैं. जहां बैक्टीरियोफेज नहीं होते वहां बैक्टीरिया ज्यादा घातक होता है.


वैज्ञानिकों ने माना है कि भारत की सभी नदियों में गंगा में बैक्टीरियोफेज की मात्रा सबसे अधिक है इसलिए यहां खतरनाक बैक्टीरिया न के बराबर होता है. या होता भी है तो जल्द ही नष्ट हो जाता है.


बैक्टीरियोफेज ऐसा वायरस है जो हजारों हानिकारक सूक्ष्मजीवों को मार देते हैं. बैक्टीरियोफेज के अलावा गंगा में और भी कई रोग निवारक तत्व होते हैं. गंगा गंगोत्री से गंगासागर तक देश के कई बड़े शहरों से होकर गुजरती है. हर शहर से गंगा में अलग-अलग किस्म का कचरा प्रवाहित होता है. वैज्ञानिकों के दल ने यह भी पाया है कि कानपुर या ऐसे औद्योगिक नगरों के किनारे बहने वाली गंगा में खतरनाक किस्म के प्रदूषण डाले जाते हैं बावजूद इसके पानी में निहित बैक्टीरियोफेज इसके दुष्प्रभाव को जल्द ही नष्ट कर देते हैं और गंगा निर्मल के निर्मल रहती है.


वैज्ञानिकों ने रिसर्च में बताया है कि गंगा में केवल बैक्टीरियोफेज वायरस ही नहीं होते बल्कि पोटीविरिडे, लैम्ब्डावायरस, रेट्रोवायरस के., पैपिलोमावायरस और अल्फापोलोमावायरस भी होते हैं, जो मिलकर एंटीबायोटिक्स बनाते हैं.


संगम में स्नान का क्या है महत्व ??


गंगा और यमुना नदी के मिलन स्थल को संगम कहा जाता है. यह प्रयागराज में है. इसी संगम के तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. यहां स्नान करने की सबसे अधिक होड़ रहती है. इसका धार्मिक पौराणिक महत्व भी है. ब्रिटेन के वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैनबरी हैंकिन ने आज से करीब सवा सौ साल पहले संगम के पानी पर रिसर्च किया था. साल था- 1896. हैंकिन ने ही गंगा के पानी में बैक्टीरियोफेज की खोज की थी. हैंकिन को इस बात की जानकारी पहले से थी कि भारत में गंगाजल को रोगनिवारक के तौर भी जाना जाता है, जिसका वर्णन प्राचीन धार्मिक साहित्य में किया गया है. उनकी जिज्ञासा का आधार यह था कि आखिर गंगा स्नान को पाप से छुटकारा दिलाने वाला क्यों कहते हैं. संगम पर कुंभ मेले में इतनी संख्या में लोग क्यों आते हैं?


अर्नस्ट हैनबरी हैंकिन ने गंगा और यमुना नदियों के पानी में एंटीसेप्टिक तत्व की मौजूदगी की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि भारतीय नदियों में एंटीसेप्टिक पदार्थ नदी में ही बनता है. अर्नस्ट हैनबरी हैंकिन ने यह भी बताया कि गंगा का बिना उबाला हुआ पानी तीन घंटे से कम समय में हैजा जैसी बीमारियों के कीटाणुओं को मार देने की क्षमता रखता है. हैंकिन कैम्ब्रिज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फेलो थे, लंदन में प्रशिक्षण लिया था. उनका मानना था कि गंगा और यमुना नदियों के आसपास की आबादी को इन नदियों का पानी पीने से कभी हैजा नहीं हुआ.


अर्नस्ट हैनबरी हैंकिन के अलावा भी हुए कई रिसर्च


अर्नस्ट हैनबरी हैंकिन के अलावा गंगा के पानी को लेकर कई रिसर्च हुए हैं. 1916 में फेलिक्स डी हेरेल ने और यूरोप के ही एक खोजी पत्रकार विक्टर मैलेट ने भी गंगा के बारे में लिखा कि यह ‘जीवन की नदी, मृत्यु की नदी’ है. यह जहरीली होकर भी पूजनीय है. हालांकि विक्टर मैलेट ने ये भी खोज किया था कि गंगाजल की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे अब कम हो रही है, इसकी वजह गंगा का अत्यधिक प्रदूषित होना है. गंगाजल में कीटाणुओं को मारने की क्षमता पहले से कम हुई है. IIT रुड़की और CSIR ने गंगाजल में 20 से अधिक प्रकार के मारक तत्वों की पहचान की है जोकि हैजा ही नहीं बल्कि टीबी, निमोनिया जैसे रोगों के कीटाणुओं से भी लड़ते हैं.


NIRI के अनुसंधानकर्ता डॉ. कृष्ण खैरनार ने 50 अलग-अलग जगहों से गंगा का पानी के सैंपल लेकर रिसर्च किये थे. उन्होंने पाया कि गंगा नदी में खुद को शुद्ध करने की मशीन है. यानी गंगा अपने पानी को खुद ही शुद्ध करती रहती है. उन्होंने कुंभ मेले के दौरान भी सैंपल जमा किए थे. उन्होंने पाया कि गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा देश की बाकी सभी नदियों के मुकाबले सबसे अधिक है.


वैज्ञानिकों की टीम ने अपने अध्ययन में यह भी बताया है कि गंगा नदी का पानी सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र और स्वच्छ है. अन्य नदियों की तुलना में गंगा में रोगाणुओं, भारी धातुओं और जहरीले तत्वों को मारने की क्षमता कहीं अधिक है. गंगा के बाद ही नर्मदा और यमुना नदी आती है जहां का पानी लोगों को रोगाणुओं से दूर रखता है.


इन अध्ययनों के बाद देशवासियों को इस बात पर भरोसा कायम हुआ कि गंगा और इसकी सहायक नदियों में कुछ तो ऐसे तत्व जरूर हैं जो इंसान की जिंदगी को शक्ति प्रदान करते हैं. ऊर्जावान बनाते हैं और निरोग रखते है।


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