कर्नाटक के कित्तूर नामक स्थान पर एक बड़ा किला था ।इसकी किले के राजा का नाम था मल्लसर्ज। जिसकी चार पत्नियां थी। सबसे छोटी रानी चेन्नम्मा थी। चेन्नम्मा अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान थी ।वह प्रजा का बहुत ध्यान रखती थी। मल्लसर्जअल्पायु रहे ब।ड़ी रानी का पुत्र रूद्रसर्ज पिता की मृत्यु के समय 18 वर्ष का था। रूद्रसर्ज नादान था। वह अपने धोखेबाज मंत्रियों मल्लप्पा शेट्टी और वेंकट राय को काम काज सौंप कर विलास में डूबा रहता। चेन्नम्मा ने अपने पुत्र को सलाह दी कि वह पेशवा के साथ मिलकर अंग्रेजों को परास्त करें। किंतु वह अपने मंत्रियों के कहने परअंग्रेजों के साथ मिल गया ।धूर्त अंग्रेजों ने पेशवा को हरा दिया और कित्तूर का राज्य हड़पने की योजना बनाई। रूद्रसर्ज का पुत्र 1 वर्ष की आयु में ही चल बसा। उत्तराधिकारी ना होने के कारण चित्तूर राज्य को अंग्रेजों को सौंपने वाले दस्तावेजों पर अंग्रेजों और मंत्रियों ने रूद्रसर्ज के हस्ताक्षर करवा लिए ।रानी चेन्नम्मा अत्यंत दुखी हो गई। उसने अपने विश्वासपात्र सेनापति रायण्णा और बालण्णा से शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की और कुछ ही समय में कुशल भी बन गई।वह घुड़सवारी में अत्यंत प्रवीण थी।
दुर्भाग्य से रूद्रसर्ज भी स्वर्ग सिधार गया ।उसके शोक के दिन अभी पूरे नहीं हुए थे कि अंग्रेजों ने पत्र भेजकर कित्तूर को अंग्रेजी राज्य में मिलाने का आदेश दिया। रानी चेन्नम्मा अत्यंत क्रोधित हो गई उसने बालण्णा और रायण्णा को बुलाया और अंग्रेजों से लोहा लेने की तैयारी की ।चेन्नम्मा में अपनी प्रजा को भी अत्यंत ओजस्वी वाणी में ललकारा। धोखेबाज मल्लप्पा और वेंकटराय मंत्रियों को बताया कि अब आप महामंत्री नहीं रहे ।उसने अंग्रेजों को पत्र लिखकर स्पष्ट रूप से कहा कि राजा के अभाव में कित्तूर पर प्रजा का राज्य रहेगा।
19 नवंबर 1824 को सेनापति बैंकर एक बड़ी सेना लेकर कित्तूर पहुंचा। उसे लगा रानी की छोटी सी सेना कुछ घंटों में ही हार जाएगी। पर चेन्नम्मा स्वयं घोड़े पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर अंग्रेजों को काटते हुए आगे बढ़ रही थी। बालण्णाऔर रायण्णा की रणनीति काम आई। रानी की सेना ने बैंकर को भी मार डाला जिसे अंग्रेजी सेना घबरा गई। किंतु अंग्रेजी अंग्रेजों की सहायता के लिए तीसरी रेजिमेंट आ गई ।रानी जहां जाती वहां शवों का अंबार लग जाता। रानी के विश्वासपात्र सहयोगी मारे जाने लगे। अवसर पाकर अंग्रेजों ने रानी को चारों ओर से घेर कर बंदी बना लिया ।बालण्णा और रायण्णा भी बंदी बना लिए गए ।अन्य बंदियों को अंग्रेजों ने धारवाड़ में फांसी की सजा सुना दी। किंतु रानी पर सवा वर्ष तक न्यायालय में मुकदमा चलाने का ढोंग किया और 21 फरवरी 1829 को रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया। तोप के सामने खड़े होते समय रानी का मस्तक गर्व से उन्नत था उसकी आंखों में स्वाभिमान का तेज झलक रहा था ।
दक्षिण भारत में आज भी महिलाएं वीरांगना चेन्नम्मा की वीरता के गीत बड़े गौरव से
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