अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
बेंगलुरु -- कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री का नाम तय हो गया है। राज्य के गृहमंत्री बसवराज बोम्मई सूबे के नये मुख्यमंत्री होंगे , उन्हें विधायक दल की बैठक में विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। आज देर शाम विधायक दल की बैठक में इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बोम्मई के नाम का प्रस्ताव रखा , जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। विधायक दल की बैठक में केन्द्रीय मंत्री किशन रेड्डी और धर्मेन्द्र प्रधान समेत राज्य के कई बड़े नेता भी मौजूद रहे। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बोम्मई कल बुधवार को दोपहर तीन बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। बता दें कि बी०एस० येदियुरप्पा ने सोमवार को ही अपने पद से इस्तीफे के ऐलान किया और दोपहर होते होते राज्यपाल को अपना इस्तीफा भी सौंप दिया।बीते दिन ही कर्नाटक की भाजपा सरकार को दो साल पूरे हुये हैं। सूत्रों की मानें तो येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने से पहले ही बोम्मई का नाम भाजपा आलाकमान को सुझा दिया था। बसवराज बोम्मई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से भी आते हैं। संघ के शीर्ष नेतृत्व के बेहद करीबी हैं। माना जाता है कि संघ और येदियुरप्पा के बीच की कड़ी के रूप में इन्होंने ही काम किया। येदियुरप्पा से संघ के बिगड़े रिश्तों का असर येदियुरप्पा के कामकाज पर ना पड़े इसमें भी बड़ी भूमिका बोम्मई ने निभायी थी।दरअसल भाजपा को कर्नाटक में तीन कोण साधने थे। पहला पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा , दूसरा लिंगायत समुदाय और तीसरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं। संघ की पृष्ठभूमि के भी है, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा से निष्कासित होने के बाद उनके और संघ के शीर्ष नेतृत्व के संबंधों के बीच दरार आ गई थी। संघ कभी नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा भाजपा में वापस आये लेकिन वर्ष 2013 के चुनाव में बिना येदियुरप्पा के भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी , लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया। कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिये येदियुरप्पा को हटाना आसान नहीं था , उनको हटाने का मतलब था इस समुदाय के वोट खोने का खतरा मोल लेना। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीएस येदियुरप्पा को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। अलग होने के बाद येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी (केजपा) बनायी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत वोट कई विधानसभा सीटों में येदियुरप्पा और भाजपा के बीच बंट गया था। विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों से घटकर 40 सीटों पर सिमट गई थी। उसका वोट प्रतिशत भी 33.86 से घटकर 19.95% रह गया था। येदियुरप्पा की पार्टी को करीब 10% वोट मिले थे। वर्ष 2014 में येदियुरप्पा की वापसी फिर भाजपा में हुई , यह येदियुरप्पा का ही कमाल था कि कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 17 लोकसभा सीटें जीतीं।
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