जांजगीर चांपा - भगवान की शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप श्रीभगवान के नामोच्चारण से ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्य के उदय होने पर कोहरा नष्ट हो जाता है। जिन्होंने अपने भगवद् गुण अनुरागी मन मधुकर को भगवान श्रीकृष्ण के चरणारविन्द मकरन्द का एक बार पान करा दिया , उन्होंने सारे प्रायश्चित कर लिये। वे स्वप्न में भी यमराज और उनके पाशधारी दूतों को नहीं देखते। दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन संगत से भी मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
उक्त बातें काशी - वृंदावन से पधारे पं० विश्वकांताचार्य जी महाराज ने आज हनुमान धारा रोड में आयोजित संगीतमय श्रीमद्गभागवत कथा के तीसरे दिन अजामिलोपाख्यान का वर्णन करते हुये कही। आचार्य श्री ने बताया कि अजामिल कान्यकुब्ज ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। आगे चलकर एक दिन वह वेश्यागमन करते हुये अपने धर्म से विमुख हो गया। उस कुलटा को प्रसन्न करने के लिये अजामिल ने अपने पिता की सारी सम्पत्ति भी दे डाली व अपनी कुलीन नवविवाहिता पत्नी तक का त्याग कर दिया। धन पाने की चेष्टा में वह कभी बटोहियों को बाँध कर उन्हें लूट लेता , कभी लोगों को जुये के छल से हरा देता , किसी का धन धोखा-धड़ी से ले लेता तो किसी का चुरा लेता। इसी बीच एक दिन संतों का एक काफिला अजामिल के गांव से गुजर रहा था। यहां पर शाम हो गई तो संतों ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखकर साधुओं को भला बुरा कहने लगा , लेकिन पत्नी के समझाने पर शांत हुआ। पत्नी ने साधु संतों की शक्तिनुसार सेवा की। दूसरे दिन वहां से जाते समय साधुओं ने कहा कि तुम अपने होने वाले पुत्र का नाम तुम नारायण रख लेना , बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। वृद्ध अजामिल ने पुत्र मोह में अपना सम्पूर्ण ह्रदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। उसकी तोतली बोली सुनकर अजामिल फूला ना समाता , उसे अपने साथ ही खिलाता-पिलाता व उसी के मोहपाश में बंधा रहता।
वह मूढ़ इस बात को जान ही ना पाया कि काल उसके सर पर आ पहुँचा है।अजामिल की मृत्यु का समय आने पर उसने देखा कि उसे ले जाने के लिये अत्यंत भयावने यमदूत आये हैं, यमदूतों की भयावह छवि से व्याकुल अजामिल ने बहुत ऊँचे स्वर से ‘नारायण’ ‘नारायण’ पुकारा। भगवान के पार्षदों ने देखा कि यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान नारायण का नाम ले रहा है अतः वे झटपट वहाँ आ पँहुचे। उस समय यमदूत अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्म शरीर को खींच रहे थे , विष्णु दूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोका। यमदूतों ने कहा कि इस पापी अजामिल ने शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करके स्वच्छंद आचरण किया है। इसका सारा जीवन पापमय है और इस पापी के पापों का प्रायश्चित दंडपाणि भगवान यमराज के पास नरक यातनायें भोगकर ही होगा।भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूतों ! इसने कोटि जन्म की पाप राशि का पूरा-पूरा प्रायश्चित कर लिया है क्योंकि इसने विवश हो कर ही सही , भगवान के परम कल्याणमय (मोक्षप्रद) नाम का उच्चारण किया है। जिस समय इसने ‘नारायण’ इन चार अक्षरों का उच्चारण किया , उसी समय इस पापी के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया।अजामिल ने श्रीभगवान का नाम नारायण का उच्चारण किया है अतः यमदूतों तुम अजामिल को मत ले जाओ। भगवान के पार्षदों ने भागवत धर्म का पूरा-पूरा निर्णय सुना दिया व अजामिल को यमदूतों के पाश से बचा कर मृत्यु के मुख से छुड़ा लिया। इसलिये कहा गया है कि भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भागवताचार्य ने बताया कि मनुष्य के सबसे बड़ा दुःख का कारण माया रूपी बन्धन ही है। यह माया तब तक पीछा नही छोड़ती जब तक मायापति कृपा ना करे। जड़भरत-चरित्र का वृतान्त सुनाते हुये भागवताचार्य ने कहा कि जीवन के अंत समय में मनुष्य जिस वस्तु या जीव में अपना मन डाल देता है उस जीव की अगली जन्म उसी योनि में होती है।
जिस प्रकार जड़भरत मृग के बच्चे में इतना आशक्त हो गया कि अपनी दैनिक क्रिया कर्म को छोड़ कर केवल मृग के बच्चे में ही ध्यान लगाने के कारण उनका अगला जन्म मृग योनि में हुआ। इसी तरह सती चरित्र कथा का श्रवण कराते हुये आचार्यश्री ने कहा कि सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि बिना बुलाये कहीं जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। इसके बावजूद माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पहुंच गई। पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस-नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे। भगवन विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये। जहां शरीर का टुकड़ा गिरा वहां-वहां शक्तिपीठ बनी। इस संगीतमय श्रीमद्गभागवत कथा में पं०विरेन्द्र तिवारी (आचार्य) , पं० श्रीराम चौबे (उपाचार्य) , पं० उमेश पांडेय (भागवत पारायण) ,पं० अवनीश मिश्रा (आर्गन) ,पं० अखिलेश मिश्रा ( तबला) ,पं० शशी पांडेय (पैड) की सहभागिता हो रही है। कथा के आयोजक पं० मोहन द्विवेदी ने चर्चा के दौरान अरविन्द तिवारी को बताया कि दिनांक 18 दिसंबर शनिवार तक प्रतिदिन सुबह नौ बजे से कांशी के आचार्य पं० विरेंद्र तिवारी एवं पं० श्रीराम चौबे द्वारा रूद्राभिषेक भी कराया जा रहा है। जो भी श्रद्धालु सपरिवार इस अभिषेक में शामिल होने के इच्छुक हों वे एक दिन पहले अरविन्द तिवारी के मोबाइल नंबर 8839259771 पर अपना पंजीयन कराकर पूजन सामाग्री के साथ शामिल हो सकते हैं। कामधेनु सेना के प्रदेश प्रवक्ता जयप्रकाश द्विवेदी ने सभी श्रद्धालुओं से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुये श्रीमद्भागवत कथा एवं रूद्राभिषेक कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की है।
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