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Saturday, January 8, 2022

जिले के गौरव : कम्बल कीड़े पर लिखी पुस्तक जर्मनी से हुई प्रकाशित

 स्वास्थ्य

जिले के गौरव : कम्बल कीड़े पर लिखी पुस्तक जर्मनी से हुई प्रकाशित


सीएन आई न्यूज सिवनी (म.प्र.)से जिला ब्यूरो की रिपोर्ट

सिवनी। कंबल कीड़ा, सिवनी एवं आसपास के जिलों मे यह कीड़ा अलग-अलग नामों से जाना जाता है। ग्रामीण अंचलों में जुलाई अगस्त सितंबर महीनों में इस कीड़े का प्रकोप देखने को मिलता है अक्सर यह कीड़ा घरों की छतों एवं खपरैल वाले मकानों में बहुतायत में देखने को मिलता है। इस कीड़े के बालों का त्वचा से संपर्क होने से बहुत तेज खुजली होने लगती है तथा त्वचा में दाने आ जाते हैं।


इस कीड़े के जीवन चक्र की खोज करके डॉक्टर दिनेश गौतम शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अरी एवं उनके सहयोगी बबीता गौतम, डीपी चतुर्वेदी कॉलेज सिवनी, महेश गौतम प्राचार्य शासकीय उत्कृष्ट स्कूल सिवनी ने एक किताब लिखी है जिसका नाम नेपिटा कन्फर्टा एंड लेपिडॉप्टरिज्म है। डॉक्टर गौतम ने इस विषय पर विस्तृत चर्चा में यह बताया कि इस कीड़े का वैज्ञानिक नाम नेपीटा कंफर्टा है यह नाम 1864 में वाकर नामक वैज्ञानिक ने दिया।

किंतु इस विषय पर विशेष खोज नहीं की गई है लगभग 150 साल बाद डॉ गौतम एवं उनके सहयोगियों के द्वारा इस कीड़े का संपूर्ण जीवन चक्र पर अनुसंधान किया गया जिसमें नर एवं मादा तितली (मोथ) की पहचान, उनके संसर्ग काल, अण्डो से लारवा एवं मेटामारफोसिस के बाद बनने वाली मोथ का अध्ययन किया गया । डॉ गौतम ने यह बताया कि इन कैटरपिलर्स के यूटरिकेटिगं बालों में टोमेटोपोईन रसायन होते है जो त्वचा की कोशिकाओं से क्रिया करके खुजलाहट एवं एलर्जी उत्पन्न करते हैं। इन कैटरपिलर्स के मरने के बाद भी इनके बाल घरों में लंबे समय तक त्वचा की एलर्जी उत्पन्न करते हैं जिसे लेपिडॉप्टेरिज्म या स्किन डर्मेटाइटिस नाम से जाना जाता है यह कैटरपिलर बरसात के समय घरों पर उगने वाली काई को खाते हैं तथा किसी फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते। आमतौर पर मनुष्य कैटरपिलर्स को मारने के लिए जिन रसायनों का उपयोग करते हैं उनसे लाभदायक कैटरपिलर्स की भी मृत्यु हो जाती है अतः इन्हें समाप्त करने के लिए मोथ की सही पहचान करके इन्हें जून-जुलाई महीनों में सरलता से नियंत्रित किया जा सकता है।

बबीता गौतम एवं महेश ने बताया की 150 साल पहले इस मोथ  का जाति नाम एवं फैमिली नाम केवल रिपोर्ट कर ब्रीटिश म्यूजियम में रख दिया गया था।जो जीवों के नामकरण की वैज्ञानिक पद्धति से मेल नहीं खाता अत:हम इसके पुन:नामकरण के लिए प्रयासरत है।

यह किताब डॉ. संध्या श्रीवास्तव प्राचार्य पीजी कॉलेज सिवनी, पो. डॉ. एसके बाजपेई जबलपुर एवं पुष्पा गौतम को समर्पित है।  उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति अखिलेश पांडे ने इस पुस्तक एवं लेखकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस जीव की विशिष्ट लाइफ साइकिल,फीडिंग बिहेवियर,मेटामारफोसिस, लेपिडोप्टेरिज्म,भविष्य में कीट-वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करेगी

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