राष्ट्रपति पदक से सम्मानित अमृत दास मानिकपुरी गुरुजी को मानिकपुरी पनिका समाज के पदाधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी।
रायपुर । अखिल ब्रह्मांड के नायक श्री सदगुरु कबीर साहेब के संदेश को जन जन तक पहुंचाते हुए समता एकता के लिए सतत रूप से कार्य हेतु करने व शिक्षा रूपी ज्ञान को प्राप्त करने हेतु अंधेरे के खिलाफ लड़ने वाले,मानवता के पुनीत कार्य को पल दर पल अग्रसर कर जीवन पर्यंत हजारों असहाय, अकिंचिन संघर्षशील विद्यार्थियों के पिता,पालक व संरक्षक बनकर उनके भविष्य का संवरण करने वाले तथा अभाव ग्रस्त बचपन को अध्ययन और ज्ञान की पिपासा से हरा-भरा कर सबको प्रेरित करने वाले श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों राष्ट्रपति पदक से सम्मानित समता एकता के लिए वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ राज्य का पंडित रविशंकर शुक्ल सम्मान तथा वर्ष 2002 में कोलिहापुरी ग्राम में पूर्व मुख्यमंत्री स्व,अजीत जोगी जी के हाथों अगासदिया सम्मान,वर्ष 2011 में मांझी धाम बघमार में छ.ग.के राजनेता माननीय श्री भूपेश बघेल जी के हाथों अगासदिया दाऊ तेजराम मढरिया,राष्ट्रीय शिक्षक कल्याण म, प्र,प्रतिष्ठान द्धारा 1979 आदि मे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त है,और जिनके अनेक पुरस्कारों से सम्मानित होने की लंबी फेहरिस्त है छ,ग,के ऐसे महान शिक्षाविद श्रद्धेय अमृत दास गुरु जी दिनांक 18 मार्च 2023 को 93 वर्ष की लंबी आयु में अपने इस नश्वर संसार से विदा ले लिए जिनका दिनांक 25 मार्च 2023 को जिला मुख्यालय बालोद मे दशगात्र कार्यक्रम आयोजित था में देश विदेश के अनेक स्थानों यथा
वियतनाम,नेपाल,अमेरिका,रुस,यूक्रेन, कनाडा,मारीशस आदि देशों मे निवासरत उच्च पदों को सुशोभित कर रहे नामी-गिरामी हस्तियों ने बालोद पहुंचकर अपने गुरु के पुण्य कर्मों को स्मरण कर जहां दास गुरु जी को अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि दी तो वही देश के विभिन्न राज्यों,जिला व क्षेत्र से बड़ी संख्या में आए उनके प्रिय, शिष्यों जिनमें IAS एवं छ.ग.लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री बी,एल,ठाकुर,साहित्यकार डॉ.परदेशी राम वर्मा,श्री सुरेंद्र पांडेय श्री नीतीश कुमार,श्री प्रमोद गोधे,श्री नीतीश कुमार,श्री खिलानंद साहू,श्री अशोक पटेल,श्री अशोक आकाश डॉ.सुधीर शर्मा कलाकार,महेश श्री वर्मा आदि के साथ शासन प्रशासन के आला अधिकारियों, कर्मचारियों,विभिन्न सामाजिक प्रमुखो,कबीर पंथ के धर्म प्रचारकों,जिनमें छत्तीसगढ़ शासन के कैबिनेट मंत्री माननीया श्रीमती अनिला भेड़िया,पूर्व विधायक द्बय श्री राजेंद्र राय एवं श्री डोमेंद्र भेड़िया गुंडरदेही,श्री भारत सिंह प्रदेश अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ एवं सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक, श्री पी,आर,नाईक,सेवानिवृत्त अतिरिक्त संचालक सहकारी संस्थाएं छत्तीसगढ़,डॉ ललित कुमार मानिकपुरी प्रदेश अध्यक्ष प्रांतीय मानिकपुरी पनिका समाज
संरक्षक द्बय मानिकपुरी पनिका समाज महानगर रायपुर,के श्री कंवल दास मानिकपुरी,डॉआर.डी मानिक,श्री माधोदास मानिकपुरी, श्री घासीदास मानिकपुरी (वरिष्ठ समाजसेवी) रायपुर,कबीर पंथ के योगाचार्य महंत श्री मंगल दास मंगलम दुर्ग,महंत श्री हार दास, मानिकपुरी,धमधा, मानिकपुरी पनिका समाज के बालोद जिला अध्यक्ष श्री बृजमोहन दास मानिकपुरी,श्री ईराज दास महंत अध्यक्ष बस्तर संभाग,श्री पारस दास मानिकपुरी श्री भागवत दास मानिकपुरी,दल्ली राजहरा,श्री सुंदर दास मानिकपुरी प्रदेश उपाध्यक्ष प्रां,मा,प,स,श्री तारण दास मानिकपुरी जिला सचिव बेमेतरा,श्री पूरन दास मानिकपुरी पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भामामस, परखंधा कुरुद,श्री ओम प्रकाश मानिकपुरी वरिष्ठ समाजसेवी रायपुर,श्री प्रीतम दास मानिकपुरी युवा प्रदेश अध्यक्ष मा,प,स,छ,ग, श्रीमती तिरिथ मानिकपुरी प्रदेश अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ प्रां,मां,प,स छत्तीसगढ़,श्री अर्जुन दास वैष्णव वरिष्ठ समाजसेवी धांवा (पाली) जिला कोरबा श्री मोहन दास मानिकपुरी जिला मीडिया प्रभारी
प्रां,मां,प,स,बालोद,यशवंत जैन अध्यक्ष न,पा,परिषद बालोद, स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों कर्मचारियों,मातृ शक्तियों ने भी बालोद पहुंचकर शिक्षा जगत के महान विभूति श्री दास गुरु जी के पुण्य कर्मों को स्मरण कर उनके तैल चित्र में श्रद्बासुमन अर्पित करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी !में उपस्थित होकर सतलोकी आत्मा को सतलोक में स्थान देने हेतु 2 मिनट का मौन धारण कर अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए श्री सदगुरु कबीर साहब से प्रार्थना किया कि गुरु जी की आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान देकर शोक संतप्त उनके भरे पूरे विशाल परिवार को इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे!
ज्ञातव्य हो कि,अकिंचनो के पालक शिक्षाविद श्रद्धेय अमृत दास जी का व्यक्तित्व एवं अवदान की व्याख्या इस कहावत से चरितार्थ होती है ,तरुवर फल नहिं खात है सरवर पियहि नही नीर । परमारथ के कारनो संतन धरा शरीर।। महान शिक्षाविद, हम सबके प्रेरणा स्रोत,चिंतक श्रद्धेय अमृत दास जी ने अपने नाम के आगे दास को विशेष तौर पर विनय और सेवाभाव के संकल्प के लिए चुना जिनका संपूर्ण जीवन काल अनेक उतार-चढ़ाव के साथ संघर्षमय रहा है। दिनांक 21अगस्त 1931 को दुर्ग जिले के धमधा तहसील के ग्राम देवरी में जन्मे पले बढ़े व शांत स्वभाव के पिता श्री भगवान दास मानिकपुरी एवं आध्यात्मिक स्वभाव की माता इंदिया बाई के चिरंजीव सुपुत्र अमृत दास 2 वर्ष की उम्र में पितृहीन हो गए,जिन्हें उनकी माता ने त्याग और परिश्रम से पाल पोसकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया,जिनकी प्रारंभिक शिक्षा देवरी में हुई जहां वे 7 वीं बोर्ड की परीक्षा धमधा से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले समाज पहले विद्यार्थी थे,पश्चात उनका 2 वर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण हेतु चयन बालाघाट हो गया जो उनकी उल्लेखनीय उपलब्धि थी। और यहीं से उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट प्रारंभ हो गया जिससे वे महान शिक्षाविद,कृपालु पिता और तपस्वी कबीरपंथी के रूप ढलते चले गए।सफल प्रशिक्षण पश्चात पूर्व माध्यमिक शाला धमधा में वे युवा शिक्षक के रूप में पदस्थ हुए,चूंकि वे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे इसलिए उन्हें अपने गांव के पास स्थित धमधा में ही नियुक्ति मिली।दो वर्ष बाद अंग्रेजी विषय के साथ 11वी बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुए। व स्वाध्यायी के रुप में अध्ययन कर बी,ए,साहित्य विशारद तथा एम,ए,की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे यशस्वी बने। यहां यह उल्लेखनीय है कि,वे शासकी य नौकरी छोड़कर बेमेतरा निजी विद्यालय चले गये,लेकिन शासन ने उन्हें आदर पूर्वक नियुक्ति देकर 1जुलाई 1961 को बालोद की शाला में पदस्थ कर दिया,यहीं वे आदिवासी छात्रावास अधीक्षक के रूप में विद्यार्थियों के भाग्य से नियुक्त हुए जहां डौडीलोहारा के करीबी गांव खुरथुली के हलबा आदिवासी समाज के प्रतिभा संपन्न विद्यार्थी भीषण लाल ठाकुर का आगे की शिक्षा के लिए वर्ष 1964 में आगमन हुआ जो अपनी मां की प्रेरणा से बालोद आने वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जिसे बहुत आगे जाने के लिए नियंता ने भेजा था,यहां कृपालु गुरु अमृत दास प्रतिभाशाली विद्यार्थी भीषण लाल ठाकुर का मिलन इतिहास गढ़ने के लिए ही हुआ। श्री ठाकुर के पिता जब गुज़रे तब वे 2 वर्ष के थे। ठीक अपने गुरु की तरह वे भी छुटपन में ही पितृहीन हो गए।गुरु शिष्य के इस विचित्र प्रसंग में श्री बी,एल ठाकुर जहां आगे की पढ़ाई करते थे तो साथ साथ गुरु अमृत दासँओ भी स्वाध्यायी विद्यार्थी के रुप में परीक्षा देकर आगे के सोपान में चढ़ते चले गये, गुरु शिष्य साथ साथ पढ़े। शिष्य ने गुरु को प्रेरित किया तो गुरु ने शिष्य को अपने से बड़ा बनाने का संकल्प लिया,गुरू भी विद्यार्थी थे तो शिष्य की सतत प्रेरणा भी गुरुवत थी।यह अद्भूत संयोग था
बी,एल, ठाकुर ने गुरुजी के छात्रावास की समस्त लिखा-पढ़ी का काम भी धीरे धीरे संभाल लिया। श्री बीएल ठाकुर की माता श्रीमती हेमिन बाई गांव से सर पर चावल लेकर दाल सब्जी लेकर 18 किलोमीटर पैदल चलकर बालोद आती थी तब आवागमन के सुगम साधन थे नहीं। उम्र में गांव में मजदूरी खेती किसानी बकरी चराने का काम करते हुए मस्त थे उस उम्र में बी,एल,,ठाकुर गांव से बालोद आकर पढ़ाई में डूब गए। माता गांव से आती थी तो अपनी आंखों को पूछती हुई बेटे को गोद में लेकर कहती थी कि बेटा गुरु जी का नाम दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए तुम्हें बड़ा आदमी बनना है इनका कर्ज है हम सब पर हम सबको तुमसे बहुत आशा है बेटा। ठाकुर ने मां के आदेश को शिरोधार्य किया वे अमृत दास के सच्चे शिष्य बन कर आगे बढ़े आई,ए,एस,बने बड़े-बड़े पदों पर रहकर रिटायर हुए अखिल भारतीय हल्बा समाज के वे अध्यक्ष रहे। ऐसे शिष्य के महान गुरु अमृत दास सर ने सैकड़ों विद्यार्थियों को पिताम का स्नेह देकर जीवन पथ पर आगे बढ़ाया श्री बी,एवं,ठाकुर गुरु ऋण चुकाने का सदैव सार्थक उपक्रम करते हैं। आज के समय में ऐसे कृतज्ञ शिष्य हमें देखने कोम कम ही मिलते हैं।अमृत दास जी ने 17 नवंबर 1974 में शासकीय छात्रावास को छोड़कर गुमानी राम तिलोकचंद अकिंचन छात्रावास की नीव बालोद में डाल दी तब दानदाता श्री तिलोकचंद द्वारा भूमि के साथ ₹1001 की राशि दी गई। छात्रावास को आकार देने में सरदार सुरजीत सिंह,ण कुलबीर सिंह, जैन महिला मंडल,जैन सुलसा मंडल, माहेश्वरी मंडल सहित अनेक सामाजिक संगठनों ने योगदान दिया । वे इस छात्रावास की छाया में 3000 विद्यार्थियों को अब तक निशुल्क संरक्षण देकर आगे बढ़ाने का कीर्तिमान स्थापित कर,तथा अपने विद्यार्थीयो को दीपक के रुप में ढालने का प्रयास अंतिम सांस तक करते रहे,गुरु अमृत दास जी जहां भी रहे स्वयं रोशनी लुटाते रहे। इस संदर्भ में एक शायर ने ऐसे ही महान व्यक्तियों के लिए यह शेर लिखा है*जहां रहेगा वहीं रोशनी
लुटायेगा किसी चिराग का मकां नही होता* श्री दास गुरुजी अपने शासकीय सेवानिवृत्ति के पूर्व 10 लाख रुपये की राशि से वर्ष 1991 में कबीर मंदिर बालोद की आधार शिला रखी जिसके बदौलत आज करोड़ों रुपए की राशि से निर्मित होकर बालोद का कबीर दर्शन मंदिर राष्ट्रीय एकता, समता,अहिंसा और सद्भाव का संदेश दे रहा है। जहां सदैव रचनात्मक,वैचारिक कार्यक्रम होते हैं। एयहां विद्यार्थियों के रहने का भी उचित प्रबंध है। श्री दास गुरुजी वर्ष 1979 में राष्ट्रीय शिक्षक कल्याण प्रतिष्ठान चम,प्र, द्वारा सम्मानित हुए व 1964 से लेकर 1975 तक मोतीलाल नेहरू आदीवासी छात्रावास के प्रभारी रहे। वे सहायक शिक्षक,व 13-14 वर्षों तक छात्रावास अधीक्षक रहने के बाद 1974 में शासकीय छात्रावास अधीक्षक का पद छोडकर लगभग 3 वर्ष हाईस्कूल में ही बाउंड्रीवॉल तथा अतिरिक्त कमरा बनाकर ज्ञान का अलख जगाते रहे। वर्ष 1986 में उसने मंदिर निर्माण की आधार शिला रखी जिसे जमीनी आधार देने व संबल प्रदान के लिए तत्कालीन कलेक्टर प्रशांत मेहता जी का प्रेरक मार्ग दर्शन रहा। श्री दास गुरुजी मानिकपुरी पनिका समाज के ऐसे दुर्लभ शख्सियत थे जिनके संरक्षण में पुष्पित पल्लवित हुए सैकड़ों विद्यार्थी अपने जीवन पथ पर आगे बढ़कर अपने गुरु का यस फैला रहे हैं। वे जहां भी रहे स्वयं रोशनी लुटाते रहे तथा अपने विद्यार्थियों को दीपक के रूप में डालने का प्रयास अंतिम सांस तक करते रहे। तभी तो एक शायर ने महान व्यक्तियों के लिए यह शेर लिखा है! जहां रहेगा,वहीं रोशनी लुटायेगा,किसी चिराग का अपना मकां नही होता
श्री दास गुरुजी के जीवन की प्रमुख प्रेरक घटनाओं के जानकार छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं श्री दास जी के पुत्रवत शिष्य श्री भीषम लाल ठाकुर के पास पूरी पुस्तक भर की ऐसी जानकारी है जिसे अगासदिया विशेषांक के रुप में प्रकाशित किया जावेगा ! तथा प्रतिवर्ष समाज के लिए समर्पित जीवन जीने वाले तपस्वी व्यक्ति को श्री बी,एल,ठाकुर की भावना के अनुरूप
अगासदिया अमृत दास सम्मान दिया जावेगा। यह सम्मान प्रतिवर्ष कंगला मांझी समारोह में गौरव ग्राम बघमार में 06 दिसंबर को दिया जावेगा। श्री दास गुरु जी ने जीवन पर्यंत मानिकपुरी पनिका समाज को एकता के सूत्र में आबद्ध करने की जीजिविषा में कबीर पंथ के तत्कालीन धर्माचार्य पंथ श्री हजूर प्रकाशमुनीनाम साहेब के द्वारा अनुमोदित अखिल भारतीय मानिकपुरी पनिका समाज के नाम बने संविधान के प्रथम उपाध्यक्ष थे,एवं प्रथम अध्यक्ष सतलोकी डॉ,पुरुषोत्तम दास महंत वरिष्ठ अधिवक्ता रायपुर थे। उन्होंने शिक्षा व सामाजिक क्षेत्रों में अपनी उल्लेखनीय भूमिका के साथ साथ पारिवारिक दायित्वो का भी बेखुबी निर्वहन किया। जिसके बदौलत आज उनके आज्ञाकारी पुत्रों यथा श्री श्यामसुंदर दास,श्री मदन मोहन दास,श्री हरेश दास,श्री हेमंत दास,श्री मनोज दास,शिक्षा व संगीत के क्षेत्र में अपने माता-पिता के नाम को गौरवान्वित कर रहे हैं वहीं उनकी सुपुत्री श्रीमती मीरा दास भी अपने गृहस्थ में खुशहाल है। जिसमें श्री गुरु जी की धर्म परायण वयोवृद्ध धर्मपत्नी श्रीमती सरोज दास जी का वात्सल्य प्रेम एवं आशीष छांव हम सबके लिए प्रेरणादायी है। अंत में जिजीविषा त्याग,परोपकार,का जीवन जीते हुए जिस शेर को गुरू अमृत दास जी सदैव उल्लेख करते थे वह शायर बशीर बद्र का चर्चित शेर यहां श्रद्धा सहित प्रस्तुत है:- उजाले अपनी यादों के, हमारे साथ रहने दो। न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाय।।
इसी भावनाओं के साथ श्रद्धेय अमृत दास दास जी को सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजली।





















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