छठ पर्व पर पुरी शंकराचार्यजी ने दिया संदेश
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी - ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर एवं हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु तथा हिन्दू राष्ट्र प्रणेता अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज सनातन संस्कृति में आयोजित होने वाले पर्वों के आध्यात्मिक महत्व एवं आराधना पद्धति के संबंध में संदेश प्रसारित करते रहते हैं। इसी तारतम्य में कार्तिक शुक्ल षष्ठी भगवान् आदित्य और भगवती षष्ठी देवी की आराधना की पवित्र तिथि होती है। पूर्वांचल क्षेत्र में इसे पारंपरिक रूप से छठपूजा के रूप में जाना जाता है तथा देश के प्रत्येक हिस्से में इसे पूर्वांचल के लोग श्रद्धा एवं उत्साह पूर्वक मनाते हैं। पुरी शंकराचार्यजी का कथन है कि भगवान् सूर्य की आराधना करने से व्यक्ति को सहस्त्रों जन्मों तक गरीबी , दरिद्रता , दीनता का मुख देखना नहीं पड़ता। पुरी शंकराचार्यजी उद्घृत करते हैं कि सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा की शक्ति स्वरूपा मूल प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी देवी ( छठदेवी) समुत्पन्न होती है। इस आराधना पर्व पर महाराजश्री का संदेश है कि सनातन धर्म में आस्थान्वित महानुभाव , पवित्र दशा में आदित्याय नम: इस मंत्र का आस्थापूर्वक 1008 बार जप करें तथा भगवान् सूर्य और षष्ठी देवी को जलदान आदि से तृप्त कर उनका अनुग्रह पात्र बनें। स्वास्थ्य , सुमति , समृद्धि से सम्पन्न भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में ख्यापित करने की भावना से उनकी आराधना करें। षष्ठी पर्व पर अधिक समय तक व्रत रखना पड़ता है। संयम रखना पड़ता है , स्नान भी करना पड़ता है। अधिक संयम बरतने पर अधिक ऊंचे फल की भी प्राप्ति होती है।
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