पिथौरा में दो दिवसीय
साहित्य संगोष्ठी संपन्न
पिथौरा/ गत दिनों स्थानीय उजाला पैलेस में चल रहे दो दिवसीय साहित्य संगोष्ठी का कार्यक्रम सफलतपूर्वक सम्पन्न हुआ। उद्घाटन सत्र में दिल्ली से पधारे मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार एकांत श्रीवास्तव, अध्यक्षता कर रहे सुपरिचित कवि जीवन यदु, डॉ.राकेश तिवारी, तथा प्रख्यात लेखिका उर्मिला शुक्ल ( रायपुर) का स्वागत श्रृंखला साहित्य मंच के अध्यक्ष प्रवीण 'प्रवाह' एवं मंच के समस्त सदस्यों द्वारा पुष्प हार से किया गया।
श्रृंखला के वरिष्ठ सदस्य साहित्यकार स्वराज 'करुण' द्वारा तीनों अतिथियों को पुस्तकें भेंट कर स्वागत किया गया। भेंट की गई पुस्तकें थीं 'श्रृंखला चार', 'संशय के बादल' ( शिवानंद महंती ), कुछ ही क्षणों में' (शिवानंद महंती) 'मेरा सागर तुम्हारी कश्ती '(मधु धांधी), और 'मोर सुरता के गाँव' (मधु धांधी)। स्वागत कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्रृंखला के वरिष्ठ सदस्य उमेश दिक्षित ने श्रृंखला साहित्य मंच के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का परिचय दिया। यह साहित्य संगोष्ठी कुल पांच सत्रों में संपन्न हुई। जिसमें पहले, दूसरे, तथा चौथे सत्र में साहित्य मे नारी, दलित, आदिवासी, विमर्श सहित पर्यावरण, आधुनिक विकास एवं सामाजिक सरोकार से जुड़े विभिन्न आयामों पर विमर्श करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार रखे। मुख्य अतिथि एकांत श्रीवास्तव ने प्राचीन और समकालीन साहित्य में निहित सामाजिक विमर्शों पर व्यापक विवेचना करते हुए कहा समाज में मूल्य परक विकास के लिए आग्रह होना चाहिए। जल में मछलियाँ सांस ले सके, और मिट्टी की उर्वरता बची रह सके ऐसे विकास के लिए में साहित्य की पक्षधरता होनी चाहिए। मैं किस हवा में साँस लूं /किस सोते का जल पीयूँ/ किस डाली का सेब खाऊँ /पर्यावरण वैज्ञानिको/ कि बच जाऊँ/
वरिष्ठ कवि जीवन यदु ने कहा पुराने समय में पेड़ पौधों की सुरक्षा तथा वनवासी जीवन पर जो पुरातन साहित्य लिखे गए हैं वे प्रतीकों में लिखे गए हैं। उन प्रतीकों को आज समझने की आवश्यकता है।
उर्मिला शुक्ला ने कहा कि पुराने साहित्य में जिन सामाजिक समस्याओं के खिलाफ लिखा गया था अभी भी नए रूपों विद्यमान हैं। इस लिए वर्तमान साहित्य में आज भी इन समस्याओं के चित्र उभर आते हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री डॉ. राकेश तिवारी ने कहा यह श्रृंखला की तारीफ किया चाहिए समाज के सर्वांगीण सर्वांगीण विकास और के साथ-साथ नैतिक चिंतन में भी विकास हो सके ऐसे कार्य ऐसे कार्यक्रमों के लिए श्रृंखला साहित्य मंच जैसे मंचों का प्रयास
अम्बिकापुर से आईं लेखिका डॉ मृदुला सिंह ने नारी विमर्श पर विभिन्न समकालीन नारीवादी लेखिकाओं के विचारों का संदर्भ देते हुए कहा कि बदलते परिवेश में नारी विमर्श पर अभी और लिखे जाने की आवश्यकता है। दुर्ग से आए कैलाश वनवासी ने साहित्य में दलित विमर्श पर अपने विचार रखते हुए कहा कि दलितों की समस्याओं पर कविता से अधिक कथाओं में लिखा गया है। बीसवीं सदी के आखरी दशक में 'हंस' पत्रिका मैं संपादक राजेंद्र यादव द्वारा दलित विमर्श के प्रवक्ता की तरह काम किया गया है।
बागबाहरा के पीयूष कुमार ने कहा साहित्य के केंद्र में मनुष्य है। मनुष्य समाज और प्रकृति के साथ जुड़ा है इसलिए साहित्य में समाज का कोई पक्ष अछूता नहीं है। श्रृंखला के वरिष्ठ साहित्यकार स्वराज 'करुण'ने कहा कि साहित्य का ऐसा कोई भी विषय नहीं है जिसका समाज से जुड़ाव ना हो। साहित्य में सामाजिक सरोकार आदिकाल से रहा है। साहित्यकार सामाजिक सरोकारों से अलग होकर लिख ही नहीं सकते।
बागबाहरा के रजत कृष्ण जो कि नई कविता के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध नाम है, ने कहा कि साहित्यकार अपना चिंतन साहित्य के माध्यम से समाज तक संप्रेषित करता है।
रजत कृष्ण ने अपनी कविताएँ भी सुनाईं।उनकी एक कविता-जिंदगी बड़ी फूल /की डाली में तो महके ही/ महके वह टूट बिखर कर भी/ ज़िन्दगी बड़ी फूल की/ मेरी जिंदगी भी हो फूल सी//'
विमर्श सत्रों के पश्चात अंतिम सत्र में साहित्य और सामाजिक सरोकार विषय पर वक्ताओं तथा श्रोताओं का साझा विमर्श रखा गया जिसमें श्रोताओं की ओर से स्वराज्य 'करुण', संध्या भोई (सरायपाली) प्रवीण 'प्रवाह', उमेश दीक्षित, निर्वेश दीक्षित, माधव तिवारी, गुरप्रीत कौर, जीतेश्वरी साहू, श्रीमती पटेल भी अपने विचार रखे गए तथा मुख्य वक्ताओं से प्रश्न किए गए। इन प्रश्नों का समाधान मुख्य अतिथि एकांत श्रीवास्तव डॉ. उर्मिला शुक्ल एवं पीयूष कुमार द्वारा किया गया । हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रबंध मंत्री राजेन्द्र चांडक ने हिंदी साहित्य सम्मेलन की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
इसके पूर्व तीसरे सत्र में रात को श्रृंखला के सदस्यों एवं अतिथियों की कवि गोष्ठी आयोजित गई थी। जिसका संचालन कवि प्रवीण 'प्रवाह' ने किया। प्रतिभागी कवियों में कार्यक्रम के अतिथि कवि डॉ.जीवन यदु, एकांत श्रीवास्तव, डॉ.उर्मिला शुक्ल, डॉ. मृदुला सिंह, कैलाश वनवासी, के अलावा अनूप दीक्षित, बंटी छत्तीसगढ़िया, डॉ. कुलवंत अजमानी, माधव तिवारी, निर्वेश दीक्षित, गुरप्रीत कौर, जीतेश्वरी साहू, डॉ. सरोज साव, संजय गोयल, एस . के.नीरज, देवनारायण साहू, बद्री प्रसाद पुरोहित (बसना), संकल्प यदु (खैरागढ़) बंधु राजेश्वर राव खरे (महासमुंद), प्रीति चौहान, नर्मदा दीवान (पटेला), एवं उत्तरा सिन्हा,ने काव्य पाठ किया।
कार्यक्रम में छात्र छात्राओं सहित पिथौरा नगर एवं बाहर से आए श्रोताओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। जिनमें पी.सी. रथ ( रायपुर), शिव शंकर पटनायक, शशि कुमार डडसेना, महेश पालीवाल संजय राजपूत शशांक खरे रमाशंकर दीक्षित, एफ.ए. नंद, रितेश महंती, मन्नू लाल ठाकुर, जवाहर नायक (सांकरा), टिकेंद्र प्रधान, शैलेश साहू (बागबाहरा), हरमिंदर उजाला, कल्याण सिंह छाबड़ा, विवेक दीक्षित, मयंक पाण्डेय, पं.कृष्ण कुमार शर्मा, अरुण देवता, कौतुक पटेल, अमरप्रीत सिंह, मीनकेतन दास (सांकरा), आर.के.भोई, यशवंत चौधरी (सरायपाली) कुमार लोरिस (जगदीशपुर), एवं रामशरण साहू ( तिल्दा) के नाम प्रमुख थे।
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