जीव को परमात्मा से जुड़ने का एकमात्र माध्यम भागवत कथा ही है: शंकरानंद शर्मा
रिपोर्ट -संजू महाजन
लोकेशन -जिला-केसीजी
जिला-केसरीजी:- पांडादाह- कथा व्यास पं शंकरानंद शर्मा अध्यात्मवेत्ता साल्हेवारा, पांडादाह (खैरागढ) ने कहा-मानव मात्र को परम सुख व परम शांति अध्यात्म से ही मिल सकता है। और अध्यात्म का संपूर्ण सार श्री मद् भागवत कथा ही है। जीव को परमात्मा से जुड़ने का एकमात्र माध्यम भागवत कथा ही है।
श्रृंगी ऋषि का श्राप तक्षक सर्प के डसने पर मृत्यु होगी, सुनकर राजा परीक्षित चिन्ता छोड भगवत चिन्तन का आश्रय लिया, सद्गुरु भगवान श्री शुकदेव जी द्वारा भगवत्कृपा स्वरूप भागवत कथा श्रवण कर भगवत्गति को प्राप्त किया। भगवत कथा का मूल उद्देश्य, पिबत भागवतं समालयं है। अर्थात जब तक शरीर में चेतना है भगवत रस का पान करते रहो, भागवत कथा में विभिन्न कथा प्रसंगों के माध्यम से ज्ञान, भक्ति, वैराग्य मनुष्य को प्राप्त होता है।
क्योंकि मनुष्य के पास जीवन तो है परंतु जीवन जीने की कला नही है, भागवत कथा मनुष्य को जीवन को जीना सिखाती है। ध्रुव कथा प्रसंग में हरि सर्व भुतेषु, के अनुसार भक्त ध्रुव को छः महा मे भगवत दर्शन मिला, परंतु हिरण्याक्ष को दर्शन नही हुआ, तात्पर्य यह है कि ध्रुव जैसे भक्ति की दृष्टि रहेगी तो हर वस्तु मे भगवत दर्शन होगा, अहंकारी मनुष्य स्वयं को ईश्वर समझता है तो भला उसको ईश्वर कहाँ दिखेगा।
पं.शर्मा ने बताया कि जीवन में जब जब देहाभिमान अहंकार जगता है, ईश्वर सबल हो जाता हैं और जब साधक के जीवन में सत्य,प्रेम,भक्ति,करुणा का भाव जगता हैं तो वहीं ईश्वर बालक बनकर कोशिल्या,देवकी,मैया यशोदा के गोद में आकर परम सुख प्रदान करते हैं।
ईश्वर सत्य रूप में सर्वव्याप्त है परंतु वही ईश्वर सगुण साकार में सत्य,प्रेम,करुणा के द्वारा प्रकट हो जाते हैं। भगवान की कथा ही जीव मात्र की व्यथा को दुर करती है, भगवान श्री कृष्ण ही सच्चिदानंद है, जन्मोत्सव ही परमानंद है, श्रोताओं की अपार भीड़ संगीत मय कथा रसपान करने पांडादाह पहुच रहे हैं।



















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