सोलह श्रृंगार करके माताओं ने किया हलषष्ठी पूजा
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर - इस बार भी दो दिन हलषष्ठी व्रत होने के कारण प्रदेश के कई स्थानों में आज दूसरे दिन भी माताओं ने अपनी संतान की दीर्घायु और उन्नति के लिये व्रत रखकर हलषष्ठी माता की विधि विधानपूर्वक पूजा अर्चना की। शहर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न जगहों पर विवाहित महिलाओं के द्वारा सामूहिक रूप से हलषष्ठी का पर्व मनाया गया। इस दौरान मुहल्ला व देवालयों में सगरी बनाकर उसमें जल भरकर चारो ओर काशी के फूल व कुछ पौधे भी लगाया गया था। शिव परिवार के प्रतिमाओं के साथ हलषष्ठी महारानी सहित सभी देवी देवताओं का भक्तिभाव से विधि विधानपूर्वक पूजन अर्चन किया गया। माताओं ने पूरे विधि विधानपूर्वक पूजा अर्चना की। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये कल्याणी शर्मा ने बताया आज के दिन भैंस के अलावा किसी अन्य का दूध महिलाओं के लिये वर्जित रहा। महिलाओं का किसी भी ऐसे स्थान पर जाना वर्जित है जहाँ हल से जुताई किया जाता हो। आज सभी व्रती महिलायें महुवा पेड़ की लकड़ी का दातुन किये और एक जगह पूजा के लिये एकत्रित हुये जहाँ पर आँगन में एक गड्ढा खोदा गया जिसे ”सगरी” कहा जाता है जो तालाब के प्रतीक स्वरूप बनाया जाता है। महिलायें अपने-अपने घरों से मिट्टी के खिलौने , बैल , शिवलिंग , गौरी- गणेश इत्यादि बनाकर लायी थी जिन्हें उस सगरी के किनारे पूजा के लिये रखा गया। उस सगरी में बेल पत्र, भैंस का दूध , दही , घी , फूल , कांस के फूल , श्रृंगार का सामान और महुवा का फूल चढ़ाया गया। छह प्रकार के अन्न को वे छह मिट्टी के मटकियों मे भरकर रखे। इन मटकियों को हमारे छत्तीसगढ़ मे चुकिया कहा जाता है। महिलायें एक साथ बैठकर हलषष्ठी माता के व्रत की कथायें सुनीं। कथा संपन्न होने के बाद कास के पत्तियों में एक हाथ से 06 गठान बनायी और बच्चों के लंबी उम्र का वरदान मांगते हुये सगरी की 06 बार परिक्रमा की। हर परिक्रमा में 11 महुआ और फूल , चावल सगरी में डाली उसके बाद आरती के साथ पूजन समाप्त हुआ। आचार्य ऋषभ शर्मा ने पूजा संपन्न करायी और महिलाओं ने पूजन अर्चन के पश्चात आचार्य के श्रीमुख से कथा सुनी। पूजा के बाद मातायें नये कपड़े का टुकड़ा सगरी के जल में डूबाकर घर ले गयी जिससे अपने बच्चों के कंधे से 06 बार पोती मारकर सिंदूर भी लगायी। फलाहार के लिये घर में खम्हार की लकड़ी को चम्मच के रूप में प्रयोग करके पसहर का चाँवल बनायी थीं। छह प्रकार की भाजियों को मिर्च और पानी में पकायी जिसे झौकने के लिये भैंस के घी का प्रयोग एवं स्वाद के लिये सेंधा नमक का प्रयोग की। इस फलाहार को पहले कुत्ते , बिल्ली , पक्षी , गाय , भैंस और चीटियों के लिये दही के साथ पत्तों में परोसा गयाऔर सूर्यास्त से पहले सभी मातायें फलाहार की।
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