लाखो के जॉब ऑफर ठुकरा कर गाँव के स्कूल में पढ़ा रहे इंजीनियर भगतराम
पिथौरा। गुरुकुल से लेकर आधुनिक शिक्षा के दौर तक यू तो अनेक उदाहरण मिलेंगे जिन्होंने शिक्षा का अलख जगाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किये है।किंतु आज के दौर में शिक्षा और चिकित्सा जैसी सेवाएं घोर व्यावसायिकता के मकड़ जाल में फसती जा रही है।
तब इन छेत्रो में निस्वार्थ भाव से मानवीय एवं नैतिक आधार पर अपनी निःस्वार्थ सेवाएं देने वाले लोग बिरले ही मिलते है।ऐसा ही एक नाम है पिथौरा ब्लॉक के ग्राम कसहीबाहरा निवासी भगतराम पटेल का जिन्होंने ने विधुत विभाग में इंजीनियर के पद से सेवा निवृत्त होने के उपरांत प्राइवेट सेक्टर में मिल रहे जॉब के ऑफर को ठुकरा कर अपने गॉव के बच्चो को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है। ग्राम के स्कूल में निःषुल्क अतिथि शिक्षक के रूप में निरंतर अपनी सेवाएं दे रहे है।
वही आंगन, वही खिड़की, वही गांव, वहीं तालाब, वही प्रेम की छांव, गांव के इस माहौल में पढ़ लिखकर इंजीनियर बने शासकीय ऊंचे ओहदे से सेवानिवृत्त होकर शहर से अपने गांव वापस आये तब किसी ने सोचा न था कि 69 वर्षीय एक बुजुर्ग व्यक्ति भगतराम पटेल गांव के स्कूल में अतिथि एवं प्रेरक शिक्षक बनकर अपना फर्ज निभाएंगे लेकिन अपने
ख्वाब को हकीकत में बदलने वाला यह इंसान एक जुनून, एक जज्बा और
एक लक्ष्य के साथ अभावग्रस्त और जरूरतमंद बच्चों के भविष्य को
संवारने के लिए जी जान से जुटे हैं। पिथौरा विकासखंड के कसहीबाहरा गांव में जन्मे और पले बढ़े भगतराम पटेल की प्रारंभिक शिक्षा क्रमशः कसहीबाहरा झलप और पिथौरा में पूरी होने के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज रायपुर से प्रथम श्रेणी से पास कर विद्युत मंडल में इंजीनियर बन गए ।
वर्ष 2007 में 58 वर्ष की उम्र में शासकीय कार्यों से सेवानिवृत्त होकर कोरबा की ए सी बी इंडिया लिमिटेड में पांच वर्ष तथा जांजगीर चांपा जिले की एक प्रतिष्ठित औद्योगिक केंद्र प्रकाश इंडस्ट्रीज में पांच वर्ष इस तरह से 10 वर्षों तक प्राइवेट नौकरी जारी रखी। इसी दरमियान अपने परिवार सहित पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने अपने गृह ग्राम कसहीबाहरा आए थे। तभी मिडिल स्कूल के संस्था प्रमुख हेमन्त खुटे ने उनसे सौजन्य भेंट कर उन दिनों उनके विद्यालय में चल रही नवाचार संडे की पाठशाला की गतिविधियों से अवगत कराया और उनसे अपने गांव के विद्यालय में ही शिक्षाविद के रूप में सेवा देने की जिज्ञासा जाहिर की। कोरबा नही जाने का निश्चय कर गांव के बच्चों को गणित पढ़ाने का बीड़ा उठा लिया।तत्पश्चात विकासखंड शिक्षा अधिकारी पिथौरा से 20 जुलाई 2018 को
विद्यालय में निशुल्क सेवा हेतु लिखित अनुमति कराकर शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला में शिक्षाविद के रूप उन्हें आमंत्रित किया। तब से अब तक विद्यालय में शिक्षकीय कार्य के साथ - साथ शाला प्रबंध एवं विकास समिति में भी शिक्षाविद के रूप में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।
शिक्षक दिवस के विशेष मोके पर हमारे प्रतिनिधि से चर्चा के दौरान
बताया की उस समय लोग साइंस कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रमुख अंत को समझ नही पाते थे और साइंस कॉलेज की शिक्षा को ज्यादा
अहमियत देते थे किन्तु मैंने इंजीनियरिंग की शिक्षा कोचुनौती के रूप में स्वीकार किया। मैं जानता हूँ कि शिक्षा पाने लिए कितनी मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़ता है यही कारण है कि मैं गांव के इन बच्चों केलिए कुछ करना चाहता हूं मेरी खुशी और बच्चों की खुशी आज एक समान हो गई हैं। आज भी मेरे पास प्राइवेट कंपनी से नौकरी के लिए ऑफर आ रहे हैं
लेकिन मैंने बच्चों की तालीम के लिए यही रहने का निश्चय किया है। बहरहाल आज इस दौर में ग्रामीणपरिवेश में शिक्षा के ऐसे कद्रदान कहा मिलेंगे। ग्रामीण बच्चों की दुनिया में शिक्षा का उजाला फैलाने,परिवार सहित चुपचाप जुटे हुए हैं। ऐसा अतिथि शिक्षक आज हमारे समाज के लिए गौरवरत्न है ।आज एक उम्रदराज व्यक्ति ने अपने हौसले एवं दम से
यह साबित कर दिखाया कि केवल स्कूल में पढ़ाने वाला व्यक्ति ही शिक्षक नहीं होता कैंपस से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी सामाजिक सरोकार से जुड़कर शिक्षक का दर्जा प्राप्त कर सकता है
उल्लेखनीय है कि कोविड के समय भी इन्होंने अपनी उम्र का परवाह न करते हुए शिक्षकों के साथ मोहल्ला क्लास लगाने में भी अपनी महती भूमिका अदा की थी।
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