कचलोन मे कलश यात्रा के साथ प्रारम्भ हुई भागवत कथा..
भागवत कथा से दूर होते है मन के विकार - आचार्य नंदकुमार शर्मा
तिल्दा नेवरा- समीपस्थ ग्राम कचलोन मे साहू परिवार द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया गया है..सोमवार को भब्य कलश के साथ श्रीमद भागवत कथा प्रारम्भ हुई. भागवत कथा के प्रथम दिन सोमवार को निनवा तिल्दा वाले भागवत मर्मज्ञ आचार्य पंडित नंदकुमार शर्मा जी ने भागवत कथा की महिमा बताते हुए कहा कि भागवत कथा मनुष्य को जीवन में जीने का सही रास्ता दिखाती है. कलयुग मे भागवत कथा कल्पवृक्ष की भांति है जिनके द्वारा मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है..
भगवान की कथा सुनने मात्र से मानव जीवन मे सुखद परिवर्तन हो जाता है बशर्ते कथा को जीवन मे उतारना होगा. उन्होंने कहा कि कथा की सार्थकता जब ही सिध्द होती है जब इसे हम अपने जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल ‘ मनोरंजन ‘, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी । भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है. आचार्य शर्मा ने बताया कि जब मनुष्य के जन्म जन्मांतर के पुण्यों का जब उदय होता है तब ही उन्हें भागवत कथा श्रवण का लाभ मिल पाता है, अन्यथा कोई कितना भी प्रयास करे बिना ईश्वर की कृपा और पुण्योंदय के बिना कथा का लाभ नहीं मिल पाता. श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। आचार्य शर्मा ने कहा कि वास्तव में भगवान की कथा के दर्शन हर किसी को प्राप्त नहीं होते। कलियुग में भागवत साक्षात श्रीहरि का रूप है। पावन हृदय से इसका स्मरण मात्र करने पर करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।इस कथा को सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं और दुर्लभ मानव प्राणी को ही इस कथा का श्रवण लाभ प्राप्त होता है।श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से ही प्राणी मात्र का कल्याण संभव है। आगे आचार्य जी गोकर्ण धुंधुकारी प्रसंग पर सविस्तार वर्णन किए. उन्होंने बताया कि धुंधुकारी जैसा महापापी जो कि मरणोपरांत प्रेत बन गया था जो कि भागवत कथा सुनने मात्र से उन्हें मुक्ति मिल गई और वह भवसागर को पार हो गए. आगे उन्होंने भक्ति के विषय मे चर्चा करते हुए कहा कि भगवान को पाने के लिए भक्ति मार्ग ही सबसे उत्तम और सरल मार्ग है. भक्ति का मार्ग चाहे कोई भी हो उसमें श्रद्धा, भावना का विशेष महत्व है। परमानंद तक पहुंचने के लिए सबसे सरल भक्ति मार्ग है। यहां कोई अवरोध और बाधा नहीं है। सरल हृदय व निष्काम भक्ति ही फलदायी होती है। प्रभु आनंद पाने के बाद जीव के लिए संसार के सभी पदार्थो, वैभव का मूल्य दो कोड़ी का भी नहीं रह जाता। उसे ज्ञात होता है कि जिन पदार्थो को पाने के लिए वह जीवन भर दौड़ता रहा वे तो पूरी तरह केवल मृग तृष्णा के समान हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर को अभिमान व कामना रहित भक्ति ही पसंद है, जो भगवान को निःस्वार्थ प्रेम भाव से पुकारता है। भगवान फिर उसके हो जाते हैं। उन्होंने कहा की ईश्वर, व्यर्थ का दिखावा और आडंबर को पसंद नहीं करते हैं। वे तो प्रेम भाव के भूखे होते हैं।भगवान की भक्ति में, अनुराग में और सेवा में कपट का कोई स्थान नहीं है। जहां-जहां महापुरुषों ने अपनी निर्मलता बनाई वहां भगवान के दर्शन भी हुए। मनुष्य की भक्ति में क्रिया की प्रधानता नहीं है. आचार्य शर्मा ने कहा जैसे-जैसे परमात्मा की ओर मनुष्य बढ़ेगा वैसे वैसे उसका त्याग होना शुरू हो जाता है। उन्होंने श्रोताओं का आह्वान करते हुए कहा कि कथा में अपने छोटे बच्चों को अवश्य लाये जिससे उनके अन्दर कथा श्रवण के साथ संस्कार का भाव उत्पन्न हो। कथा स्वभाव को बदल डालती है, कथा का प्रभाव जीवन में जब पड़ता है जब कथा का चिन्तन जागृत होता हैं। मनुष्य का जीवन पुण्य का परिणाम है। पुण्य के परिणाम से मानव जीवन प्राप्त हुआ। जिसका जितना पुण्य है उसको प्रभु से उतनी ही कृपा की प्राप्ति हुई है। मनुष्य के जीवन में जितना पुण्य संग्रह होगा उतना उसका चरित्र बलवान होगा। बड़े भाग्य से यह मनुष्य जन्म मिलता है जो कि देवताओं को भी दुर्लभ है। इस मनुष्य जीवन को सार्थक करे , यहीं इस जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
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