अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
वाराणसी -- श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण हेतु पाँच अगस्त को मुहुर्त नही होने की बात अब तूल पकड़ती जा रही है। इसी बीच ज्योतिष एवं द्वारिका द्वय पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के कृपापात्र शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि वादे वादे जायते तत्वबोधः अर्थात् वाद-विवाद और संवाद से ही सत्य तत्व निकलकर सामने आता है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में सत्य पक्ष को स्थापित करने और असत्य पक्ष को हटाने के लिये शास्त्रार्थ की परिपाटी रही है। आज भी भले ही इसका वह प्राचीन स्वरूप ना रहा हो पर वाद-विवाद को समाज में सत्य पक्ष की स्थापना के लिये स्वीकार किया गया है। आगामी 05 अगस्त 2020 को अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि में मन्दिर निर्माण के लिये शिलान्यास का मुहूर्त काशी के आचार्य पण्डित गणेश्वर शास्त्री द्रविड जी ने निकाला है। उन्होंने 32 सेकेण्ड का मुहूर्त बताया है जिसके आधार पर भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा शिलान्यास किया जाना निश्चित हुआ है। इस मुहूर्त को गलत बताकर पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपना विरोध प्रकट किया है। इस हेतु उन्होंने अनेक शास्त्रों से उद्धरण प्रस्तुत किये हैं और यह भी कहा है कि अशुभ मुहूर्त में किये गये कार्यों का दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है। पूज्य शंकराचार्य जी द्वारा मुहूर्त पर दिये गये वक्तव्य के बाद से ही पूरे देश के विद्वान् और ज्योतिषी दो भागों में बॅट गये हैं। कुछ शास्त्र के अर्थात् शंकराचार्य जी के पक्ष को प्रमाण मान रहे हैं तो कुछ गलत मुहूर्त बताने वाले आचार्य द्रविड जी को। ऐसे में इस सम्बन्ध में किसका पक्ष सही और शास्त्रीय है ? यह जानने के लिये पूरा देश उत्सुक है। हमने समाचार माध्यमों से यह जाना कि काशी के श्री अंकित तिवारी नाम के ज्योतिषी ने आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड जी के शास्त्रार्थ की चुनौती को स्वीकार कर लिया है। पूरे देश के सामने शास्त्र का सही पक्ष सिद्ध हो इस हेतु शास्त्रार्थ होना समय की मांग है। इस शास्त्रार्थ के आयोजन हेतु हम स्थान सहित अन्य व्यवस्था करने को तैयार हैं। शास्त्रार्थ का यह नियम होता है कि पहले दोनों पक्ष अपनी ओर से पाँच पाँच नाम उपलब्ध कराते हैं। फिर उनमें से जो नाम दोनों पक्षों की ओर से आता है उन्हीं को शास्त्रार्थ का मध्यस्थ स्वीकार किया जाता है। इसके बाद तिथि, स्थान, समय एवं शास्त्रार्थ की शर्तें तय होती है और शास्त्रार्थ आरम्भ होता है। यदि मुहूर्त बताने वाले आचार्य गणेश्वर शास्त्री जी और अंकित जी दोनों उपर्युक्त बातें तय करें तो हम इस महत्वपूर्ण विषय पर शास्त्रार्थ के लिये श्रीविद्यामठ का स्थान और अन्य व्यवस्था करके को तैयार हैं।
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