अरविन्द तिवारी की कलम से
रायपुर -- श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है जो इस बार आज पड़ रही है। जब अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या भी कहते हैं। धार्मिक और प्राकृतिक महत्व की वजह से श्रावण अमावस्या बहुत ही लोकप्रिय है। इस दिन वृक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिये इसे हरियाली अमावस्या के तौर पर जाना जाता है। यह पर्व हरा भरा खेत खलिहान , किसानों की समृद्धि और पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देने के साथ मनाया जाता है। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से श्रावणी अमावस्या पर पितरों की शांति के लिये पिंडदान और दान-धर्म करने का महत्व है। उत्तर भारत के विभिन्न मन्दिरों में और खासतौर पर मथुरा एवं वृन्दावन में, हरियाली अमावस्या के अवसर पर विशेष दर्शन का आयोजन किया जाता है। भगवान कृष्ण के इन विशेष दर्शन का लाभ लेने के लिये बड़ी सँख्या में भक्त मथुरा में द्वारकाधीश मन्दिर तथा वृन्दावन में बाँकेबिहारी मन्दिर जाते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार ऐसा संभव नहीं है इसलिए लोग पवित्र जल का मिश्रण करके घर पर स्नानदान करें। इससे भी गंगा जल में स्नान के समान पुण्य की प्राप्ति होगी। उन्होंने बताया कि इस पर्व पर गांव में किसान अपने खेत-खलियानों में कृषि औजारों हल, हंँसिया आदि की पूजा-अर्चना करते हैं। कई जगहों में आज के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान है। इस दिन पीपल, बरगद, केला, नींबू अथवा तुलसी का पौधारोपण करते हैं। नदी या तालाब में जाकर मछली को आटे की गोलियांँ खिलाना भी बड़ा ही फलदायी बताया गया है।अपने घर के पास चींटियों को चीनी या सूखा आटा खिलाये जाने की भी परंपरा है। मांँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये घर के ईशान कोण में घी का दीपक जलाते हैं। आज की रात को पूजा करते समय पूजा की थाली में स्वस्तिक या ऊंँ बनाकर उस पर महालक्ष्मी यंत्र रखते हैं।
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