छोटू यादव/ रायपुर संतान सुख की प्राप्ति के लिए माताओं ने रखा उपवास मनाया हलषष्ठी पर्व
भगवान बलराम का मुख्य शस्त्र हल तथा मूसल है। हल धारण करने के चलते ही बलरामजी को हलदार भी कहते हैं। ये देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान हैं। हलषष्ठी श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद मनाई जाती है। इसे चंद्रषष्ठी बलदेव छठ रंधन षष्ठी भी इस दिन खासतौर से किसान वर्ग भी पूजा करते हैं। इस दिन हल, मूसल और बैल को पूजा जाता है। इस दिन हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का उपयोग नहीं किया जाता है। साथ ही हल का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों के लिए सुबह से ही उपवास रखती है तथा
घर के आंगन में सभी मांतए एकत्र होकर समुह में
दोपहर बाद पूजा अर्चना करती है पूजा अर्चना संपन होने के बाद सभी पूजन समाग्री को तलाब में विसर्जन कर बिना नमक तेल के बने सब्जी और बिना हल चले चावल का भगवान बलराम को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करती है वर्ण कथाओ में
ऐसी मान्यता है कि
एक बार द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण एक स्थान पर विराजमान थे। तब धर्मराज बोले हे भगवन्! इम जगत में पूण्य प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने वाला कौन सा व्रत उत्तम है। तब भगवान श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन हलषष्ठी के समान उत्तम कोई दूसरा व्रत नही है। यूधिष्ठिर बीले कि हे महाराज यह व्रत कब और किस प्रकार प्रकट हुआ। श्री कृष्ण जी बोले कि हे राजन मथुरापुरी में एक राजा कंस थे। सुर नर सभी उसके आधीन थे। राजा कंस की बहन का नाम देवकी था । वह विवाह के योग्य हुई तब कंस ने उसका विवाह वसुदेव के साथ कर दिया । जब वह विदा होकर ससुराल जा रही थी तभी आकाशवाणी हुईं कि हे हंस जिस देवकी को तू प्रेम से विदा कर रहा है इसी के गर्भ से
उत्पन्न आठवें बालक द्वारा तेरी मृत्यु होगी। यह सुनकर कंस ने क्रोध में भरकर देवकी और वसुदेव को बन्दी बना लिया और जेलखाने में डाल दिया। समय बीतने के साथ देवकी के पुत्र पैदा होते गये कंस एक एक करके सभी को मारता जाता। इस प्रकार जब देवकी के छ: पुत्र मारे गये तब एक दिन देवयोग से महामुनि नारद देवकी से मिलने जेल खाने पहुँचे उसे दुखी देखकर कारण पूछा। देवकी ने रोते हुये सारा हाल बताया । तब श्री नारदजी ने कहा बेटी! दु:खी मत होओ, तुम श्रद्धा भक्ति पूर्वक हलषष्ठी माता का व्रत करो, जिससे तुम्हारे सारे दूर हो जायेगें। तब देवकी ने माता की महिमा पूछी। नारद जी बीले- देवकी! तुमसे एक पुरातन कथा कहता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो-
बहुत समय पूर्व चन्दव्रत नामक एक प्रतापी राजा थे जिनके एक ही पुत्र था। राजा ने नगर के समीप एक तालाब खुदवाया था परन्तु उसमें जल नहीं रहता था। कितना भी जल भरा जाय तुरन्त सूख जाता था, जलहीन तालाब को देख नगरवासी राजा को कोसते थे। जिससे राजा सदैव दु:खी रहते थे और कहते थे कि मेरा धन-धर्म दोनो नष्ट हो गया। एक दिन स्वप्न में वरूण देव ने राजा से कहा हे राजा! यदि तुम अपने पुत्र की मुझे बलि दोगे तो तालाब जल से भर जायेगा। प्रात: राजा ने स्वप्न को
बात दरबार में बतायी और कहा कि मैं अपने इकलौते पुत्र का बलिदान नहीं कर सकता चाहे तलब में जल रहे अथवा न रहे। राजा की यह बात सुनकर राजकूमार बोला कि मैं स्वयं अपनी बलि दे दूंगा क्योकि मेरे बलिदान से पिता का सुयश बढेगा तथा माता को सुख मिलेगा। यह कहकर राजकुमार तलब की तलहटी में जाकर बैठ गया और उसके प्रभाव से तालाब तत्काल जल से भर गया उसमें कमल के पुष्प खिल गये तथा
सभी जीव-जन्तु बोलने लगे। राजा यह समाचार सुनकर दुखी होकर वन को चले गये। वन में पॉच स्त्रियाँ हलषष्ठी माता की पूजा कर रही थी। राजा द्वारा विधि पूछने पर स्त्रियों ने माता की महिमा का वर्णन कर दिया जिसको सुनकर राजा वापस लौट आये और रानी से कहा कि तुम भी हलषष्ठी माता का व्रत तथा पूजा करो । राजा की बात सुनकर रानी उसी दिन-से व्रत रखकर पुजा करने लगी। जिसके प्रभाव से कुछ समय बाद राजकूमार तालाब से बाहर आ गया। राजा यह देख कर पसन्द हुए और राजकुमार क्रो महल में ले आये तब से रानी प्रतिवर्ष हलषष्ठी माता का व्रत करने लगी।
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