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Wednesday, October 21, 2020

आज स्कन्दमाता पूजा -



रायपुर -- नवरात्रि के पांँचवे दिन आज माँ दुर्गा के पांँचवे स्वरुप स्कंदमाता की पूजा-आराधना- उपासना की जाती है। स्कंदमाता की पूजा करने से साधन , ध्यान और उपासना में सफलता प्राप्त होती है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। स्कंदमाता सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इसलिये स्कंदमाता की उपासना करने वाले साधक सदा तेजस्वी और निरोगी रहते हैं। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास , ज्ञान का आशीर्वाद और समस्त व्याधियों का अंत हो जाता है। आज के दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। माना जाता है कि मांँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिये मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अत: साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये। आज माँ को चम्पा के पुष्प के साथ साथ श्रृंगार में हरे रंग की चूड़ियाँ अर्पित करें। कालिदास द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्यम् और मेघदूत रचनायें स्कंदमाता की कृपा से ही स़ंभव हुई है। पूरी नवरात्रि दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिये।


स्कंदमाता की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था। जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब मांँ पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिये प्रशिक्षित किया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया।


स्कंदमाता नाम क्यों पड़ा ?


पार्वती और शिव के पुत्र है स्कंद(कार्तिकेय) जो प्रसिद्ध देव असुर संग्राम मे सेनापति बने थे।पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्हें कुमार और शक्ति कहा गया है। इन्ही स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण ही इन्हे माँ के पाँचवाँ स्वरूप स्कंदमाता कहा गया है।


स्कंदमाता का स्वरुप




स्कंदमाता (चतुर्भूज) चार भुजाओं वाली हैं। ये अपने दो हाथों मे कमल पुष्प धारण की हुई हैं।और अपने तीसरे हाथ मे कुमार स्कंद (कार्तिकेय) को सहारा देकर बैठायी हैं। इनका चौथा हाँथ भक्तों के कल्याण के लिये है अर्थात वरमुद्रा में है। माँ अपने इस स्वरुप मे पूर्णत: ममतामयी हैं। देवी स्कंदमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं।इन्हे शिव की पत्नी होने के कारण मातेश्वरी कहा गया तथा इनके गौर वर्ण के कारण इन्हे देवी गौरी कहा गया है। माँ का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल पर विराजमान रहती हैं इसलिये इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। स्कंदमाता का वाहन सिंह है।स्कंदमाता सदैव ही अपने भक्तो के लिये कल्याणकारी हैं। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती है।


स्कंदमाता का मन्त्र-


प्रत्येक सर्वसाधारण के लिये आराधना योग्य निम्न श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिये आज नवरात्रि के पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिये।


-- सिंहासन गता नित्यं पद्माश्रितकर्द्वया

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता याशश्विनी ॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

-- हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे आपको मेरा बार - बार प्रणाम है। 

माँ दुर्गा के सामने दीप प्रज्वलित कर षोडशोपचार पूजन करने के बाद इस मन्त्र के साथ “ऊँ स्कंदमात्रै नम:” का जप अवश्य करना चाहिये तब भगवान स्कंद ( कार्तिकेय) सहित माता की कृपा प्राप्त होगी। मांँ को केले का भोग अति प्रिय है ,इन्हें केसर डालकर खीर का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिये।


स्कन्दमाता की ध्यान


वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।

अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

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