अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी -- ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज संगोष्ठी के दौरान धर्मावलंबी जिज्ञासुओं को श्राद्ध के संबंध में शंका समाधान करते हुये संकेत करते हैं कि छान्दोग्य उपनिषद में लिखा है , भगवान शंकराचार्य ने उस पर विस्तृत भाष्य भी लिखा है। बैंक में एक व्यक्ति के पर्याप्त धन है कोई उसके खाते में दूसरा व्यक्ति डाले या ना डाले , उसके पास इतनी पूंजी बैंक में है , या घर में है , जिससे वो बिना दूसरे के मदद के भी जीवन यापन अच्छी तरह कर सकता है , यह बात समझ में आ गई । इसी प्रकार जिन्होंने जीवन काल में इतना पुण्य अर्जित कर लिया है , कमा लिया है , बेटे पोते उनके नाम पर , नाती जो अधिकृत व्यक्ति हैं श्राद्ध इत्यादि करें या ना करें वो अपनी पूंँजी से ही पार हो जाता है। ऐसी जिनके पास पूंँजी कम है और शरीर छूट गया नाती बेटे पोते , सम्बन्ध , संकल्प , मन्त्र , विधि सामग्री इन सबके मेल से फिर सामग्री पहुंँचती है मरी हुई जीवात्मा के पास या मरे हुये जीव के पास , तो मान लीजिये दाह संस्कार विधिवत हुआ शास्त्रीय ढंग से हुआ,श्राद्ध हुआ , तर्पण हुआ उसकी जो पूंँजी है वो जो पुण्य है उस जीव को जाकर के, सम्बन्ध के बल पर , संकल्प के बल पर , विधि के बल पर , सामग्री के बल पर भावना के बल पर पहुंँच जाती है। एक है मत्स्य पुराण उसमें विस्तार पूर्वक लिखा गया है , जैसे आप भारत में रहते हो , आप का कोई रिश्तेदार अमेरीका में रहता है , अब वहां पर आप भारत की मुद्रा भेजना चाहो तो ऐक्सचेंज पद्धति के अनुसार डालर में कन्वर्ट होकर उसको मिलना है या नहीं । इसी प्रकार से जिस शरीर में जीव रहता है उस शरीर का जो आहार है वह बनकर के वह सामग्री उसके पास एक्सचेंज पद्धति के अनुसार पहुंँच जाती है। मरने के बाद अगर कोई प्रेत बन गया , पूर्वज , प्रेत का आहार और शेर बन गया तो शेर का आहार । दूसरी बात यह है कि उसके नाम गंगा में अस्थि , त्रिवेणी में अस्थि विसर्जित कर दी। उस पुण्य के प्रभाव से फिर उसके भावराज्य में परिवर्तन होगा। जैसे आप कल्पना करो कोई स्वप्न में पहले शेर हो गया लेकिन थोडी देर बाद उसने अपने आप को राजाधिराज पाया , गन्धर्व पाया , मनुष्य पाया तो भावराज्य में ही तो परिवर्तन हुआ ना वहांँ । भावराज्य में परिवर्तन होने से शरीर भी अलग दिखने लग गया । पहले शेर का शरीर वो अपने को मानता था शेर , अब वो राजाधिराज मानता है । ऐसे यहांँ की जो पुण्य की पूंजी है , अगर उसका जन्म ना हो गया हो व्यवहारिक धरातल पर , केवल भाव राज्य का शरीर हो तो उस पुण्य की पूंजी से फिर नया भावराज्य बन जाता है उससे उसको फिर दिव्य शरीर की प्राप्ति हो जाती है , यह सब सिद्धान्त है।
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