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Tuesday, November 17, 2020

छठपूजा विशेष - अरविन्द तिवारी की कलम ✍️ से



नई दिल्ली -- प्रसिद्ध सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिये समर्पित छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 20 नवंबर दिन शुक्रवार को की जायेगी। हालांकि बिहार, पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा झारखंड में छठ पूजा का विशेष महत्व है, लेकिन दिल्ली, मुंबई समेत कई बड़े शहरों में भी हर्षोल्लास के साथ इसका भव्य आयोजन किया जाता है। इस व्रत को छठ पूजा , सूर्य षष्ठी पूजा , डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में भगवान श्रीराम , द्वापर में दानवीर कर्ण और पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी सूर्य की उपासना की थी।इस वर्ष वैश्विक कोरोना महामारी के मद्देनजर अधिकांश राज्यों ने सार्वजनिक स्थानों और तालाबों में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि छठ पूजा के दौरान भीड़ जमा होने पर कोरोना संक्रमण का खतरा है , इस कारण लोगों से घरों में ही जल स्रोत बनाकर पूजा अर्चना करने को कहा गया है।


क्यों होती है सूर्य की आराधना ? 


छठ पूर्व में सूर्य की आराधना और छठी मैया की विधि विधान से पूजा का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता हैं। कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता के साथ सभी मनोकामनायें पूरी करती है। हिन्दू धर्म में यह पहला ऐसा त्यौहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा होती है। तिथि अनुसार छठ पूजा चार दिनों की होती है। छठ की शुरुआत चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होती है , पंचमी तिथि को लोहंडा और खरना होता है। उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है जिसमें सूर्यदेव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। फिर अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण करके व्रत पूरा किया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार कल 18 नवंबर से 21 नवंबर तक मनाया जायेगा। सबसे पहले कल 18 नवंबर को नहाय खाय, 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 21 नवंबर को उषा अर्घ्‍य के साथ इसका समापन होगा। इन चारों दिनों में सभी लोगों को सात्विक भोजन करने , जमीन पर सोने के अलावा और भी कई कड़े नियमों का पालन करना होता है। इन चारों दिनों में छठ पूजा से जुड़े कई प्रकार के व्‍यंजन, भोग और प्रसाद बनाया जाता है।


नहाय -  खाय


छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है जो कि इस बार कल 18 नवंबर को है। इस दिन घर में जो भी छठ का व्रत करने का संकल्‍प लेने वालों को स्‍नान करके साफ और नये वस्‍त्र धारण करता होता है। फिर व्रती शाकाहारी भोजन लेते हैं , आम तौर पर इस दिन कद्दू , लौकी , चने दाल की सब्‍जी पकायी जाती है। भोजन में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है।व्रत से पूर्व नहाने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करने को ही नहाय - खाय कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:46 बजे औऋ सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। 


लोहंडा और खरना 


नहाय - खाय के अगले दिन लोहंडा और खरना होता है , जो इस बार 19 नवंबर को है। इसमें महिलायें पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को भोजन करती हैं। इस दिन छठी माई के प्रसाद के लिये चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है साथ ही फल, सब्जियों से पूजा की जाती है और गुड़ की खीर भी बनाते है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। 


छठ पूजा 


छठ पर्व का मुख्य दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है और इसी दिन छठ पूजा होती है।

तीसरे यानि षष्ठी के दिन छठ पर्व का प्रसाद बनाया जाता है , अधिकांश स्थानों पर चावल के लड्डू बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल बांँस की टोकरी में सजाकर पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलायें सूर्य को अर्घ्य देने और पूजा के लिये तालाब, नदी या घाट पर जाती हैं। इस दिन स्नान पश्चात शाम को डूबते सूर्य की पूजाकर उन्हें अर्घ्य दिया है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:48 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। 


सूर्योदय अर्घ्य (पारण दिन) 


छठ पूजा के अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है जो इस बार 21 नवंबर को होगी। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद बांँट पारण कर छठ पूजा संपन्न की जाती है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:49 बजे होगा।

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