अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायगढ़ - कल 21मार्च के दिन विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2011 में डाउन सिंड्रोम के बारे में लोगो में जागरूकता बढ़ाने के लिये 21 मार्च को विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में घोषित किया था। डाउन सिंड्रोम नाम , ब्रिटिश चिकित्सक जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर पड़ा जिन्होंने इस सिंड्रोम (चिकित्सीय स्थिति) के बारे में सबसे पहले वर्ष 1866 में पता लगाया था। इस दिन के अवलोकन का उद्देश्य सार्वजनिक जागरूकता और डाउन सिंड्रोम की समझ को बढ़ाना है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये राष्ट्रीय दिब्यांग मंच के सदस्य और रायगढ़ के दिब्यांग मंच के अध्यक्ष कुमारी चंचला पटेल ने चर्चा के दौरान अरविन्द तिवारी को बताया कि डाउन सिंड्रोम एक ऐसी अनुवांशिक स्थिति है जो एक अतिरिक्त गुणसूत्र के जुड़ने की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होती है, डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति में सामान 46 गुणसूत्र की बजाय 47 गुणसूत्र होते हैं , इस कारण वे अलग दिखते हैं तथा अलग तरीके से सीखते भी हैं l डाउन सिंड्रोम का मतलब ऐसे स्पेशल बच्चे जिनमें एक एक्स्ट्रा क्रोमोसोम होता है जिसे टाईसोमी के नाम से भी जाना जाता है। विश्व में अनुमानित एक हजार में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता है। डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति भिन्न- भिन्न तरीकों से प्रभावित होते हैं , सभी लोगों में समझने की कुछ अशक्तता होती है, कुछ व्यक्तियों ने यह अल्प और कुछ में अधिक भी होती है। अधिकांश व्यक्ति व्यस्त जीवन में लगभग स्वतंत्र जीवन बिता सकते हैं परंतु कुछ को दूसरे की सहारे की आवश्यकता पड़ती है। इसी तरह कुछ की चिकित्सकीय जैसे हृदय संबंधी समस्या भी होती है जिनमें से अधिकांश स्थितियों का उपचार किया जा सकता हैl डाउन सिंड्रोम बच्चे स्पेशल जरूर होते हैं लेकिन किसी से कम नहीं बल्कि अलग होते हैं। ये भी सभी काम करने में सक्षम होते हैं बस थोड़ा धीरे करते हैं। इनके दिखाई देने वाले लक्षणों में आंखों के बीच की दूरियां अक्सर कम होती है , सिर के पास त्वचा उठी हुई होती है , नाक छोटी दबी हुई होती है , जीभ मोटी और कुछ बाहर निकली हुई , मुंह छोटे व जीभ में मोटी दारारें और कुछ फटे फटे से होते हैं। गर्दन छोटी और छोटी गर्दन के पीछे के हिस्से की त्वचा का ढीला होती है , पेट अक्सर बाहर निकला हुआ एवं बड़ा होता है , हाथ पैर छोटी चौड़ी और गुदगुदी होती हैं , उंगलियों और अंगूठे के बीच की दूरियां अधिक होती है। डाउन सिंड्रोम वाले चेहरे की पहचान स्पष्ट रूप से आसानी हो जाती है, इसके कारण बुद्धि कमज़ोर होती है, विकास देर से होता है और इसके साथ थाइरॉइड या दिल का रोग भी हो सकता है। आज दुनियां में इतने सारे प्रगति कर ली है कि इन विशेष बच्चों को भी बहुत प्लेटफार्म मिल रहे हैं जो अपनी प्रतिभा को दुनियां के सामने लाकर अपना एक अलग ही पहचान बना रहे हैं l इन डाउन सिंड्रोम बच्चे भी अलग-अलग क्षेत्रों में अपना एक अलग ही पहचान बनाये हुये हैं। कुछ बच्चे डांस में बहुत आगे बढ़ चुके हैं तो कुछ कुकिंग में और कुछ फैंसी ड्रेस में प्रदेश के अलावा देश में अपनी एक अलग पहचान छोड़ चुके है। रायगढ़ शहर में किसी क्षेत्र में डाउन सिंड्रोम प्रतिभावान व्यक्ति के बारे में पूछे जाने पर चंचला ने आगे बताया कि ऐसे ही रायगढ़ के एक डाउन सिंड्रोम प्रतिभावान विभु अग्रवाल जो प्रवीण अग्रवाल और श्रीमति शालिनी अग्रवाल के सुपुत्र हैं। विभु डांस की दुनियां में एक बहुत ही अच्छा पहचान बना लिया है। इन्होंने यह साबित कर दिया कि इच्छा शक्ति और मेहनत से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। विभु डांस करने के अलावा कैसियो बजाते हैं और बैडमिंटन भी खेलते हैं। इन्होंने पिछले साल ओपन स्कूल परीक्षा से दसवीं पास की है। ये अभी तक कई डांस प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं और स्टेज परफॉर्मेंस दे चुके हैं। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के समय कई ऑनलाइन प्रतियोगिताओं जैसे शांतिधाम फाउंडेशन भुनेश्वर , मंथन फाउंडेशन राजस्थान , हॉट एंड सोल लखनऊ , हुलाहुल फाउंडेशन मुंबई , लायंस क्लब मुंबई , लायनेस क्लब रायगढ़ , छग सीएम भूपेश बघेल द्वारा कराये गये सीजी वन डांस प्रतियोगिता जो कि कोरोना के लिए जागरूकता अभियान की तरह था उसमें भी अपने जिले से विजेता रहे। इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टैलेंट शो ओपन द डोर टर्निंग प्वाइंट कोलकाता द्वारा कराया गया था जिस में भी डांस कैटेगरी में विजेता रहे। स्पेशल ओलंपिक्स भारत के द्वारा कराया गया योगा एवं डांस प्रतियोगिता में भी इन्होंने भाग लिया था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ स्पोर्ट्स एसोसिएशन द्वारा 21 जून 2020 को सूर्य नमस्कार प्रतियोगिता में भी विभु ने नौवां स्थान प्राप्त किया था। इसके साथ साथ वे एमओएमबी तेलंगाना द्वारा आयोजित डांस प्रतियोगिता में भी सेमी फाइनीलिस्ट रहे अभी फाइनल रिजल्ट का इंतजार है। अभी विभु वर्तमान में स्पेशल ओलंपिक्स में बैडमिंटन खेलने के लिये सौरव पंडा एवं हितेश सर से प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस प्रकार विभु ने समय-समय पर साबित किया है कि हम किसी से कम नहीं हैं , हमें आगे बढ़ना है और अपने सपनों को पूरा करना है।
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