सोन नदी पर पुल बनने से बैगा आदिवासियों में खुशी की लहर
बालाघाट ।बालाघाट जिले के अंतिम छोर पर बसा मछुरदा ग्रामपंचायत के करीब आधा दर्जन ग्रामो का संपर्क बारिश के दिनों में लगभग कट जाता था।बारिश के तीन महीनों में अतिआवश्यक कार्य पड़ने पर एक दूसरे के ग्राम में आने जाने के लिए 100 किमी का लंबा सफर तय करना पड़ता था या बीच मे पड़ने वाली सोन नदी को जान जोखिम में डाल कर निकलना पड़ता था।
बिरसा जनपद अंतर्गत आने वाली अतिनक्सल प्रभावित ग्रामपंचायत मछुरदा के गठिया,धर्मशाला, कोरका,बोन्दरी,नवाटोला और उरसेकाल के बैगा आदिवासियों की सोन नदी पर पुल बनाने की मांग को शासन प्रशासन ने गंभीरता से लेते हुए महज दो वर्षों में लंबा चौड़े पुल का निर्माण कर क्षेत्र में निवासरत बैगा आदिवासियों के आने जाने के मार्ग को सुलभ बना दिया जिससे बैगा आदिवासियों में खुशी की लहर आ गयी और क्षेत्र के निवासियों ने शासन प्रशासन को धन्यवाद दिया है।हालांकि पुल का निर्माण करने वाली एजेंसी के द्वारा पुल निर्माण में लगने वाली मैटेरियल काफी घटिया किस्म का उपयोग कर निर्माण किया गया था जिसका उल्लेख समय समय पर समाचार पत्रों के माध्यम से किया जा रहा था लेकिन शासन प्रशासन ने इस तरफ ध्यान नही दिया था।बहरहाल जैसे तैसे पुल का निर्माण कर क्षेत्रवासियों के लिए बनी सोन नदी नामक बड़ी समस्या को सुलझाकर क्षेत्रवासियों के आने जाने का मार्ग सुलभ बना दिया।बता दें कुछ वर्ष पहले इसी सोन नदी में सुबेलाल नामक बैगा की डूबने से मौत हो गयी थी जो प्रदेश का पहला लखपति बैगा बांस बेचकर बना था।ग्रामीणों ने बताया कि सोन नदी पर पुल बनने से हमारा समय व धन दोनों का बचत होगा जो निस्संदेह हमारे लिए उपयोगी सिद्ध होगा।कोरका,बोन्दरी, उरसेकाल, गठिया, नवाटोला और धर्मशाला के ग्रामो के बीच मे पड़ने वाली सोन नदी बारिश के तीन महीनों के लिए ग्राम वासियों को रुलाने का काम करती थी।वजह थी इनके आने जाने के मार्ग में अपने विकराल रूप में रहने वाली सोन नदी।नदी पर पुल बनने से महिलाएं भी बहुत खुश है,क्योंकि महिलाएं अब अपने अपने रिश्तेदारों के यहाँ आसानी से आ जा सकती है।
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