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Thursday, October 14, 2021

सभी सिद्धियों को देने वाली है मां सिद्धिदात्री - अरविन्द तिवारी

 



नई दिल्ली  -  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

— हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे आपको मेरा बार-बार प्रणाम है ,  या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। दुर्गा मां जगत के कल्याण के लिये नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का। मांँ दुर्गा की नौंवी शक्ति अर्थात नवदुर्गाओं में माँ सिद्धदात्री अंतिम स्वरूप है। आज शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि है , यह तिथि महानवमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नवें  दिवस के बारे में अरविन्द तिवारी ने बताया कि आज के दिन मां सिद्धिदात्री की विधि विधान से पूजा की जाती है। सिद्धि का मतलब आध्यात्मिक शक्ति और दात्री यानि देने वाली अर्थात माता सिद्धीदात्री अणिमा , महिमा , गरिमा , लघिमा , प्राप्ति , प्राकाम्य , ईशित्व और वशित्व- ये सभी प्रकार के सिद्धियों को देने वाली है। आज नवरात्रि पूजन के अंतिम दिवस शास्त्रीय विधि विधान एवं पूर्ण निष्ठा के साथ इनकी उपासना की जाती है। इस दिन साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिये अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। वे इनकी कृपा से अनंत दुख रूपी संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। केवल मानव ही नहीं बल्कि देव , गंधर्व , यक्ष , ऋषि , असुर सभी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिये माँ सिद्धिदात्री की आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिये नवरात्रि के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इस देवी का पूजन , ध्यान , स्मरण हमें संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं। भगवान शिव जी ने इस देवी की कृपा से सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं एवं इनकी कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था और इसी कारण शिवजी अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुये। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार यह देवी केतु ग्रह को नियंत्रित करती है। कई जगह तो अष्टमी को ही कन्या भोज और हवन हो गया वहीं कई जगह आज नवमीं को कन्या भोज और हवन होगा। जो भक्त नवरात्र में कन्यापूजन और नवमी के पूजन के साथ व्रत का समापन करते हैं उन्हें इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चूकि दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं इसीलिये सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जाती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिये।


माता सिद्धिदात्री का स्वरूप – 


माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य है। ये देवी महालक्ष्मी की तरह कमल पर विराजमान रहती हैं और वे शेर की सवारी करती हैं। उनकी चार भुजायें हैं जिनमें दाहिने एक हाथ में वे गदा और दूसरे दाहिने हाथ में चक्र तथा दोनों बायें हाथ में क्रमशः शंख और कमल का फूल धारण की हुईं हैं। ये देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं। देवी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है और इनकी पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता की उपासना में अध्यात्म के प्रतीक हल्के बैंगनी या जामुनी रंग के वस्त्रों को धारण करें। माता सिद्धिदात्री की पूजा में नौ तरह के फल-फूल अर्पित किये जाने का विधान है। मोक्ष की प्राप्ति के लिये मांँ सिद्धिदात्री पर केले का भोग लगायें। “ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै  नमः॥” के साथ निम्न मंत्र से माँ का ध्यान करना चाहिये। भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान , स्तोत्र व कवच का पाठ करने से ‘निर्वाण चक्र’ जागृत हो जाता है।


प्रार्थना मंत्र


सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से ‘निर्वाण चक्र’ जागृत हो जाता है। 


ध्यान


वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम।

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम॥

स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम।

शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम॥

पटाम्बर,परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम।

कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम॥


स्तोत्र पाठ


कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।

स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।

नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥

परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।

विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।

भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।

मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते ।।


कवच


ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।

हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥

ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।

कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥

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