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Wednesday, December 29, 2021

आज भी है पत्रकार के सही हत्यारे की है तलाश!

आज भी हैं पत्रकार के सही हत्यारे की तलाश!




   छत्तीसगढ़ के दो पत्रकार सुशील पाठक बिलासपुर और उमेश राजपूत गरियाबंद की हत्याओं के पीछे ऐसा क्या कनेक्शन है कि सीबीआई के तत्कालीन डीएसपी एनपी मिश्रा नमो प्रसाद मिश्रा ने अपने संस्था के सर्वोच्च अधिकारी को वर्ष 2016 में ही पत्र लिखकर कहा था कि मनोज अग्रवाल को बचाने के लिए मुझे फसाया जा रहा है असल में हुआ यह था कि उमेश राजपूत हत्याकांड में जब उन्होंने शिव वैष्णव को पूछताछ के लिए सितंबर 2016 में हिरासत में लिया तो उमेश राजपूत हत्याकांड में अहम गवाह साबित हो सकने वाले शिव वैष्णव ने आत्महत्या कर ली। हालांकि उसकी मौत अस्पताल में हुई किंतु वैष्णव के परिजनों का कहना था कि मारपीट के कारण ही उसकी जान गई परिजन भी यह आरोप लगाते थे कि बिलासपुर के एक बिल्डर को पूछताछ के लिए नहीं लाया जा रहा है डीएसपी एनपी मिश्रा के पत्र से यह जाहिर होता है की असल में परिजन जिसे बिल्डर कह रहे हैं वही शख्स मनोज अग्रवाल है। एनपी मिश्रा को सीबीआई में 2016 के बाद से आज तक कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई यदि एनपी मिश्रा गलत है तो उसने सीबीआई डायरेक्टर यहां तक कि पीएमओ को 1-2 नहीं अब तक 25 पत्र लिखे हैं उसने अपने अंतिम पत्र जो अभी हाल ही में लिखा गया है यहां तक कहा है की उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाए उसे पेंशन भी नहीं चाहिए और उसका पेंशन सीबीआई के भ्रष्ट अधिकारियों में बांट दिया जाए समय-समय पर एनपी मिश्रा ने जो पत्र लिखे उनमें जिन नामों का उल्लेख है उसमें अमित कुमार, अजय के भटनागर, जेडी प्रशासनिक सीबीआई, राम गोपाल गर्ग आईपीएस सीबीआई, पीके गौतम, अनिल सिन्हा, मतीन नीना सिंह, शरद अग्रवाल आईपीएस, अभिसार दुलार आईपीएस, एनके पाठक, ललित कुमार जयसवाल, डीके तन्मय, सोनल मिश्रा, केएस नेगी, एके सिंह में से अधिकतर सीबीआई में ही काम करते हैं। एनपी मिश्रा का खुलम खुला आरोप रहा कि इनमें से बहुत से आईपीएस अधिकारी फेक एनकाउंटर का दबाव बनाते हैं ना मानने पर किसी दूसरे कांड में फंसा दिया जाता है एमपी मिश्रा के पत्र को इस अर्थ में भी समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के दोनों पत्रकारों के हत्याकांड के पीछे हिरासत में मौत कुछ इसी तरीके से साजिश है दोनों हत्याकांड ऊपर सीबीआई छत्तीसगढ़ में बुरी तरह असफल रही और अभी भी यह दोनों प्रकरण अनसुलझे हैं। एनपी मिश्रा ने अपना जो पहला पत्र लिखा था उसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जेल में बंद एक आरोपी जिसे मेडिकल ग्राउंड पर बार-बार बाहर इलाज के लिए ले जाया जाता है उसके पूरे मेडिकल प्रमाण पत्र फर्जी हैं और इन्हें जारी करने वाले डॉक्टर छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान बिलासपुर और रायपुर मेडिकल कॉलेज के हैं ऐसे में यह शंका उठना स्वभाविक है कि उस समय इस महकमे के मंत्री बिलासपुर विधायक भी थे। आखिर ऐसी कौन सी कडी़ है जिसने जेल में बंद आरोपी के फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट तैयार कराने मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर दबाव बनाया या यह प्रमाण पत्र भारी भरकम धनराशि लेकर बना दिए गए जेल से सब कुछ संभव है यह बात अभी हाल ही में तिहार जेल में बंद ठग सुकेश चंद्रशेखर ठगी कांड से फिर से सिद्ध होता है। 


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