14 लोक क्या है , ओर कौन से लोक में कौन निवास करते है जानिए ऑनलाइन सत्संग से,,
19 जनवरी
प्रतिदिन की भांति आज भी ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री रामबालक दास जी के द्वारा किया गया भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कीये
आज कलप सिंह जी ने जिज्ञासा रखी की तीन लोक 14 भुवन 3 लोक तो समझ में आता है स्वामी जी 14 भुवन पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे, बाबा जी ने बताया कि चौदह भुवन : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, पाताल तथा रसातल, भूर्लोक, भूवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, सत्यलोक। सुख सागर में इसका बहुत बहुत अच्छा वर्णन मिलता है अतल अर्थात जो व्यक्ति इस संसार में रहकर भी इस संसार से विरक्त हो जाता है, वह अतल लोक में वास कर रहा है अर्थात आनंद ले रहा है, वितल अर्थात संसार में रहकर भी तो संसार और परमात्मा दोनों को निभा सके, सुतल अर्थात जो आध्यात्मिक का प्रचार प्रसार करता है और सबको सुख देता है वह सुतल में निवास करता है तलातल जो व्यक्ति संसार में रहकर इसी में डूब जाता है और परमात्मा का उसे ध्यान ही नहीं रहता वह तलातल में निवास करता है, महातल में वे ज्ञानी महात्मा योगी पुरुष निवास करते हैं जो सिद्ध पुरुष महात्मा होते हैं, और पाताल लोक जो व्यक्ति पाप कर्म करते हैं अर्थात पाताल लोक हमेशा से ही असुरों का निवास स्थान रहा है, भूलोक जो लोग भूमि पर रहते हैं जैसे नभचर जलचर उभयचर आदि, भूवलोक अर्थात जहां पर तारा ग्रह नक्षत्र सूर्य चंद्रमा आदि स्थापित है, स्वर्ग लोक जो व्यक्ति यह समझ लेता है कि हम आए हैं निगम से और जाना अगम को है वह स्वर्ग लोक का आनंद लेता है, महालोक में हमारे पितर आदि निवास करते हैं, जनलोक, सारे संसार में जितने भी जड़ चेतन आदि है वह इस लोक में निवास करते हैं, जो भी पुण्य कार्य करते हैं वे यहां होते हैं और तपोलोक जो हिमालय पर्वत आदि तपोभूमि पर तप करते हैं वह इस लोक में निवास करते हैं,
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की बाबाजी, श्रेष्ठ दान क्या है, दान की कितनी श्रेणियाॅ हैं तथा दान का क्या महत्व है ? कृपया प्रकाश डालने की कृपा करेंगे।, बाबा जी ने स्पष्ट किया कि कलयुग में धर्म के चार चरण में से एक ही चरण बचा हुआ है वह है दान, श्रेष्ठ दान वह है जो ज्ञान के रूप में दिया जाता है धन अन्न के रूप में जो भी हम दान देते हैं वह नश्वर होता है नष्ट हो जाता है लेकिन विद्या और ज्ञान के रूप में जो हम दान देते हैं वह मृत्यु पर्यंत हमारे साथ रहता है
आगे सत्संग में बाबा जी ने सभी को बताया कि भगवान को भी वे भक्त प्रिय होते हैं जो निष्काम भावना से भगवान की शरण मे जाते हैं आजकल जो भक्त होते हैं चाहे वह बड़े से बड़े तीर्थ क्यों ना जाए वहां भगवान के पास निष्काम भक्ति लेकर कभी नहीं जाते वह भगवान से कुछ ना कुछ मांगने के लिए ही जाते हैं तो भक्तों को निष्पाप निष्काम और निष्कपट होकर ही भगवान के समक्ष जाना चाहिए भक्त को चंदन के समान होना चाहिए जो भी उसके पास जाए वह सुवासित हो जाए, क्योंकि भगवान तो सर्वदर्शी है वह अपने भक्तों की हर दशा दिशा को जानते हैं कभी भी भिखारी बनकर नहीं भक्त बनकर भगवान के पास जाए
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ
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