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Sunday, May 1, 2022

सूचना का अधिकार जनता का अधिकार यह कानून 2005 में कॉग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया व इसके विरोध में देश की सभी पार्टियां थी व शायद कोग्रेस भी लागू करके पश्व्हाप कर रही हैं ।


सूचना का अधिकार जनता का अधिकार यह कानून 2005 में कॉग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया व इसके विरोध में देश की सभी पार्टियां थी व शायद कोग्रेस भी लागू करके पश्व्हाप कर रही हैं ।

देश बड़े से बडे नेता जैसे एडवोकेट सुभर्मनियम स्वामी , अरविंद केजरीवाल , अन्ना हजारे व कई अन्य हस्तियां आज  Rti के उपयोग से बडे बडे घोटाले उजागर किये है ।


किसी भी तरह का सरकारी दस्तावेज आपको न्यायालय के लिये या स्वयम को पढ़ने के लिऐ किसी भी सरकारी दप्तर से लेना है तो आप सूचना का अधिकार कानून से 2 रु पेज देकर प्रमाणित करके ले सकते हैं ।

यदि आपको कोई कठिनाई हो तो आप हमारे सदस्यो से सहयोग ले सकते हो 


भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार उसकी सेवा के लिए बनाई गई है। वह क्या, कहां और कैसे कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक इस सरकार को चलाने के लिए टैक्स देता है, इसलिए भी नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है। जनता के यह जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है। 1976 में राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश मामले में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 में विर्णत सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। अनुच्छेद 19 के अनुसार हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्त करने का अधिकार है।

 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनता जब तक जानेगी नहीं तब तक अभिव्यक्त नहीं कर सकती। 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार नागरिक सरकार से सूचना मांगेंगे और किस प्रकार सरकार जवाबदेह होगी।



सूचना के अधिकार कानून के बारे में कुछ खास बातें:


सूचना का अधिकार अधिनियम हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह -

सरकार से कोई भी सवाल पूछ सके या कोई भी सूचना ले सके.

किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सके.

किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सके.

किसी भी सरकारी काम की जांच कर सके.

किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल सामिग्री का प्रमाणित नमूना ले सके.

सभी सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थाएं, आदि विभाग इसमें शामिल हैं. पूर्णत: निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है। (धारा-2(क) और (ज)

हर सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक लोक सूचना अधिकारी बनाए गए हैं। यह वह अधिकारी हैं जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध् कराते हैं। (धारा-5(१) लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह 30 दिन के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) सूचना उपलब्ध् कराए। (धारा-7(1)।

अगर लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का ज़ुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।


लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का करण पूछे (धारा 6(2)


सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है

लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है,  बीपीएल कार्डधरकों से सूचना मांगने की कोई फीस नहीं ली जाती (धारा 7(5)।


दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी. (केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन

कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध् कराई गई है तो सूचना मुफ्रत दी जायेगी। (धारा 7(6)

यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह

उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित

करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी। (धारा 6(3)


लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे

सूचना आयोग से की जा सकती है।


सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।


लोक सूचना अधिकारी कुछ मामलों में किसी कारण से या लापरवाही से या देष के कारण या भ्र्ष्टाचार में लिप्त होने के कारण , बहाना बना कर सूचना देने से मना कर सकता है ।


 जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 व 8H में दिया गया है ।

या 3rd पार्टी सूचना भी बोल सकता हैं आवेदन पर निर्भर करता हैं ।

लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना नही कर सकता हैं । सूचना भी दी जा सकती है ।


जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता ।

सूचना राष्ट्रीय सुरक्षा से व जन प्रतिनिधियों की सुरक्षा से सम्बंधित हो वो आवेदन (जनता) को नही मिलेंगी


यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है (धारा 19 (1)

यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। (धारा 19 (3)

यदि सूचना आयोग के फैसले से भी आप सन्तुष्ट न हो तो आप उच्च न्यायालय से अपील कर सकते हो

सीएन आई न्यूज सिवनी म.प्र.से छब्बी लाल कमलेशिया की.रिपोर्ट

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