जग कल्याण के लिये होता है भगवान का प्राकट्य - आचार्य मिश्रा
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर - जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है , तब-तब संसार का कल्याण करने के लिये भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार व पृथ्वी को दैत्य शक्तियों से मुक्त कराने के लिये अवतार लिया था। जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी , तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। मनुष्य भगवान को छोड़कर माया की ओर दौड़ता है , ऐसे में वह बंधन में आ जाता है। जबकि मानव को अपना जीवन सुधारने के लिये भगवत सेवा में ही लीन रहना चाहिये।
उक्त बातें भागवत प्रवक्ता आचार्य विनय मिश्र बाल्को - कोरबा (सीपत वाले) ने श्रीमति गोमती - नारायण शर्मा के पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ उत्सव पर पद्मनाभपुर , दुर्ग में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ कथा के चौथे दिवस कही। उन्होंने श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुये बताया कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी , जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है , उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिये उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी , उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?' कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुये और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था तब कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिये गये। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ , उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ , जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी। जब चारों तरफ अत्याचार / अनाचार का साम्राज्य फैल गया , तब द्वापर युग में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। श्रीकृष्ण के जन्म की इसी शुभ घड़ी का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने बुधवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे , उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख / चक्र / गदा / पद्म धारण किये चतुर्भुज भगवान प्रकट हुये। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर गोकुल भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। तुम चिंता ना करो। आप लोग बंधन मुक्त हो जाओगे , जागते हुये पहरेदार सो जायेंगे , कारागृह के फाटक अपने आप खुल जायेंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी। उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गये , कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गये। इधर कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा , परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- अरे मूर्ख मुझे मारने से क्या होगा ? तुझे मारने वाला तो गोकुल जा पहुंचा है , वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।कथा के दौरान जैसे भगवान का जन्म हुआ तो पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल के जयकारों से गूंज उठा। इसके पहले महाराजश्री ने गजेन्द्रमोक्ष / समुद्र मंथन और वामन अवतार का कथा श्रवण कराया। कथा प्रसंग के अनुसार बीच बीच में वामन अवतार / कृष्ण जन्म की झांकी और भक्ति संगीत से श्रद्धालु झूमते नजर आये। इस दौरान संजय - शीला शर्मा / अजय - किरण शर्मा / विश्व की सबसे बड़ी गो सेवा संगठन कामधेनु सेना के छत्तीसगढ़ सचिव योगेश तिवारी एवं एसडीआरएफ बिलासपुर के दीपक तिवारी विशेष रूप से उपस्थित थे।
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