सुरही नदी घाटी की सभ्यता व संस्कृति पर व्याख्यान।
संजू महाजन के साथ सोमेश लहरें की रिपोर्ट
खैरागढ़ छुईखदान गंडई - छत्तीसगढ़ शासन संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा दिनांक 16 से 18 सितंबर 2022 तक संस्कृति भवन रायपुर में "छत्तीसगढ़ की संस्कृति संवाहक सरितायें" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि थे संस्कृति मंत्री माननीय अमरजीत भगत और अध्यक्षता की पुरातत्वविद डॉ. लक्ष्मी शंकर निगम ने। देश भर से आए लगभग 90 अध्येयताओं ने भारत देश की नदी संस्कृति पर अपने- अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
इसी क्रम में प्रथम दिवस के तीसरे सत्र में गंडई के सुपरिचित साहित्यकार व संस्कृति कर्मी
डॉ. पीसी लाल यादव ने "सुरही नदी घाटी की सभ्यता व संस्कृति" विषय पर पीपीटी के माध्यम से अपना रोचक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि सुरही नदी नवगठित जिला खैरागढ़ - छुई खदान - गंडई की मुख्य नदी है, जो मैकल पर्वत श्रेणी के बंजारी घाट से निकलकर बेमेतरा जिला के कुम्हीगुड़ा गांव के पास शिवनाथ नदी में मिलती है।
डॉ. पीसी लाल यादव ने अपने शोध पत्र के माध्यम से बताया कि सुरही नदी सदानीरा है। यह गंडई अंचल की जीवनदायिनी नदी है। यह छोटी किंतु महत्वपूर्ण नदी है। इसमें 16 धारायें शामिल हैं। इसीलिए इसका नाम सोरह से सुरही पड़ा। इसके उद्गम से लेकर संगम तक दोनों तटों पर मंडीप खोल गुफा,डोंगेश्वर महादेव,नर्मदा कुंड,भंवरदाह,भड़भड़ी,घटियारी, कटंगी,बिरखा, कृत्बांस, पंडरिया,गंडई, टिकरी पारा, बागुर,तुमड़ीपार,देऊँरभाना, देऊँरगांव बोरतरा,मोहगांव, देवकर, देवरबीजा, सहसपुर जैसे अनेकों प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण,पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के पूरा स्थल हैं। अमरपुर,कर्रा नाला,नर्मदा व देवरी इसकी सहायक नदियां हैं।
गंडई जिले का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगर है। इस नगर का नाम करण गंगई देवी के नाम पर हुआ है। गंडई आर्थिक सामाजिक,सांस्कृतिक, पुरातात्विक व व्यावसायिक दृष्टि से प्रदेश में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
सुरही नदी घाटी की सभ्यता व संस्कृति की विशेषताओं को प्रभावीऔर रोचक ढंग से प्रस्तुत कर डॉ पीसी लाल यादव ने उपस्थित पूरा विदों व अध्येयताओँ की तालियां बटोरीं।सत्र की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध पूरा विद प्रो.दिनेश नंदिनी परिहार और संयोजन पुरातत्ववेत्ता डॉ.शंभू नाथ यादव ने की। डॉ. यादव की इस प्रस्तुति पर नगर के संस्कृति कर्मी व कला प्रेमी जनों ने गंडई की गौरव-गरिमा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्हें बधाइयां दीं है।इसके पहले भी डॉ.पीसी लाल यादव ने गंडई के पुरातत्व पर "जहाँ पाषण बोलते हैं" नामक किताब लिख कर लोगों का ध्यान इस आकृष्ट किया है।
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