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Thursday, October 13, 2022

स्त्री शक्ति का प्रतीक है करवा चौथ - अरविन्द तिवारी

 स्त्री शक्ति का प्रतीक है करवा चौथ - अरविन्द तिवारी



नई दिल्ली - करवा चौथ हर वर्ग, आयु , जाति के हिन्दू सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है जिसे कर्क चतुर्थी भी कहते है। इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन सुखमय होने की कामना पूर्ति के लिये निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार करवा चौथ कहीं कहीं आज 13 अक्टूबर को तो कहीं कल 14 अक्टूबर को मनायेंगे। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि व्रत रखने का अर्थ ही है संकल्प लेना। वह संकल्प चाहे पति की रक्षा का हो , परिवार के कष्टों को दूर करने का या कोई और। यह संकल्प वही ले सकता है जिसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो। यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं , बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है। करवा चौथ की प्रचलित कथाओं में स्त्रियां सशक्त भूमिका में नजर आती है , इस देश में सावित्री जैसे उदाहरण हैं , जिसने अपने पति सत्यवान को अपने सशक्त मनोबल से यमराज से छीन लिया था। यह व्रत पति पत्नी में भावनात्मक लगाव और विश्वास को बढ़ाता है। इस व्रत को पहली बार करवा चौथ यानि नवविवाहिता महिलाओं के लिये बहुत अच्छा फलदायी बताया जा रहा है।करवा चौथ का पर्व महिलाओं के लिये सुखद अहसास है जिनका उन्हें साल भर इंतजार रहता है। ये व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पूरा होता है , इसलिये चांद निकलने का व्रत रखने वाली सभी महिलाओं की नजर आसमान की ओर रहती है , सबको चांद का बेसब्री से इंतजार रहता है। चांद दिखने का समय हर जगह के लिये अलग-अलग होता है। कहीं कुछ समय पहले चांद दिखाई देने लगता है , तो कहीं पर थोड़ा इंतजार भी कराता है। इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है तो कहीं नही भी है। किवदंती के अनुसार महाभारत काल से यह व्रत किया जा रहा है , भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अर्जुन के लिये इस व्रत को किया था। आज के दिन सभी सुहागिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य , सौभाग्य एवं सुखद दांपत्य की कामना के लिये यह व्रत रखती हैं जो बहुत ही कठिन होता है। इस व्रत में कुछ नियम है जिनका कड़ाई से पालन किया जाता है। इस व्रत अवधि में जल भी ग्रहण नही किया जाता अर्थात निर्जला रखा जाता है। यह व्रत सूर्योदय से पहले और चाँद निकलने तक रखा जाता है। रात्रि में चाँद और पति का दीदार के लिये सुहागिन स्त्रियाँ चाँद के उदय होने का इंतजार करती हैं। मान्यता है कि चांद दर्शन के बाद ही व्रत पूरा होता है , उसके बाद ही महिलायें व्रत का समापन करती हैं। यह भी कहा जाता है कि बिना चांद दर्शन के व्रत का पूरा-पूरा फल नहीं मिलता है। चाँद निकलने पर शिव परिवार की पूजन करती हैं। फिर छलनी में घी का दीपक रखकर चंद्रमा को अर्घ्यं देकर , छलनी में से चंद्रमा के साथ अपने चाँद यानि पति का चेहरा देखती हैं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं और पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। करवा चौथ के व्रत में माता पार्वती समेत शिव परिवार की पूजा की जाती है। इस दिन खास तौर पर गणेश जी का पूजन होता है और उन्हें ही साक्षी मानकर व्रत शुरु किया जाता है। गणेश जी को चतुर्थी का अधिपति देव माना गया है। पूजा करते और कथा सुनते समय सींक रखने की परंपरा है जो करवा माता की उस शक्ति का प्रतीक है जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था। पूजन के पश्चात अर्घ्य दिये जाने का विधान है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन जिसके द्वारा चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है , यहां अर्घ्य का मतलब चंद्रमा को जल देने से है। महिलाओं को श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल अथवा मिट्टी का करवा भरना चाहिये। इस व्रत में चंद्रमा को अर्ध्य देकर चलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखते है। इसके बाद पति अपने पत्नी को अपने हाथों से पानी पिलाकर व्रत खुलवाते हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनने का विधान है। चंद्रमा के माता का कारक होने की वजह से करवाचौथ के दिन किसी भी महिला को अपनी सास , मांँ या फिर दूसरी महिला का अपमान नहीं करना चाहिये। करवा चौथ वाले दिन महिलायें सफेद रंग की चीजें जैसे दही , चावल , दूध या फिर सफेद रंग का कपड़ा किसी को ना दें क्योंकि सफेद रंग चंद्रमा का कारक माना जाता है। इस दिन इन चीजों का दान करने से आपको आपकी पूजा का फल नहीं मिलेगा। इस दिन महिलायें काले, नीले और भूरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा ना करें इससे उसको पूजा का फल नहीं मिलता है।


चलनी से चांद देखने का कारण


करवा चौथ के दिन महिलायें चलनी से अपनी पति को देखती हैं। चलनी से चांद देखने की इस परंपरा की कल्पना चंद्रमा और भगवान ब्रह्मा से की गई है। चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है , साथ ही चांद में शीतलता , शालीनता , प्यार , जगत प्रसिद्धि जैसे गुण समाहित हैं। इसलिये करवा चौथ पर सभी महिलायें चलनी से चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि उनका पति भी चांद जैसे गुणों से परिपूर्ण हो।


इनसे करें परहेज


करवा चौथ के खास मौके पर महिलायें ध्यान रखें कि इस दिन किसी दूसरी महिला की चूड़ी बिल्कुल ना पहनें , ये अशुभ माना जाता है और व्रत कभी भी सफल नहीं होता। इस दिन सुहागिन महिलायें भूल कर भी हाथों को खाली ना रखें , हाथों में चूड़ियां अवश्य पहनी हों। इस दिन सफेद रंग की चूड़ियां बिल्कुल ना पहनें , इसे भी बहुत अशुभ माना जाता है। इस शुभ दिन हाथों में चूड़ियां पहनते समय इस बात का ध्यान भी रखें कि हाथों में सिंगल चूड़ी ना पहनें , बल्कि चूड़ियां जोड़े से पहनें। एक या तीन चूड़ी कभी नहीं पहनें , साथ ही इस बात को ध्यान में रखें कि चूड़ी चटकी हुई ना हो। करवाचौथ की शॉपिंग के दौरान कुछ चीजों को भूलकर भी ना खरीदें। करवाचौथ के दिन ना तो सफेद कपड़े खरीदने और ना ही पहनने चाहिये। इस दिन लाल , पीले , हरे और संतरी रंग के कपड़ों की खरीददारी शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन सुहागिन महिलाओं को तेज धार वाली वस्तुओं की खरीददारी नहीं करनी चाहये इनमें चाकू , कैंची और सुई जैसी चीजें शामिल हैं।

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