संतान की दीर्घायु व सुख समृद्धि कामना का पर्व है हलषष्ठी - अरविन्द तिवारी
रायपुर - भारतीय संस्कृति में यूँ तो सभी पर्वों का अपना अलग-अलग महत्व है इन्ही पर्वों में से एक हलषष्ठी पर्व है जिसमे संतान की सुख-समृद्धि व दीर्घायु होने की मनोकामना के लिये हलषष्ठी (खमरछठ) का पर्व विभिन्न मंदिरों एवं घरों में महिलाओं द्वारा सामूहिक रुप से पूजा-अर्चना कर मनाया जायेगा। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया पुत्र के दीर्घायु और कुशलता की कामना को लेकर माताओं द्वारा मनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का पावन पर्व खमरछठ व्रत भादो माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यानि आज मनाया जायेगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठभ्राता श्रीबलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हलषष्ठी के दिन महिलायें एक गड्ढा बनाती हैं और फिर उसे गोबर से लीपकर तालाब का रूप दे देती हैं। साथ ही इस तालाब में झरबेरी और पलाश की एक शाखा बांधकर उसमें गाड़ दी जाती है। इसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती और छठ माता की पूजा - अर्चना की जाती है। साथ ही पूजा के समय सात प्रकार का अनाज चढ़ाने का विधान है। साथ ही रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। षष्ठी में उपवास रहकर मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर, पार्वती, गणेश, कांर्तिकेय, नंदी , बांटी, भौंरा, एवं शगरी बनाकर पूजा-अर्चना किया गया जाता है एवं कनेर, धतूरा, मंदार, बेलपत्ती, सफेद फूल आदि विशेषरुप से भगवान को चढ़ाया जाता है। इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है। आज के दिन पूजन पश्चात महिलायें प्रसाद के रुप में पसहर चांवल, भैसी का दूध, दही, घी, मुनगे का भाजी सहित छह प्रकार की भाजी एवं बिना हल जोते मिर्च का फलाहार किया जाता है। इस व्रत में महिलाओं हल द्वारा उत्पन्न खाद्य फसल से परहेज करती है। इस दिन महिलायें अपनी संतान की दीर्घायु के लिये पुत्र के बायें कंधे एवं पुत्री के दायें कंधे में छह - छह बार नये कपड़े के कतरन को शगरी में डुबाकर चिन्ह लगाती हैं जिससे उनकी संतान को भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु होती है और सभी कष्ट दूर होते हैं।
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