मोक्षदायिनी है सर्वपितृ अमावस्या – अरविन्द तिवारी
नई दिल्ली - हिन्दू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है , श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव। हिंदू मान्यताओं के अनुसार देह त्याग करने के बाद हमारे पुरखे परलोक सिधार जाते हैं और उनकी आत्मा की तृप्ति के लिये सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है , उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं , ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। आज इस वर्ष के पितृपक्ष का अंतिम दिवस है जिसे सर्वपितृ अमावस्या , आश्विन अमावस्या , बड़मावस , दर्श अमावस्या , महालया अमावस्या या मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन पड़ने वाली सर्वपितृ अमावस्या को पितृ पक्ष के विसर्जन का दिन माना जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि जब श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होता है तो पितर गण मृत्यु लोक से धरती लोक में अपनी संतानों से मिलने आते हैं और आश्विन माह की अमावस्या के दिन वे वापस अपने लोक में लौट जाते हैं। माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास से नमन कर पितरों को विदा करते हैं उनके घर में सुख-शांति का आगमन होता है। पितृपक्ष के आखिरी दिन पड़ने वाली इस अमावस्या तिथि पर पिंडदान , श्राद्ध , व पितरों के निमित्त दान करने का खास महत्व होता है। आश्विन मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध करके पितरों को विधिपूर्वक विदाई देने की भी परंपरा है। इस दिन तर्पण , श्राद्ध और पिंडदान आदि का विशेष महत्व होता है। इस दिन पितरों के नाम से तर्पण व दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं व अपना आशीर्वाद देते हैं। इसलिये इस दिन को सर्वपितृ विसर्जन अमावस्या श्राद्ध भी कहा जाता है। इसके दूसरे दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र का प्रारंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार पितृपक्ष में पितर धरती पर विचरण करते हैं , अगर पितरों का श्राद्ध ना किया जाये तो उनकी आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है। जिसके प्रभाव से घर-परिवार के लोगों को भी आये दिन दु:ख-तकलीफ का सामना करना पड़ता है। इसलिये बहुत जरूरी है कि अगर आप पितरों की पुण्य तिथि भूल चुके हैं तो इस तिथि पर उनका श्राद्ध अवश्य ही कर दें।मान्यताओं के अनुसार इस दिन वे लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं जिनकी मृत्यु किसी महीने की अमावस्या तिथि को हुई हो या जिन्हें अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि आदि के बारे में जानकारी नहीं होती। इस दिन हर कोई अपने पूर्वजों का श्राद्ध व पितृ तर्पण कर सकता है इसलिये इस अमावस्या को बहुत खास माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध किये जाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
शनिवार होने से शनिश्चरी अमावस्या भी कहलायेगी
आज शनिवार को अमावस्या होने के कारण यह शनिश्चरी अमावस्या भी कहलायेगी। इस शनिश्चरी अमावस्या का महत्व कई गुना इसीलिये ज्यादा है क्योंकि ये सर्वपितृ अमावस्या के दिन पड़ रही है। इस दान दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है , इस दिन दान करने से आपके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और अगर आप पर शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या का प्रकोप हैं तो वो कम हो जाता है।
ये उपाय अवश्य करें —
तर्पण करने से पूर्व हाथ में कुश की अंगूठी पहनें। इसके बाद दायें हाथ में जल , जौ और काले तिल लेकर अपना गोत्र बोलें और फिर इन चीजों को पितरों को समर्पित कर दें। पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलायें इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी। आज के दिन चींटी , कौवा , गाय , कुत्ता और ब्राह्मण के नाम से भोजन निकाल दें , इससे पितरों की कृपा आप पर सदैव बनी रहेगी। आज के दिन श्राद्ध के लिये तिल और चांवल मिलाकर पिंड बनायें और पितरों को अर्पित करें। इस दिन पितरों के लिये श्राद्ध करें और घी मिली हुई खीर दान करें। इसके अलावा इस समय ब्राह्मण , गरीबों और जरूरमंदों को भोजन करायें , उन्हें अन्न और कपड़ों का दान देने से आपके सारे संकट दूर हो जायेंगे और घर में धन की कभी कमी नहीं होगी। इस दिन सुबह सूर्य देव को जल अर्पण अवश्य करें। आज पितृ अमावस्या के दिन पीपल एवं बरगद का पेंड़ अवश्य लगायें। आज के दिन पीपल पेंड़ में जल , पुष्प , अक्षत , दूध , गंगाजल , काला तिल चढ़ाकर दीपक जलाने एवं नाग स्तोत्र , महामृत्युंजय मंत्र , रूद्रसूक्त , पितृस्तोत्र , नवग्रह स्तोत्र , विष्णु मंत्र का जाप , गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने से पितरों को शांति मिलती है एवं पितृदोष में कमी आती है। इस दिन पितरों के योगदान को याद करते हुये उनका आभार व्यक्त करना चाहिये। इस दिन पितरों को विदाई देते समय उनसे किसी भी भूल की क्षमा याचना भी करनी चाहिये।
सर्व पितृ अमावस्या कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रेष्ठ पितृ अग्निष्वात और बर्हिषपद की मानसी कन्या अक्षोदा घोर तपस्या कर रही थीं। वह तपस्या में इतनी लीन थीं कि देवताओं के एक हजार वर्ष बीत गये , उनकी तपस्या के तेज से पितृ लोक भी प्रकाशित होने लगा। प्रसन्न होकर सभी श्रेष्ठ पितृगण अक्षोदा को वरदान देने के लिये एकत्र हुये। उन्होंने अक्षोदा से कहा कि हे पुत्री ! हम सभी तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हैं , इसलिये जो चाहो वर मांग लो। लेकिन अक्षोदा ने पितरों की तरफ ध्यान नहीं दिया , वह उनमें से एक अति तेजस्वी पितृ अमावसु को अपलक निहारती रही। पितरों के बार-बार कहने पर उसने कहा हे भगवन ! क्या आप मुझे सचमुच वरदान देना चाहते हैं ? इस पर तेजस्वी पितृ अमावसु ने कहा, ‘हे अक्षोदा वरदान पर तुम्हारा अधिकार सिद्ध है , इसलिये निस्संकोच कहो। अक्षोदा ने कहा भगवन यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो मैं तत्क्षण आपके साथ का आनंद चाहती हूं। अक्षोदा के इस तरह कहे जाने पर सभी पितृ क्रोधित हो गये। उन्होंने अक्षोदा को श्राप दिया कि वह पितृ लोक से पतित होकर पृथ्वी लोक पर जायेगी। पितरों के इस तरह श्राप दिये जाने पर अक्षोदा पितरों के पैरों में गिरकर रोने लगी। इस पर पितरों को दया आ गई , उन्होंने कहा कि अक्षोदा तुम पतित योनि में श्राप मिलने के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी। भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पाराशर तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे और तुम्हारे गर्भ से भगवान व्यास जन्म लेंगे। उसके उपरांत भी अन्य दिव्य वंशों में जन्म लेते हुये तुम श्राप मुक्त होकर पुन: पितृ लोक में वापस आ जाओगी। पितरों के इस तरह कहे जाने पर अक्षोदा शांत हुई। अक्षोदा के प्रणय निवेदन को अस्वीकार किये जाने पर सभी पितरों ने अमावसु की प्रशंसा की और वरदान दिया- हे अमावसु ! आपने अपने मन को भटकने नहीं दिया, इसलिये आज से यह तिथि आपके नाम अमावसु के नाम से जानी जायेगी। ऐसा कोई भी प्राणी जो वर्ष में कभी भी श्राद्ध-तर्पण नहीं करता है , अगर वह इस तिथि पर श्राद्ध पर करेगा तो उसे सभी तिथियों का पूर्ण फल प्राप्त होगा। तभी से इस तिथि का नाम अमावसु (अमावस्या) हो गया और पितरों से वरदान मिलने के फलस्वरूप अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध के लिये सर्वश्रेष्ठ पुण्य फलदायी माना गया।
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