कसडोल।
सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक, और मराठी कवयित्री थीं।
वह महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए कार्य करने वाली प्रमुख व्यक्तित्व थीं। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर समाज में शिक्षा और समानता की अलख जगाई।
प्रमुख योगदान:
1. पहली महिला शिक्षिका:
सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला।
वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं और महिलाओं को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
2. महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष:
उन्होंने महिलाओं को शिक्षा दिलाने और समाज में उनके प्रति भेदभाव समाप्त करने के लिए संघर्ष किया।
विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन किया और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई।
3. दलितों और शोषितों के लिए काम:
उन्होंने जाति प्रथा और छुआछूत के खिलाफ काम किया।
अपने पति के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज में समानता लाना था।
4. बालहत्या के खिलाफ आंदोलन:
उस समय की प्रथा के अनुसार, विधवाएं अपने नवजात बच्चों को मार देती थीं। उन्होंने इस कुप्रथा को रोकने के लिए बच्चों की देखभाल हेतु आश्रम खोले।
5. महामारी में सेवा:
1897 में प्लेग महामारी के दौरान उन्होंने रोगियों की सेवा की और इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
साहित्यिक योगदान:
सावित्रीबाई ने महिलाओं की शिक्षा और समानता पर कविताएँ लिखीं। उनकी कविताएँ समाज को जागरूक करने और प्रेरित करने का माध्यम बनीं।
विरासत:
आज सावित्रीबाई फुले को महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
उनके जन्मदिवस को महिला शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सावित्रीबाई फुले ने भारतीय समाज में शिक्षा और समानता की क्रांति की नींव रखी और उनकी उपलब्धियाँ आज भी प्रेरणा स्रोत हैं।
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