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Sunday, February 16, 2025

मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है मर्यादा का पालन.--- आचार्य नंदकुमार शर्मा

 मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है मर्यादा का पालन.--- आचार्य नंदकुमार शर्मा 



[ मर्यादा का पालन करने वाले ही भगवान को प्रिय होते है ] 

अजय नेताम  रिपोर्टर  -----     तिल्दा नेवरा - संसार रूपी गाड़ी को धर्म के पहिये ही मंजिल तक पहुंचाते है और धर्म की रक्षा करना मानव का परम कर्तव्य है। परंतु मानव माया में उलझकर नारायण की भक्ति भूल जाते हैं।




 उक्त बातें निनवा वाले आचार्य पंडित नंदकुमार शर्मा जी ने ग्राम  कचलोन मे चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन शनिवार को भागवत कथा के दौरान कही. उन्होंने कहा कि मानव को धर्म की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। संस्कृति के इतिहास में धर्म विरोधियों का कोई महत्व नहीं है। सनातन धर्म की नीति है सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया। अर्थात सभी सुखी रहें, किसी को कोई तकलीफ न हो। उन्होंने कहा कि विष ही विष की औषधि है। दया के अंदर धर्म, पराक्रम, मन, ज्ञान, और सौंदर्य सभी समाहित हैं। इसी कारण दया का महत्व है।  आचार्य जी भगवान राम के जन्म की कथा बताते हुए कहा कि महराज दशरथ की तीन रानियों कौशल्या, केकयी और सुमित्रा के गर्भ से क्रमशः राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न जी का अवतार होता है.  दशरथ ही वेद का रूप है और तीनों रानियाँ उपासना कांड,  ज्ञान कांड और कर्म कांड है. उन्होंने बताया कि राम जी ने अवतार लेकर धरती मे धर्म, और मर्यादा का पूर्ण रूपेण प्रतिपालन किया. इस कारण उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. जो मर्यादा का पालन करते हैं वे भगवान को प्रिय होते हैं। खुद भगवान राम ने ऐसा कहा है। हमें अपने पूर्वजों की परंपरा को नहीं तोड़ना चाहिए। माता पिता, गुरु का अनादर नहीं करना चाहिए। भगवान राम को पता था कि वे राज पद ठुकराकर वन जा रहे हैं उन्हें कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। यह सबकुछ जानते हुए भी प्रभु ने हंसते हुए वन जाना स्वीकार किया, क्योंकि वे अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने का पाप नहीं करना चाहते थे। हमें भी अपने बच्चों को यही सीख देने की आवश्यकता है। : जो मर्यादा का पालन करते हैं वे भगवान को प्रिय होते हैं। खुद भगवान राम ने ऐसा कहा है। हमें अपने पूर्वजों की परंपरा को नहीं तोड़ना चाहिए। माता पिता, गुरु का अनादर नहीं करना चाहिए। भगवान राम को पता था कि वे राज पद ठुकराकर वन जा रहे हैं उन्हें कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। यह सबकुछ जानते हुए भी प्रभु ने हंसते हुए वन जाना स्वीकार किया, क्योंकि वे अपने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने का पाप नहीं करना चाहते थे। हमें भी अपने बच्चों को यही सीख देने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि श्रीराम चरित मानस हमारे जीवन की आचार संहिता है। भगवान राम का चरित्र हमें जीवन कैसे जीना है यह सिखाता है। कठिन परिस्थितियों में भी भगवान राम ने कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया यहां तक कि युद्ध के मैदान में भी। आज जब हम किसी से नाराज होते हैं तो भूल जाते हैं हमारी मर्यादा क्या है। लालच, क्रोध, मोह, माया के वश में होते ही हम मर्यादा छोड़ देते हैं जो कि उचित नहीं है। जब हम भगवान राम को मानते हैं उनकी पूजा करते हैं तो फिर उनके द्वारा स्थापित मर्यादा का पालन करने में हर्ज कहां है। हमें हर हाल में भगवान द्वारा स्थापित मर्यादा का पालन करना है यदि हम ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से भगवान को प्रिय होंगे। भगवान को छल, कपट, प्रपंच करने वाला प्रिय नहीं होता है। जब हम मर्यादा का उल्लंघन करते हैं तो अपने यश और श्री को नष्ट कर लेते हैं। ऐसा करने से पाप के भागी बनते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी मर्यादा की सीमा रेखा को तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तभी विवाद और क्लेश उत्पन्न होता है।. आचार्य जी ने कहा जब कोई व्यक्ति अपनी मर्यादा की सीमा रेखा को तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तभी विवाद और क्लेश उत्पन्न होता है।मर्यादा का उल्लंघन करने वाला और मर्यादा का हनन होने वाला दोनों ही अपमानित होता है। जब कोई किसी के साथ अमर्यादित व्यवहार करता है तो उसे भी अर्मायादित व्यवहार ही प्राप्त होता है। आगे आचार्य जी कृष्ण जन्म की कथा बतायी जिसे सुनकर सभी श्रोता गदगद और रोमांचित हो उठे.  उन्होंने बताया कि द्वापर युग मे जब कंस का  अत्याचार बढ़ने लगा तब ईश्वर ने माता देवकी के गर्भ से कंस के कारागृह मे अष्टम पुत्र के रूप मे अवतार लिया और माधुर्य  बाल लीला को पूर्ण करते हुए कंस का वध किया. आचार्य जी ने कहा कि जब जब धरती मे धर्म की हानि होने लगती है, अत्याचार, पाप जब अत्याधिक बढ़ने लगता है तब तब ईश्वर का अवतार किसी ना किसी रूप मे होता है और धरती से अधर्म, और पाप को मिटाकर धर्म को स्थापित करते है. कथा सुनने श्रद्धालुओं की अपार भीड़ बढ़ती जा रही है.

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