कर्ण भेध संस्कार,लड़कों के दाएं कान को छिदवाना शुभ माना जाता है। आजकल लोग दोनों कान छिदवाते है ।
सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी ।
छोटे बच्चों के कान छिदवाने की सही उम्र व्यक्तिगत और सांस्कृतिक मान्यताओं पर निर्भर करती है। कर्ण भेध का अर्थ है- कानों में छेद करना। प्रत्येक कान में एक कुदरती छेद होता है जो सूर्य की रोशनी में वैद्य को अथवा अनुभवी व्यक्ति को स्पष्ट दिख जाता है।
सुश्रुत में संकेत है कि हर्निया और हाइड्रोसिल से बचाव के लिए प्रत्येक कान में (बालक के) सोने की सलाई से छेद करना चाहिए। इसके अनुसार कान वींधने के दो कारण है- पहला स्वास्थ्य की रक्षा और दूसरा आभूषण द्वारा कानों की शोभा बढ़ाना। इस प्रकार इस संस्कार से कुछ रोगों से सुरक्षा के साथ-साथ सौन्दर्य मे भी वृद्धि होती है।
संस्कार विधि के अनुसार यह संस्कार बालक के तीसरे या पाँचवे वर्ष में वैदिक विधिपूर्वक करना चाहिए और कान बींधना या नासिका में (बालिका की) छेद करवाने का कार्य किसी अनुभवी व्यक्ति से ही करवाना चाहिए।
बालक के कान के छेद में स्वर्ण या रजत का आभूषण पहनाया जाता है। स्वर्ण की रगड़ से एक विशेष प्रकार की विद्युत लहर शरीर में पैदा होती है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
बालिका के लिए नथने में छेद किया जाता है। उसमें नथ/छल्ला या लॉकेट लटकाने की परम्परा है। जो फल बालक के कान में स्वर्ण डालने का है वही फल बालिका के प्रसंग में नासिका में सोने का छल्ला/आभूषण लटकाने का है।
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