विवाह संस्कार,जिसे शादी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण संस्कार है ।
सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी।
रायपुर-संस्कारों के क्रम में "विवाह" तेरहवां संस्कार है। वैदिक संस्कृति में "विवाह संस्कार" एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। परिवार उत्तरदायित्व की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक व मानसिक परिपक्वता आ जाने पर, गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के इच्छुक युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है।
गृहस्थ आश्रम की महानता को समझते हुए आर्यसमाज के संस्थापक दयानन्द जी ने संस्कार विधि में न केवल विवाह संस्कार की विधि लिखकर समाज का उपकार किया बल्कि विवाह से सम्बन्धित लगभग सभी आवश्यक पहलुओं की विस्तार से चर्चा की है जिनमें मुख्य हैं:-
(1) विवाह और गृहस्थाश्रम का लक्ष्य।
(2) वधु और वर के समान गुण, कर्म स्वभाव का महत्त्व (इसका तात्पर्य फलित ज्योतिष के गुणों से नहीं है।)
(3) वधु व वर विवाह के लिए किस कुल के होने चाहिए
(4) दस कुलों का वर्णन जिनकी कन्या के साथ विवाह करना उचित नहीं है।
(5) कुछ विशेष प्रकार की कन्यायों का विवरण।
(6) आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन व उनकी विशेषतायें
(7) विभिन्न प्रकार के विवाहों में पाणिग्रहण किये हुये स्त्री-पुरुष से उत्पन्न संतानों के गुण व स्वभाव।
गृहस्थ को सुखी बनाने के लिए यदि उपरोक्त पहलुओं का चिन्तन किया जाय और विवाह संस्कार वैदिक विधि से हो तो निश्चय ही वर वधु का गृहस्थ सुखमय होगा, सफल होगा। अतः ऋषि द्वारा लिखित 'संस्कार विधि' में विवाह प्रकरण का चिंतन करना सभी आर्यों व गृहस्थियों के हित में है।
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