नवरात्र विशेष
तृतीय स्वरूप चन्द्रघण्टा माता रानी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है।
सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी।
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
* माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।
मॉं आदिशक्ति चन्द्रघण्टा की पौराणिक कथा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जिनकी कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस के आतंक से देवताओं को बचाने के लिए त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के क्रोध से एक देवी का जन्म हुआ। इस देवी को देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र, जैसे भगवान शिव का त्रिशूल, विष्णु का चक्र और इंद्र का घंटा भेंट किए। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।
मां चंद्रघंटा की कथा-
महिषासुर का आतंक: पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस ने स्वर्गलोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया था और वह तीनों लोकों पर अपना अधिपत्य जमाना चाहता था।
देवताओं की चिंता: महिषासुर के बढ़ते आतंक से सभी देवता चिंतित हो गए थे और उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से मदद मांगी।
त्रिमूर्ति का क्रोध: देवताओं की व्यथा सुनकर त्रिदेव बहुत क्रोधित हुए और उनके क्रोध से एक दिव्य ऊर्जा प्रकट हुई।
देवी चंद्रघंटा का प्रादुर्भाव: इस ऊर्जा से मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप का जन्म हुआ, जिनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है।
अस्त्रों की प्राप्ति: भगवान शिव ने उन्हें अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र और देवराज इंद्र ने अपना घंटा प्रदान किया। अन्य सभी देवताओं ने भी मां को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दिए।
महिषासुर का वध: इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंचीं। माता ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ महिषासुर का वध किया और देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया।
मां चंद्रघंटा के स्वरूप के बारे में स्वरूप: मां चंद्रघंटा का स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है।
मस्तक पर चंद्र: उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, जिससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। दशास्त्रहस्ता: मां के दस हाथ हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। वाहन: मां का वाहन सिंह है।
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