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Wednesday, December 3, 2025

अगले महीने रायपुर में होगा साहित्य उत्सव जिनमें साहित्यकारों एवं प्रतिभागियों के बीच सीधा संवाद और विचार-विमर्श होगा।

 अगले महीने रायपुर में होगा साहित्य उत्सव  जिनमें साहित्यकारों एवं प्रतिभागियों के बीच सीधा संवाद और विचार-विमर्श होगा। 




सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी। 

रायपुर-छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक-साहित्यिक विरासत का प्रतीक उत्सव का आयोजन नवा रायपुर में  २३ जनवरी से २५ जनवरी तक होगा, 




जिसमें देशभर से १०० से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यकार जुटेंगे ।मुख्यमंत्री श्री साय ने अपने निवास कार्यालय में रायपुर साहित्य उत्सव के लोगो का अनावरण किया ।इस अवसर मुख्यमंत्री के मिडिया सलाहकार श्री पंकज झा,छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री शशांक शर्मा जनसंपर्क विभाग के सचिव डॉ. रोहित यादव वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील  डां. चितरंजन कर,श्री गिरीश पंकज, डां.संजीव बख्शी,श्री प्रदीप श्रीवास्तव, श्रीमती शकुंतला तरार उपस्थित रहे।  


अगले महीने आयोजित होने जा रहे रायपुर साहित्य उत्सव के लोगो में छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को एक प्रभावशाली प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। यह लोगो न सिर्फ राज्य की पहचान को दर्शाता है, बल्कि बस्तर की जैव-विविधता, जनजातीय परंपराओं, और छत्तीसगढ़ की आत्मा माने जाने वाले सल्फी पेड़ की सांस्कृतिक महत्ता को भी सशक्त रूप में उजागर करता है।


लोगो में सल्फी के पेड़ को छत्तीसगढ़ राज्य के नक्शे का रूप देकर यह संदेश दिया गया है कि राज्य की सभ्यता, संस्कृति और साहित्य सदियों से इसी भूमि की जड़ों से पोषित होते आए हैं। सल्फी का यह पेड़ आदिकाल से चली आ रही पौराणिक परंपराओं, भाईचारे और एकजुटता का प्रतीक माना जाता है। जनजातीय समाज के जीवन में गहराई से रचे-बसे इस पेड़ को साहित्य उत्सव के लोगो में शामिल करने से यह संदेश भी मिलता है कि छत्तीसगढ़ का जनजातीय साहित्य, लोकविश्वास और पारंपरिक ज्ञान-धारा आज भी समकालीन साहित्यिक प्रवाह के केंद्र में है।


लोगो में अंकित ‘आदि से अनादि तक’ वाक्य साहित्य की उस अटूट यात्रा को दर्शाता है, जिसमें आदिकालीन रचनाओं से लेकर निरंतर विकसित हो रहे आधुनिक साहित्य तक सभी रूप समाहित हैं। यह संदेश स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि साहित्य कालातीत है, वह समय, समाज, भाषा और पीढ़ियों को जोड़कर चलने वाली निरंतर धारा है। इसी प्रकार लोगो में शामिल ‘सुरसरि सम सबके हित होई’ वाक्य साहित्य को गंगा की तरह मुक्त, समावेशी और सर्वहितकारी शक्ति के रूप में स्थापित करता है। साहित्य सभी जाति, वर्ग, परंपरा और जीवन-रीतियों को अपनी व्यापकता में समाहित कर समाज को दिशा देता है और सबके हित का मार्ग प्रशस्त करता है ।

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