अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी -- शिवावतार भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित चार मान्य पीठों में से एक ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठ के 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज सर्वहितप्रद सर्वकालीन सनातन सिद्धान्तों के गूढ़ ज्ञान विज्ञान को सरलतम रूप में विभिन्न संगोष्ठियों के माध्यम से पूरे विश्व को उपलब्ध कराने का अभियान चला रहे हैं। पूरे विश्व में भारत से बाहर जो सनातनी हिन्दू हैं , जो विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच रहकर भी अपनी संस्कृति के बल पर अपनी विशेष पहचान बनाये रखने में सफल हैं। उनको हिन्दू राष्ट्र संघ की अवधारणा से एकजुट करने के दिव्य संकल्प के साथ श्रीगोवर्धन मठ पुरी में आधुनिक यांत्रिक विधा की सहायता से आयोजित चार दिवसीय अधिवेशन का प्रथम दिवस विदेशों में रहने वाले सनातनी विद्वान , प्रोफेसर आदि के उद्बोधन का रहा। पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी के पावन सानिध्य में अधिवेशन की शुरुआत कांचीपुरम विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष नारायण झा ने वैदिक मंगलाचरण से किया। तत्पश्चात दिल्ली के अरूण दुबे ने लौकिक मंगलाचरण के तहत राष्ट्र भक्ति गीत शास्त्रीय गायन विधा में प्रस्तुत किया। हिन्दू राष्ट्र संघ अधिवेशन की भूमिका एवं उद्देश्य के संबंध में ह्रषिकेश ब्रह्मचारी ने जानकारी दी। प्रथम वक्ता के रूप में टेक्सास से केन्या निवासी कुसुम व्यास ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे पूर्वज काठियावाड़ गुजरात के थे। हमें हिन्दू धर्म के बारे में कहीं औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं हुई , हमने जो भी सीखा है वह अपने परिवार एवं पूर्वजों की देन है। हम रामनवमी , दीपावली , नवरात्रि उत्साह से मनाते हैं। न्यूयॉर्क अमेरिका से विभूति झा जो मूलतः मधुबनी बिहार के हैं बताया कि आज जब हर जगह लैंगिक असमानता की बात होती है वहीं सनातन संस्कृति में आदिकाल से भगवान शंकर ने अर्द्धनारीश्वर रूप के द्वारा ये संदेश दिया कि पुरुष व नारी एक दूसरे के पूरक हैं। वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ पृथ्वी के समस्त प्राणी , जीव , जन्तु एवं वनस्पति इसमें शामिल हैं , सबका सह अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है। कनाडा से प्रो. आजाद कौशिक ने कहा कि विदेशों में जिन व्यक्तियों ने अपनी भाषा में ही सही वेद पढ़ा है उनके मन में वेदों के रचयिता ब्राह्मणों के प्रति आदर का भाव है। अधिवेशन में सुरेन्द्र शर्मा मेलबर्न , दिवाकर शुक्ला लंदन , वन्दना झींगन शिकागो, रोहन अग्रवाल जापान, कमल गुप्ता स्वीडन, प्रो.अजीत सिंह सिखंड जर्मनी, वहीं. पी. मिश्रा वाराणसी ने भी अपने भाव व्यक्त किये। इस अवसर पर डॉ ओम शर्मा अमेरिका ,शिव माथुर पोलैंड , निवेदिता मैथ्यू मारीशस, रवि तिवारी नीदरलैंड ,के. शंकर कोलंबो , सतीश कुमार अरब , अशोक एच के पूर्तगाल , कौशिक उमाकांत , नवनीत कौशल उपस्थित थे। डॉ० एडीएन बाजपेयी पूर्व कुलपति को शंकराचार्य जी ने हिन्दू राष्ट्र संघ के संयोजक की जिम्मेदारी प्रदान की। पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि हिन्दू शब्द प्राचीन है , इसका उल्लेख विभिन्न शास्त्रों में किया गया है। सनातन वर्ण व्यवस्था सर्वोत्कृष्ट है, इसमें जन्म से ही प्रत्येक व्यक्ति की जीविका सुरक्षित थी , जिससे आर्थिक विपन्नता हो ही नहीं सकती।सनातन धर्म के प्राचीनता के संबंध में उद्भाषित किया कि मोहम्मद साहब के पहले कौन सा धर्म था , ईसा मसीह के पहले किस धर्म के अनुयायी थे । इसका तात्पर्य यह है कि इनके पूर्वजों के पूर्वज ब्रह्माजी हैं ,जो प्रथम ब्राह्मण के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्हीं से समस्त प्राणियों , जीव-जंतु एवं वनस्पतियां आदि का उद्भव हुआ। हिन्दू राष्ट्र संघ की प्रबलता के लिये सभी जैन , बौद्ध एवं सिखों को स्वयं को संविधान की धारा 25 के अनुसार हिन्दू घोषित करना चाहिये , इससे पूरे विश्व में हिन्दूओं की संख्या दूसरे स्थान पर आ जायेगी। प्रत्येक जीव ईश्वर का अंश है , अंश होते हुये प्राणी है , प्राणी के रूप में मनुष्य है , हम मनुष्य के रूप में हिन्दू हैं , फिर हिन्दू होते हुए वर्ण व्यवस्था का पालन करते हैं । ऐसा दर्शन सिर्फ सनातन धर्म में ही संभव है। सृष्टि के सृजन का उद्देश्य मृत्यु के भय से मुक्त होकर मृत्यु पर विजय पाना है अर्थात मृत्युंजय होना है।
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.