छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर निवासी समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मीडिया के माध्यम से एक बड़े ही महत्वपूर्ण विषय पर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि अगर 21वीं शताब्दी में भी लोगों को पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने में सरकारें अक्षम हैं तो ऐसी सरकारों का क्या मतलब है? विगत छह-सात दिनों से पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण नाराज़ और व्यथित सुपेबेड़ा के ग्रामीणों ने जहाँ राज्यपाल से इच्छा-मृत्यु की मांग की है, वहीं वे मुख्यमंत्री से मिलने कल शाम को राजधानी पहुंचे। मामले की जानकारी पुलिस को लगते ही उन्हें बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर ले जाया गया था जहाँ उन्होंने अपनी समस्याओं को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। एक अखबार में छपी खबर के अनुसार प्रदर्शन के लिए राजधानी आए ग्रामीण त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि सुपेबेड़ा समेत आसपास के गांव में पीने के लिए शुद्ध पेयजल नहीं मिल पा रहा है। जिला मुख्यालय में 10 गांव के लोग प्रदर्शन के लिए रायपुर में इकट्ठा हुए हैं। ग्रामीणों के मुताबिक उनके गांव का फिल्टर प्लांट काफी दिनों से खराब होने की वजह से दूसरे स्थान से पानी की आपूर्ति की जाती है।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने बताया कि 1400 आबादी वाले इस गांव में 130 लोगों की किडनी की बीमारी से मौत हो चुकी है। हालांकि सरकार इस आंकड़े को 70 बताती है। ग्रामीणों के अनुसार दूषित पानी के कारण हुई किडनी की बीमारी के चलते, आस पास के गावों में कुल मिलाकर 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। खबर है कि रात को आंदोलित ग्रामीणों में से कुछ को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया भी गया लेकिन वहां मुख्यमंत्री मिले ही नहीं। आक्रोशित ग्रामीणों ने एक सप्ताह में उग्र आंदोलन करने की बात कही है। यह विषय कोई 2 साल पुराना नहीं है। यह विषय पिछली सरकारों में भी उठा था लेकिन लोगों को पीने योग्य पानी तो नसीब नहीं हुआ। हाँ, हर बार आश्वासन ज़रूर मिला है। पिछली सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भी इस विषय पर संज्ञान लेते हुए सुपेबेड़ा के निवासियों के लिए उचित और पीने योग्य पानी उपलब्ध करवाने की बात कही थी। यही नहीं विधानसभा चुनाव 2018 के पूर्व काँग्रेस नेताओं ने भी सत्ता में आने के बाद इस समस्या के समाधान का आश्वासन दिया था लेकिन स्थितियाँ जस की तस हैं।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने पहले भी इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया था लेकिन छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद भी अगर 21वीं शताब्दी में भी लोगों को पीने योग्य पानी उपलब्ध ना हो तो इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी? "नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी" जैसी महत्वाकांक्षी योजना के जनक और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी अगर ऐसे मामले आवश्यक और महत्वपूर्ण ना लगे तो सुपेबेड़ा के लोग किससे अपेक्षा करेंगे? वो भी पीने योग्य पानी के लिए?
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राज्य मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से अपील की है कि इस विषय को गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए सुपेबेड़ा के निवासियों को उचित और पीने योग्य पानी उपलब्ध हो पाए ये सुनिश्चित करें क्योंकि जल ही जीवन है। भूखे तो कुछ दिनों तक जीवित रहा जा सकता है लेकिन बिना पानी जीवन कैसे संभव है?
*प्रकाशपुन्ज पाण्डेय, राजनीतिक विश्लेषक व समाजसेवी, रायपुर, छत्तीसगढ़ ।*
7987394898, 9111777044
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