अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जांजगीर चांपा - श्रीमद्भागवत समस्त वेदों और शास्त्रों का सार है। "भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन" अर्थात जब अनेकों जन्मों का पुण्योदय होता है तब हमें श्रीमद्भागवत कथा सुनने का अवसर मिलता है। यह कथा देवताओं को स्वर्ग में भी दुर्लभ है इसलिये कथा शुरू होने से पहले उन्होंने अमृत के घड़े के बदले में उन्हें श्रीमद्भागवत कथा सुनने की इच्छा जतायी थी। श्रीमद्भागवत की कथा सुनकर अकाल मृत्यु से मरने वाले जीव का भी उद्धार हो जाता है। यह कथा भटके हुये प्राणी के आत्मा को शांति प्रदान कर उसे ज्ञान औऱ प्रेम की मार्ग पर लाने प्रोत्साहित करती हैं और मोक्ष की मार्ग की ओर प्रशस्त करती हैं। श्रीमद्भागवत कथा मनुष्यों के संकल्पानुसार फल प्रदान करने वाली कथा है , जिसमें कई जन्मों के पापों को सद्य: नष्ट करने की क्षमता है।
उक्त बातें वृंदावन - काशी से पधारे सुविख्यात कथाकार , भागवत्मणी , पुराणाचार्य पं० विश्वकांताचार्य जी महाराज ने आज हनुमानधारा , फिल्टर प्लांट के पास दामोनंद निक भवन चाम्पा में सप्तदिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस अपने मुखारविंद से कही। भागवताचार्य ने कहा जब मनुष्य के जीवन में दुख आता है और वह जीवन जीने की आशा छोड़ देता है तब भागवत की कथा मनुष्य को राह दिखाती है। आचार्यश्री ने व्यासपीठ से श्रोताओं को भक्ति एवं नारद संवाद का वर्णन करते हुये बताया कि भक्ति महारानी के दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य जब बेसुध पड़े थे तब वहाँ से गुजरते हुये नारद जी ने उन्हें श्रीकृष्ण और राम नाम शास्त्रों को सुनाया फिर भी उन्हें होश नहीं आया। फिर जब उनको श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी तब स्वयं भक्ति महारानी अपने दोनो पुत्रों ज्ञान और वैराग्य के साथ संकीर्तन करते हुये नृत्य करने लगी। उन्होंने आगे गोकर्ण के बारे में बताया कि गोकर्ण महाज्ञानी था जबकि धुंधकारी महा खल व्यक्ति जिसने बुरे कर्म के साथ बुरी स्त्रियों का संग किया जो उसके मन से नहीं धन से प्रेम करती थी। धन के समाप्त हो जाने पर उन बुरी स्त्रियों ने धुंधकारी को मृत्यु के घाट पर उतार दिया। धुंधकारी प्रेत पीड़ा से तड़पने लगा औऱ वह दर दर भटकने लगा। तब वह एक दिन अपनी ज्ञानी भाई गोकर्ण को कहा भैया मुझें मोक्ष मार्ग पर जाना है आप मेरी मुक्ति का उपाय करो। फिर गोकर्ण जी ने उसे श्रीमद्भागवत की कथा श्रवण करायी जिससे उसके आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो गयी। व्यासाचार्य ने कहा जो कलह करे , निंदनीय और घृणित कार्य करे , दुसरो को कष्ट दे वही धुन्धकारी है। अगर ये कार्य मनुष्य करने लगे तो समझ जाना हमारे अन्दर भी धुन्धकारी प्रवेश कर चुका है। इसे समाप्त करने ने लिये श्रीकृष्ण नाम संकीर्तन की धारा अपने जीवन में प्रवाहित कर लेने में ही जीव का कल्याण संभव है। आचार्यश्री ने कहा श्रीमद्भागवत की कथा सम्पूर्ण मोक्ष मार्ग को बताने वाली एक मात्र साधन हैं जो मानव के दैहिक , दैविक व भौतिक ताप को मिटा देती हैं।
इसके अलावा प्रथम दिवस की कथा में आचार्य श्री ने श्रोता - वक्ता के लक्षण एवं श्रीमद्भागवत कथा की फलश्रुति पर भी विस्तृत प्रकाश डाला। इसके पहले पुण्यसलिला हसदेव नदी के डोंगाघाट तट से होते हुये गाजे बाजे के साथ भव्य कलशयात्रा निकली। कलश यात्रा में सैकड़ों महिलायें सज धजकर सिर पर कलश धारण कर मंगल गीत गाती हुई भ्रमण करते दामोनंद निक भवन पहुंची। कलश यात्रा के कथा स्थल पहुँचने पर मुख्य यजमानों ने श्रीमद्भागवत और भागवताचार्य की आरती उतारी। यह श्रीमद्भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से हरि इच्छा तक चलेगी। इसी कड़ी में कथा के द्वितीय दिवस आचार्यश्री आज श्रद्धालुओं को परीक्षित जन्मोत्सव एवं कपिलोपाख्यान की कथा श्रवण करायेंगे। देश के सबसे बड़ी राष्ट्रीय गो सेवा संगठन कामधेनु सेना के छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रवक्ता जयप्रकाश द्विवेदी ने सभी श्रद्धालुओं से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुये कथा श्रवणकर अक्षय पुण्य के भागी बनने की अपील की है।
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