नगर की बेटी लाडो ने चुना संयम का रास्ता साधु साध्वियों की प्रेरणा से तीन अगस्त को उदयपुर राजस्थान में लेंगी दीक्षा19 जुलाई को बालोद में भव्य शोभायात्रा एवं अभिनंदन समारोह
सीएनआई न्यूज़ बालोद से उत्तम साहू की रिपोर्ट
बालोद -नगर की बेटी लाडो ने संसार की चकाचौंध से दूर संयम का रास्ता अपनाने का निर्णय लिया है। आगामी 3 अगस्त को वह साधुमार्गी बन जाएंगी। बचपन में ही साधु-संतों की वाणी से प्रेरित लाडो ने दीक्षा लेने का मन बना लिया था। घर व परिवार में ना केवल उचित माहौल मिला बल्कि पूरा पूरा सहयोग भी मिला। यशस्वी जैन(लाडो ) के माता और पिता दोनों के परिवार से अब तक 16 लोगों ने दीक्षा लिया है। लाडो का 17 वा दीक्षा है। वही बालोद शहर की 16वीं दीक्षा होंगी।
आचार्य भगवान 1008 रामलाल मसा, उपाध्याय प्रवर राजेशमुनि मसा, शासन दीपिका ताराकंवर महाराज मसा , श्री विनयश्री मसा, सुनेहा मसा सहित साधु साधुओं की प्रेरणा से आगामी तीन अगस्त 2022 को उदयपुर राजस्थान में धर्म नगरी बालोद की लाडली बिटिया मुमुक्षु बहन यशस्वी जैन (लाडो) की जैन भगवती दीक्षा संपन्न होने जा रहा है। 19 जुलाई को बालोद में भव्य शोभायात्रा एवं अभिनंदन समारोह वीर बहना का संपन्न होगा। इसके पूर्व दीक्षार्थी बहन यशस्वी (लाडो) अपने अनुभव बांटते हुए पत्रकारों से रूबरू हुई।
यहां पर उन्होंने अपने संयम सच का कठिन मार्ग कैसे चुना ? इस पर कहां कि मेरे माता पिता ,परिवार के संस्कार आज इस मंजिल तक ले आए हैं। साधु संतों का हमेशा सहयोग व सानिध्य मिला। आचार्य रामेश की आज्ञा में आगे संयम पद पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करू, यही मेरी मंगल कामना है। लगभग 5 साल का वैराग्य काल में रहकर बहन लाडो ने गुरुकुल बीकानेर व ब्यावर राजस्थान में शिक्षा ग्रहण की। वहां सांसारिक जीवन से दूर संयमी जीवन का पालन कैसे करना है इस पर अपने अनुभव बताया।
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जीवन को निहारने के लिए अनुशासन मे रहना जरूरी
उन्होंने बताया कि जीवन को निहारने के लिए अनुशासन मे रहना जरूरी है। साधु जीवन में बचपन से ही माता के संस्कार आज इस मुकाम तक ले आए हैं। बी कॉम तक की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत स्कूली शिक्षा में हमेशा अव्वल रहने वाली बहन 2018 में गुरुदेव के सूरत चातुर्मास से उसके मन में संयमी भाव की अटूट श्रद्धा और दृढ़ संकल्प ने संयम मार्ग का मार्ग अपनाया।
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पढ़ाई के बजाय संयम में लगता था मन
मुमुक्षु यशस्वी ने आगे बताया कि घर वाले मुझे चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई हेतु बेंगलुरु , रायपुर जाने के लिए कह रहे थे लेकिन मेरा मन सिर्फ संयम की राह पर ही चलने पर आगे बढ़े मन हमेशा कहता था कि अच्छे मार्ग में जाउं। हमारा हिंदुस्तान संत महापुरुषों का देश है यहां पर कुछ वर्षों से विदेशी संस्कार व संस्कृति निरंतर बढ़ रहे हैं जो कि चिंता का विषय है। लोग आज इसे शान समझते हैं थोड़ी देर की ही सुख है, लेकिन हम इस विदेशी संस्कृति से दूर रहें।हमारा भारत देश संत महापुरुषों का देश रहा है और आगे भी रहेगा।
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माता-पिता ने कहा हमारे लिए गर्व की बात
लाडो की माता अनीता ढ़ेलडिया ने कहा कि मैंने गर्भ में ही संस्कार दिए थे कि मेरे जो भी संतान हो वह संयम मार्ग में आगे बढ़े
आज इसी दिशा में मेरी लाडली संयम पथ की ओर अग्रसर है। यह सब मेरे गुरुदेव , उपाध्याय प्रवर व साधु संतों की असीम कृपा है। पिता मांगीलाल ढ़ेलडिया ने कहा कि दीक्षा लेना जैन धर्म में पवित्र माना गया है पुराने युगों में भी कृष्ण महाराज के युग में भी यह कठिन कार्य को भी आगे बढ़ाते थे। उसी दिशा में हम लोगों ने भी अपनी लाडली को संयम मार्ग में जाने की सहमति प्रदान की। इसके पूर्व भी हमारे परिवार में लगभग 17 दिक्षाएं संपन्न हो चुकी है। जो बहुत ही गौरवशाली अनुभव महसूस कर रहे हैं। यह सब दृढ़ बल व आत्मबल से ही लक्ष्य को पाया जा सकता है। यशस्वी की छोटी बहन हितांशी में भी उसके सयंमी पद पर जाने को बहुत ही गर्व महसूस करते हुए मंगल कामना की।
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